शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

क्या आप भी नक्सली हैं? जानिए इस ‘भूतपूर्व वामपंथी’ से My Name is Arundhati Roy and #MeTooUrbanNaxal

वामपंथी आपको कब अपनी सोच का बना देंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। जब मैं अपनी आज से 4-5 साल पुरानी सोच देखता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं भी एक किस्म का वामपंथी ही था। मेरे भीतर यह वामपंथी सोच कैसे घुसाई गई? जाहिर सी बात है स्कूली किताबों और फिल्मों के जरिये। मैं मूर्ति पूजा को ढकोसला मानता था। सारे रीति-रिवाज समय की बरबादी लगते थे। जो धार्मिक हैं उनपर हँसी आती थी। सिर्फ इतना ही नहीं, मेरे घर पर कोई पूजा-पाठ हो तब गायब हो जाया करता था। कहीं घूमने गये और रास्ते में मंदिर वगैरह पड़ा तो सब मंदिर जाते थे मैं बाहर में टाइमपास करता था। फिल्मों में देखता था कि कैसे धार्मिक व्यक्ति मखौल के लायक है। लेकिन हाँ यह मखौल सिर्फ हिंदू आस्थाओं के ही लिए था। यह भी पढ़ें: क्या आपके इर्द-गिर्द कोई शहरी नक्सली रहता है?

तब तो वामपंथ को हमारे भीतर घुसाने के गिने-चुने स्त्रोत थे। लेकिन आज तो स्थिति और भी गंभीर हो गई है। कारण अब सोशल मीडिया नामक हथियार भी इनके हाथ लग चुका है। यहाँ वो गरीबों, किसानों, दलितों, पिछड़ों की आड़ में सवर्णों को विलेन बनाकर बड़ी आसानी से अपनी वामपंथी गंदगी हमारी नसों में उतार रहे हैं। उनका मकसद आपको कोई खाटी वामपंथी बनाना नहीं है। वो जानते हैं कि शहरी हिंदू पिस्तौल उठाकर क्रांति करने नहीं निकलेगा। वह तो आपको अपना बौद्धिक सिपाही बनाना चाहते हैं। उनको इससे घंटा फर्क नहीं पड़ता कि आपने मार्क्सवाद पढ़ा है या नहीं। दास कैपिटल की जानकारी है या नहीं। वह बस चाहता है कि आप इस भ्रम में रहें कि आप इस सिस्टम से लड़ रहे हैं। जब आप इस भ्रम में पड़ते हैं तो उनका संख्या बल बढ़ता है। आगे मैं आपको बताऊंगा कि इस संख्या बल का क्या फायदा है?

हथियारों से क्रांति करने के लिये तो उनके पास ग्रामीण या आदिवासी आबादी है ही। जल जंगल और जमीन के नाम पर फौज तो बना ही ली है, फिर वो आप जैसे पढ़ेलिखे शहरी लोगों पर मेहनत क्यूँ कर रहे हैं? कारण वह जानते हैं कि जो वह चाहते हैं उसके लिये लंबा समय लगेगा। और अपने मकसद के लिये उन्हें केंद्र या राज्य में ऐसी सरकार चाहिये जो उनके किसी कार्य का विरोध न करे। और अगर वह विरोध करती है तब वह आप लोगों को समझाने लगते हैं कि देखो यह हम पर नहीं तुमपर हमला है। हम शहरी नागरिक इस बात से अनजान कि हम वामपंथी प्रोपोगेंडा का शिकार हो चुके हैं ट्विटर पर ट्रेंड करवा रहे हैं कि #MetooUrbanNaxal यह फायदा है संख्या बल का। मौजूदा केंद्र सरकार इन वामपंथियों के सामने झुक नहीं रही है। अभी पांच वामपंथियों को गिरफ्तार किया। लेकिन क्या आपने नोटिस किया कैसे मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में हड़कंप मच गया? यह होता है संख्याबल का फायदा। यह जो ट्विटर पर या हर जगह इन गिरफ्तार हुए वामपंथियों का झंडा उठाये घूम रहे हैं न इनमें से 90 फीसदी को तो पता भी नहीं है कि वामपंथ है क्या। इन्हें न मार्क्सवाद पता है न माओवाद।

