गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

लिंग परिवर्तन का शरीरविज्ञान सतयुग में मौजूद था। देवीभागवद पुराण सतयुग की ही कृति है।

अहंकार अति दुखद डमरुवा

डमरू की ध्वनि की तरह बढ़ता ही जाता है अहंकार। इसी के बढ़ने से रावण और कंस मारे जाते हैं जबकि दोनों में बल कोई काम न था। अर्थात बहुत अधिक था।

जय बोलने से विजय होती है। जय बोलने से मन एकाग्र होता है। श्रेष्ठ जनों की देवकुल की जय बोलनी चाहिए।

देवी भागवद का सबसे पहले आधा श्लोक स्वयं पराम्बा ने विष्णु को सुनाया था । विष्णु ने जस का तस आधा श्लोक ब्रह्मा को ,ब्रह्मा ने नारद को और नारदजी ने व्यास जी को सुनाया उनके ये पूछने पर कि मेरा मन खिन्न और उदास रहता है। आगम निगम (वेद और पुराण )लिखने के बाद। वेदों का विभाजन करने के बाद भी। क्या कारण है ऋषिवर इस बे -चैनी का यही प्रश्न पूछा था व्यासदेव ने ऋषि नारद से।

एक ही शक्ति है जो भिन्न रूपों में भिन्न समयों में अनेक बार प्रकट हुई है। उस शक्ति की उपासना तो आपने की नहीं -नारद जी बोले।

केवल तीन ही ग्रन्थ ऐसे हैं जिनके शुरू में और जिनसे पहले 'श्रीमद 'शब्द आता है -श्रीमदभगवदगीता ,श्रीमद्भागवद्पुराण ,और श्रीमद्देवीभागवद  पुराण। कभी आपने सोचा है इसका कारण क्या है ?

ये तीनों ही महाग्रंथ (शब्द वांग्मय ,वांग्मय अवतार )मुख से उच्चारित हुए हैं। गीता अर्जुन को कृष्ण ने सुनाई है ,श्रीकृष्ण ने भागवद्पुराण व्यास को और फिर व्यासदेव ने अपने पुत्र शुकदेव को सुनाई है। देवी भगवती ने स्वयं जो आधा श्लोक बोला वह श्रीमद्देवीभागवद्पुराण हो गया।

मुझे किसने पैदा किया ?सृष्टि के विलय के बाद विष्णु ने यह प्रश्न पराम्बा से पूछा था। प्रत्युत्तर में उन्होंने यही आधा श्लोक सुनाया था। जब वटपत्र(वट  वृक्ष के पात पर )बालरूप में लेते  भगवान विष्णु ने पूछा था -मेरी रचना किसने की।

व्यास जी ने जैसे ही ये आधा श्लोक नारद जी के मुख से सुना  उनका मन स्थिर हो गया। कलम लेकर रचना करने लगे। बारह स्कन्द और  ३१८ अध्याय में  बस उन्होंने इस १८ हज़ार श्लोक वाले ग्रन्थ की रचना कर दी। और लिख दिया इसके श्रवण से बुद्धिहीन को बुद्धि मिल जाएगी ,संतान हीन को संतान ,और धनहीन को धन , देवीभगवती  की कृपा से।

दोनों ग्रन्थ  मिरर इमेज हैं एक दूसरे के जैसे शरीर के बाएं और दाएं अंग। । श्रीमद्भागवदपुराण  और श्रीमद्देवीभागवद पुराण एक ही हैं । केवल कल्प भेद से फर्क आ गया है।एक शाश्वत कल्प की कथा है  एक पदम कल्प की कथा है। कल्प भेद से सृष्टि के बनने में थोड़ा थोड़ा अंतर आ जाता है।

इस कथा के श्रवण से वासुदेव को अपना खोया हुआ पुत्र (कृष्ण )मिल जाता है।

 नारद जी बता रहे हैं जनमेजय को - श्राद्ध देव नाम के ब्राह्मण थे उनकी पत्नी का नाम था श्रद्धा। दोनों ने ब्राह्मणों को बुलाकर पुत्रयेष्ठि यज्ञ कराया। संतान नहीं थी। श्राद्ध देव चाहते हैं मेरे यहां पुत्र ही हो। श्राद्ध देव की पत्नी माँ भगवती से प्रेम करतीं हैं वे चाहतीं हैं घर में उनका ही प्रतिरूप  बेटी हो। पत्नी ने ब्राह्मणों को अलग ले जाकर कहा मैं दो गुणी दक्षिणा दूंगी।लड़की होनी चाहिए।
यज्ञ पूरा हो गया। प्रसव का समय आ गया। पुत्री ही पैदा हुई श्राद्ध देव को। देवी सबको पुत्र ही देवे तो सृष्टि कैसे चले।
श्राद्ध देव अपने गुरु वशिष्ठ देव के पास गए -महाराज इसे पूत बना दो। वशिष्ठ बोले जो हो गया सो हो गया ईश्वर इच्छा है। श्राद्ध देव नहीं माने एक और यज्ञ किया गया और महालक्ष्मी का कायानतरण पुत्र में हो गया।

लिंग परिवर्तन का शरीरविज्ञान सतयुग में मौजूद था। देवीभागवद पुराण सतयुग की ही कृति है।



https://www.youtube.com/watch?v=9G7gzFn2rt4

DEVI BHAGWAT-10

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