कोई सिस्टम 100 फीसदी ठीक नहीं होता। मान लो 10 फीसदी खराबी है भी तो बचे हुये 90 फीसदी को नजरअंदाज कर कैसे उस 10 फीसदी की वजह से लोगों को भड़काया जाये इस पैंतरे से बनते हैं शहरी नक्सली। जो इस तरीके से न बन पाये उसे नारीवादी बना कर जोड़ लो… जो इस पैंतरे से न बने उसे किसी एक जाति के प्रति घृणा पैदा करके जोड़ लो… जो इससे भी न जुड़े उसे सेक्युलर बनाकर जोड़ लो… जो इससे भी न फँसे उसे मजदूर या किसान के नाम पर जोड़ लो… या फिर प्रगतिशीलता के नाम पर जोड़ लो… अंत में इनके वोट से मौजूदा सरकार गिरा दो… इन जैसों के वोट का ऐसा खौफ पैदा करो कि वो वामपंथियों पर हाथ डालने से डरें। जिस तरह हम किसी को एकदम खांटी राष्ट्रवादी बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं और अगर सामने वाले में हल्की सी भी कमी दिखे उसे दुत्कार देते हैं और अपनी संख्या कम करते जाते हैं वामपंथ का वह सिस्टम नहीं है। आप 1 फीसदी वामपंथी भी हैं तो उन्हें चलेगा। अब सवाल यह कि वह शांतिदूतों पर मेहनत क्यूँ नहीं करते? तो इसका कारण यह है वामपंथी सिर्फ और सिर्फ विनाश चाहते हैं। यह काम तो शांतिदूत मुफ्त में कर ही रहे हैं… अलग से ऊर्जा इनपर व्यर्थ करने की क्या जरूरत है? यह भी पढ़ें: जंगलों से सफाया, लेकिन शहरों में बढ़ा नक्सली खतरा

My Name is Arundhati Roy and #MeTooUrbanNaxal

My Name is Arundhati Roy and #MeTooUrbanNaxal

ऐसे कई दुर्मुख और दुर्मुखियाँ जो अतीत में काश्मीर के अलगाव वादियों के मनोरंजन का प्रिय शगल रहें हैं कट्टरपंथियों की गोद में झूला झूले हैं आज दलित हिमायती होने का दम्भ भरते हैं। इन्हें भारतधर्मी समाज का हर आम आदमी पहचाने इनकी असलियत को जाने ये आज के दौर में निहायत ज़रूरी हैं ये ही हैं जनेऊ में गंद के समर्थक कन्हैया -आरामगाह जनेऊ  के खिवैया। इनके एक समर्थक इन दिनों अमरनाथ यात्रा पर जाने का मन बना चुकें हैं। ये जनेऊ पहनते हैं हिन्दू घोषित करवा रहें हैं खुद को ये कई सुर्जेवालों से। ये प्रवक्ता नुमा इनके लाल लंगोट का रंग देखकर कल इन्हें हनुमान भक्त घोषित कर दें ,इस पर हमें ज़रा भी आश्चर्य नहीं होगा। 

अब मिलिए भारतधर्मी समाज के एक ऐसे  शख्स  से जो बिला शर्त भारत को बेहद प्यार करता है और जिसकी पूर्व में दर्ज़ की गई  शिकायत आज जो लोग रस्सा लेकर कूद रहें हैं उनकी मुखर सोच के लोगों की उनके ही घर में नज़रबंदी की वजह बनी है।

आज इनमें से कई कथित विखंडनवादी एक्टिविस्ट आपात काल की दुहाई भी दे रहें हैं और किस प्रकार का प्रलाप, कैसा स्यापा ये भारत भर में कर रहें हैं इसे बूझने के लिए दिमाग पे ज़ोर डालने की ज़रुरत आपको नहीं पड़ेगी।  

‘I’m a small person’: Meet Tushar Damgude, whose police complaint sparked the crackdown on activists

He accuses activists such as Sudhir Dhawale, Varavara Rao and Jignesh Mevani of spreading violent ideas and inciting Dalits to rise against the upper castes.



On Thursday afternoon, as Tushar Damgude juggled interviews with half a dozen journalists, he claimed he felt trapped by his “political neutrality”.

The 38-year-old businessman from Pune has been in the national limelight for the past two days, after a police complaint he filed in January led to a crackdown on human rights activists who now stand accused of being “urban Naxals waging a war against the government”.
“I did not realise things would go this far when I filed my complaint,” said Damgude, a history graduate with a small construction business. “I support anyone who is a nationalist and I am against anyone who is anti-national. But today I am being hounded by the media as if I am an accused myself.”
Damgude’s complaint, which the police filed as a first information report on January 8, alleged the violence that marred a Dalit commemoration at Bhima Koregaon on January 1 was instigated by leftist activists with alleged Maoist links who had spoken at a public meeting called Elgar Parishad the previous day.
Acting on his complaint, the Pune police raided the homes of seven activists across the country in April. Two months later, on June 6, the police arrested five activists – Sudhir Dhawale, Surendra Gadling, Mahesh Raut, Shoma Sen and Rona Wilson – from Mumbai, Nagpur and Delhi. Labelling them “urban Maoist operatives”, the police claimed to have found evidence that they were plotting to assassinate Prime Minister Narendra Modi. On August 28, the police raided 10 more activists and arrested five of them – Arun Ferreira, Vernon Gonsalves, Gautam Navlakha, Varavara Rao and Sudha Bharadwaj. The Supreme Court stayed the arrests and ordered them placed under house arrest until September 5.
The police have made sweeping allegations against the activists, describing them as “active members” of the banned Communist Party of India (Maoist) who are involved in a “top-level conspiracy” to overthrow the “sovereignty and integrity of the country” by establishing a nationwide “anti-fascist front”.
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For Damgude, the police’s allegations vindicate his complaint. “Their agenda is to mislead the Dalit community, to convert them to Maoist thought…and adopt the path of violence,” his complaint said. “Through their publications, books and speeches, they want to increase enmity in society.”
The controversial arrests triggered by his complaint have invited media attention, and Damgude has spent the past two days trying to convince people that he holds “open-minded”, neutral views.

They want Dalits to rise against upper castes’

“I am a writer,” Damgude told a string of reporters in a Pune restaurant on Thursday. “I write on social media about all kinds of issues because I have khule vichar [an open mind]. I believe in meeting and having discussions with everyone and I am open to talking to all the accused in this case as well. They are not my personal enemies.”
For the past few months, Damgude’s Facebook page has been full of posts attacking Sudhir Dhawale, Varavara Rao and other leftist figures for allegedly glorifying Maoism, spreading violent ideas and purchasing weapons. Both in his complaint and on social media, Damgude highlights revolutionary songs, pamphlets and speeches as proof of a violent conspiracy to attack the country.
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“In 2014, Dhawale called for a ‘struggle on the streets’ as part of speech and in 2017, Jignesh Mevani used the same language – ‘struggle on the streets’ – in his speech at Elgar Parishad,” Damgude said. “These people want Dalits to rise against the upper castes. They have said things like, ‘August 15 is not our day, only January 26 is our day.’ That is the extent to which they go.”
August 15 is the Independence Day and January 26 marks the Republic Day, when India’s Constitution, shaped largely by Bhimrao Ambedkar, came into effect.
Damgude’s Facebook page has a picture of him with Sambhaji Bhide, a Hindutva leader accused of inciting violence against the Dalits at Bhima Koregaon. Fellow Hindutva leader Milind Ekbote is also an accused in the matter, but neither have been arrested yet despite a Supreme Court order.
Damgude claimed he has never met Ekbote while his picture with Bhide, whom he respectfully refers to as “Guruji”, has been needlessly played up in the media. “I had not met Guruji before April this year, and I went to meet him only because I read in the media that he had made a speech endorsing Manusmriti,” he said. “So when I met him, I told him it is more important to talk about other issues facing the country right now, like the plight of widows and farmers. And he agreed with me.”
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Now that the picture has gained wide media attention, Damgude said he has been getting angry calls from Bhide’s followers. “They abuse me and ask me, ‘Are you so big that you can go tell Guruji what to do?’”

‘I have friends in all parties’

According to Damgude, few people understand his “neutrality” in political matters because he is both friendly with, and critical of, all parties. “I have photos with Raj Thackeray [of the Maharashtra Navnirman Sena] also,” he said. “I don’t reject any political party because I have friends in all of them. I have done some campaigning for the Congress too.”
While he believes in Hindutva, Damgude emphasised that he is critical of extremism within it. “Just like the Maoist forces are trying to destabilise the country, Hindutva is being hijacked by some forces that are not truly Hindutva – like the Sanatan Sanstha,” he said. “Killing people in the name of gau raksha, beating people on Valentine’s Day – that’s not Hindutva. I have always written against all of this.”
Damgude claimed he has also vehemently spoken out against the Marathas’ demand for caste-based reservations in Maharashtra. “I am a Maratha myself, but I have critiqued the movement,” he said. “I have received threat calls from Marathas too.”
In spite of the media scrutiny, Damgude does not regret filing his complaint against people he believes are “Maoist forces” out to destroy India. However, he is wary of talking about his family. “I have two small children and now because of the FIR, my family is under threat,” he said, without explaining further. “They have been accused of a plot to kill the PM, and I am just a small person.”
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बुधवार, 29 अगस्त 2018

The facts behind coconut oil is 'pure poison' claim(HINDI ALSO )

मिथ :नारियल का खाद्य तेल जहर खाने के समान है 
यथार्थ :निस्संदेह साइनाइड विष है और इसी रूप  में रैटलस्नेक (एक प्रकार का अमरीकी विषधर जो चलते रेंगते वक्त खड़खड़ की  ध्वनि करता है )के वेनम (विष )को जाना जाता है लेकिन ठीक यही बात नारियल के तेल के बारे में कहना वैज्ञानिक सत्य नहीं है ,विज्ञान रिपोर्टिंग नहीं हैं।सनसनी है दुष्प्रचार है प्रोपेगेंडा है।  

एक छोर पर उपभोक्ता है जो इसके इस्तेमाल  को सेहत के लिए अच्छा मानता है दूसरे छोर पर एक शोध करता आचार्य हैं जो इसे  खाना जहर खाने जैसा बतलाते हैं। 

अब अगर इसमें संतृप्त वसाओं का स्तर ज्यादा है तब भी क्या यह कहना समीचीन होगा के इसका खाद्य रूप में सेवन उपभोक्ता के लिए  जहर समान है ?हमारा उत्तर है नहीं। अलबत्ता ऐसा कहना बहुप्रचारित करना उत्तेजना पैदा करने वाला वक्तव्य ज़रूर कहा जाएगा। व्यर्थ का हो हल्ला है जो स्वास्थ्य विज्ञान के माहिरों के गले से नीचे नहीं उतरेगा। भले ३७ फीसद अमरीकी पोषणविज्ञानी  इसके पक्ष में न हों जबकि ७२ फीसद अमरीकी इसे सेहत के लिए अच्छा ही मानते हैं।(एक सर्वे न्यूयॉर्क टाइम्स ).
 भले दीर्घावधि इसका सेवन सेहत के लिए लाभदायक साबित न हो लेकिन इसे ज़हर बतलाना सनसनी पैदा करने से ज्यादा नहीं माना जाएगा। जहां जहां नारियल ज्यादा पैदा होता है वहां वहां इसका चलन खाद्य उत्पादों में सहज रूप होता आया है ,दक्षिण भारत इसका प्रमाण है। 
आखिर खेसारी दाल (रेड ग्राम एक प्रकार का )और नारियल में कुछ तो फर्क होना चाहिए।नारियल के ऐसे कोई दुष्प्रभाव भी सामने नहीं आये हैं। कंट्रोल्ड ट्रायल करिये कौन रोकता है लेकिन उत्तेजना खामखा की उससे हरचंद बचना है।  

चलिए इसमें मौजूद वसाओं के नज़रिये से ही देखें तो इसका स्थान अनेक प्रकार के खाद्य तेलों में दरमियानी ही कहा जाएगा। जबकि इसमें ८० फीसद से ज्यादा संतृप्त वसायें मौजूद होना बतलाया गया है। 
अमरीकी हृदय संघ के माहिर सिफारिश करते हैं ,संतृप्त वसाओं की मात्रा प्रतिदिन की खपत में ५- ६ फीसद ही भली यानी दिनभर में १३ ग्राम से ज्यादा नहीं। संघ  संतृप्त वसाओं के बरक्स बहु -असंतृप्त और एकल असंतृप्त वसाओं को बेहतर बतलाता है। 
साल्टिड संशाधित पीले बटर से कहीं सुरक्षित  है नारियल का तेल। भले एक्सट्रा वर्जिन ऑलिव आयल इससे बहुत बेहतर माना गया है। 
यह मान लेने में कोई हर्ज़ नहीं है इसके बारे में और अध्ययन होने चाहिए एकल अध्ययन से एक धुर निष्कर्ष निकालना अतिशयोक्ति  ही कहा जाएगा। 
भले इसमें सेचुरेटिड फेट ज्यादा है लेकिन रेड मीट की तरह इसे उछाला न जाए जिसके ज्ञात दुष्प्रभाव कैंसर समूह के रोगों को लेकर सामने आते रहें हैं। मसलन रेड मीट और कोलन कैंसर की चर्चा आम रही है। 
हम भी मानते हैं संतृप्त वसाओं का ज्यादा सेवन हृदय के लिए अमित्र चिकनाई (LDL CHOLESTEROL )के खतरे के वजन को बढ़ाता है। लेकिन नारियल तेल में एक विशेष गुण  भी है इसमें मौजूद संतृप्त वसा मित्र चिकनाई (HDL CHOLESTEROL )की मात्रा को रक्त में बढ़ाती है जो खून से अमित्र कोलेस्टेरोल एलडीएल को हटाता है। नारियल तेल में लॉरिक एसिड ज्यादा मात्रा में मौजूद रहता है जो एचडीएल को बढ़ाता है। 
मोडरेशन इज़ दी की 

अति सर्वत्र वर्जयते -सिफारिश की गई मात्रा से ज्यादा इसका सेवन प्रतिदिन करना ही क्यों है जबकि भारतीय नस्ल की गाय का मख्खन भी अमृत स्वरूप उपलब्ध है जो किसी औषधि से कम नहीं। अति यहां भी नहीं। कुछ असंतृप्त वसा कुछ संतृप्त और शेष गाय का मख्खन (कन्हैया वाला पानी से संसिक्त )खुराक में शरीक करिये।    

 Cyanide is a poison. Rattlesnake venom is a poison. Certain household products can be a poison. But coconut oil? One professor seems to think so, colliding head-on with consumers who believe it's good for them.
In her lecture at the University of Freiburg -- entirely in German and posted in July -- professor Karin Michels, of the university's Institute for Prevention and Tumor Epidemiology, calls the health claims surrounding coconut oil "absolute nonsense" and says it's "pure poison" for its saturated fat content and its threat to cardiovascular health. The video of her lecture has amassed close to a million views and counting.
"Coconut oil is one of the worst things you can eat," Michels said.
    While others have taken a more measured view, they hardly buy into the ballyhoo. A 2016 surveyin the New York Times suggested that 72% of Americans think coconut oil is healthy, versus only 37% of nutritionists polled.
    "There are many claims being made about coconut oil being wonderful for lots of different things, but we really don't have any evidence of long-term health benefits," said Dr. Walter C. Willett, professor of epidemiology and nutrition at the Harvard T.H. Chan School of Public Health, where Michels is also an adjunct professor.
    "Coconut oil is somewhere in the middle of the spectrum in terms of types of fats. It's probably better than partially hydrogenated oils, [which are] high in trans fats, but not as good as the more unsaturated plant oils that have proven health benefits, like olive and canola oil," Willett previously told CNN.
    Health organizations tend to discourage the use of coconut oil, which is more than 80% 
    saturated fat. The American Heart Association says it's better on your skin than in your food, and it recommends that no more than 5% or 6% of your daily calories come from saturated fats -- about 13 grams per day. The association also advocates replacing coconut oil with "healthy fats" such as polyunsaturated fats and monounsaturated fats, like those found in canola and olive oils, avocados and fatty fish.
    Coconut oil is "probably not quite as 'bad' as butter but not as good as extra virgin olive oil," Kevin Klatt, a molecular nutrition researcher at Cornell University who is studying the metabolic effects of coconut oil, previously told CNN.
    Klatt cautions that we should not develop too strong of an opinion of it without more data. "But at the same time, you have to be evidence-based ... and [currently], the evidence reflects benefits for olive oil, fish, nuts and seeds -- so that should be the focus in the diet."
    Coconut oil is extracted from the meat of the fruit. It contains mostly saturated fat, which is also found in large quantities in butter and red meat. Like other saturated fats, coconut oil increases LDL cholesterol, commonly known as "bad" cholesterol, which has been associated with increased risk of heart disease.
    But coconut oil also raises HDL, the "good" cholesterol, especially when replacing carbohydrates in the diet. This may be due to its high content of a fatty acid known as lauric acid. (This is also noted in Michel's statement summarizing her talk.)
    "Coconut oil is half lauric acid, which is a little bit unique," Klatt said, as the acid seems to raise HDL more than other saturated fats and is rarely found in such high amounts in foods.
    Still, though the increase in HDL seen with consumption of coconut oil may offset some of the disease risk, it's still not as good as consuming unsaturated oils, which not only raise HDL but lower LDL, according to Willett.
    Complicating matters is the fact that we still don't know for sure what exactly a high HDL translates to in terms of health risk. "There's been debate about the role of HDL," Willett cautioned. "Partly because there are many forms of HDL which have different health consequences ... which has made the water murky."
    For example, there are different forms of HDL that do different things. One role is to help take LDL cholesterol out of the bloodstream. "But some forms of HDL don't do that," Willett said, "so we don't know for sure that higher HDL is better."
    While an elevated LDL level is used as a marker for predicting cardiovascular risk and doesn't always translate to heart attacks, experts say it's still cause for concern.
    Research has found a mixed bag when it comes to saturated fats, and coconut oil in particular. A 2015 Cochrane review found that cutting back on saturated fats also lowered the risk of cardiovascular disease by 17% -- but it didn't change the risk of dying, and there was no benefit to replacing these fats with protein or starchy foods.
    Other research specifically on coconut oil has explored its effects on metabolism, appetite and cognitive function -- but "you can't infer from ... studies what coconut oil will and will not do. We need better controlled trials," Klatt said.
    "Right now, the internet is jumping the gun and going way beyond the evidence."
    Like other oils, coconut oil is calorie-dense, which means consuming large amounts without reducing other calorie sources can lead to weight gain. Just one tablespoon has 120 calories, about the same as a large apple or four cups of air-popped popcorn.
    "Oil is a really easy way to increase the energy density of a food. Things like almonds have a lot of fat, but it's easier to overeat pure oil than overeat pure almonds," Klatt said.
    In small amounts, however, coconut oil can have a place in one's diet. But for day-to-day use, experts recommend vegetable oils such as olive, canola or soybean oil, along with nuts and seeds, as a primary source of fats in the diet.
    "It's not that you have to absolutely avoid coconut oil, but rather limit coconut oil to where you really need that special flavor, like for Thai food or for baking a special dessert," Willett said.
    Klatt agreed, saying that coconut oil "is certainly fine to consume occasionally, when a recipe calls for it."

    बुधवार, 15 अगस्त 2018

    ईश्वर : सर्वभूतानां हृदेश्यरजुन तिष्ठति

    हिंदुत्व में सेवा भाव की अवधारणा 

    "सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे भवन्तु निरामया :

    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत। "

    अर्थात सब सुखी हो ,सब आरोग्यवान हों ,सब सुख को पहचान सकें ,कोई भी प्राणि किसी बिध दुखी न हो। 

    May all be happy ;May all be without disease ; May all see auspicious things ; May none have misery of any sort.

    सनातन  धर्म (हिंदुत्व ) सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानता है। 

    परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

     परपीड़ा सम नहीं, अधमाई।। 

    सेवा यहां एक सर्व -मान्य सिद्धांत  है।मनुष्य का आचरण मन ,कर्म  ,वचन ऐसा हो जो दूसरे को सुख पहुंचाए। उसकी पीड़ा को किसी बिध कम करे।

    सेवा सुश्रुषा ही अर्चना है पूजा है:

    ईश्वर : सर्वभूतानां  हृदेश्यरजुन तिष्ठति।  

    जो सभी प्राणियों के हृदय प्रदेश में निवास करता है। सृष्टि के कण कण में उसका वास है परिव्याप्त है वही ईश्वर पूरी कायनात में जड़ में चेतन में। इसीलिए प्राणिमात्र की सेवा ईश सेवा ही है। 

    सेवा के प्रति हमारा नज़रिया (दृष्टि कौण )क्या हो कैसा हो यह महत्वपूर्ण है :

    तनमनधन सब कुछ अर्पण हो अन्य की सेवा में। 

    दातव्यमिति यद्दानं दीयतेअनुपकारिणे। 

    देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम।| 

    That gift which is made to one who can make no return ,with the feeling that it is one's duty to give and which is given at the right place and time and to a worthy person ,that gift is considered noble.

    तोहफा या दान किसी भी प्रकार की सहायता बदले में कुछ प्राप्ति की आशा न रखते हुए कर्म समझकर की  जाए ,स्थान और अवसर की  आवश्यकता और पात्र को देखकर की जाए। जरूरत मंद को आड़े वक्त मदद दी जाए।

    जीवने यावदादानं स्यात स्यात् प्रदानं ततोधिकम। 

    Let us give more than what we take in life .

    जीवन ने हमें जो दिया है हमें सबकुछ जो भी मिला है हम उससे ज्यादा देवें। 

    मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) के सेवा के प्रति भाव और सेवा भाव के प्रति उनकी प्रेणना का स्रोत 

    The best way to find your self is to lose yourself in the service of others .

    Mahatma Gandhi was quite impressed with the story of Ranti Deva mentioned in Bhagvata Puran written by Sage Veda Vyasa.Mahatma Gandhi adopted Ranti Deva's message as a basis for all his seva work .

    हमारे पुराणों में अक्सर कहानियों किस्सों ,कथाओं के माध्यम से आम औ ख़ास को सन्देश दिया गया है। राजा रंति  देव की कथा आती है। एक बार उनके राज्य में भीषण अकाल पड़ा।महाराजा ने अन्न न ग्रहण करने  का प्रण लिया ,वह तब तक कुछ भी ग्रहण  नहीं करेंगे जब तक प्रजा में एक भी भूखा है। ४८ दिनों तक उन्होंने अन्न ग्रहण नहीं किया। जब वह एक ग्लास शीतल जल से अपना उपवास संपन्न करने जा रहे थे तभी पुल्कसा का आर्तनाद उन्हें सुनाई दिया -जल चाहिए मुझे। आपने वह जल उसे ही दे दिया। 

    जैसे ही वह अन्न का कोर तोड़ के उसे ग्रहण करने का उपक्रम कर रहे थे उसी क्षण एक अतिथि उनके द्वार पर आ गया। राजा ने अपने हिस्से का  भोज्य उसे दे दिया। इस प्रकार प्रजा जनों के सारे संताप को उन्होंने भोगा।  

    रविवार, 12 अगस्त 2018

    तीन तलाक की आड़ में मुस्लिम मौतरमाओं का शोषण करने वाले जब यह कहते हैं के राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था तब ये लोग ये बिलकुल नहीं जानते के राम कौन हैं

    तीन तलाक की आड़ में मुस्लिम मौतरमाओं का शोषण करने वाले जब यह कहते हैं के राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था तब ये लोग ये बिलकुल नहीं जानते के राम कौन हैं। 

    न ये दशरथ पुत्र को जानते न राम को। मुनि वशिष्ठ जी ने दशरथ के बड़े पुत्र का नाम राम सुझाया था जो इस बात का प्रमाण है के राम ,दसरथ पुत्र राजा राम से पूर्व  थे। 

    राम का अर्थ है रमैया जो रमा हुआ है ओतप्रोत है इस सृष्टि में पूरी कायनात में करता पुरुख की तरह जो बैठा हुआ है कायनात के ज़र्रे ज़र्रे में हमारे हृदयगह्वर में। 

    राम ,अल्लाह ,वाह गुरु मज़हब विशेष से ताल्लुक रखने वाले नाम भर नहीं हैं ये भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति सूत्रों की मनोरम माला के यकसां मनके हैं। 

    शिव ने सती  का परित्याग एक और धरातल पर किया था। सती ने सीता का रूप भरके शिव शंकर भोले के गुरु राम की परीक्षा ली थी। बस शिव ने कहा ये तो मेरी माता का रूप भर चुकीं हैं अब मेरे लिए पत्नी रूप में स्वीकार्य कैसे हो।  ये मेरे गुरु का अपमान और अवमानना होगी। 

    राजा राम प्रजातंत्र के शिखर को छूते  हैं  उनके गुप्तचरों ने उन्हें बतलाया था सीता के बारे में एक धोबी अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हुए कैसे उपालम्भ  दे रहा था। और राम के लिए उसकी राय भी उतनी ही कीमती थी। यही थी राम राज्य की अवधारणा जहां प्रजा का छोटे से छोटा भी अपनी राय रख सकता था। उस राय को भी  वजन दिया जाता था।

    मूल- रामायण  'वाल्मीकि रामायण 'में धोबी प्रसंग और सीता परित्याग का उल्लेख नहीं है। 

    अल्लाह का भी अर्थ यही है जो सबसे पहले था अव्वल था। 

    हराम को हलाला कहने वाले लोग राम के बारे में टिपण्णी न करे ये अशोभन है किसी मज़हब तक सीमित नहीं हैं राम संस्कृति के सूत्र की लड़ियाँ हैं राम ,ईश्वर अल्लाह ...

    राम भारत की भोर की पहली किरण है। कोई किसी दुष्ट की आलोचना करने लगे ,भले लोग कहते हैं छोड़ो  यार किसका नाम ले दिया राम राम बोलो। 

    अंतिम यात्रा के वक्त भी -

    'राम नाम सत्य है  ,सत्य बोलो गत्य है '

    बोला जाता है। सत्य वही है जो सदैव है। जो सदैव है वही राम है अल्लाह है वह गुरु है अकाल पुरुख है। राम किसी शरीर का नामा नहीं है राम वह ज्ञान है जो हमें हमारे निज स्वरूप आत्मन का ज्ञान करवाए। 

    अंत में निकला यही परिणाम राम से बड़ा राम का नाम। 

    https://www.youtube.com/watch?v=wqcuc74xbw0



    रघुपति राघव राजा राम ,पतित पावन सीता राम ,

    ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सम्मत दे भगवान्।  

    रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम सीता राम सीता राम भज प्यारे तू सीता राम रघुपति ... ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान रघुपति ...

    रात को निंदिया दिन तो काम कभी भजोगे प्रभु का नाम करते रहिये अपने काम लेते रहिये हरि का नाम रघुपति ...

    https://www.youtube.com/watch?v=lqNpCH-xcGE


    SHREE RAM BHAJAN :- RAGHUPATHI RAGHAVA RAJA RAM | LORD RAMA BHAJAN ( FULL SONG )

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    Published on Apr 4, 2017

    शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

    और नेहरू के आरआरएस विरोध को इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू ने विरासत में पाया था इसीलिए आपात काल के काले दिनों में इन सेवकों पर जम के कहर बरसाया था

    नारी संस्करण हैं नेहरू का सोनिया 

    गौरांग प्रभुओं की पत्नी  गौरांगनियों के प्रति नेहरू का मोह ही सोनिया के रूप में पुनर-अवतरित हुआ है इसीलिए देश तोड़क तमाम तरह की प्रवृत्तियां सोनिया में देखी  जा सकतीं हैं और वे ज्यादा मुखर हुईं हैं सोनिया में चाहे वह सिख और जैन पंथों को सनातन धर्मी धारा से अलग दर्ज़ा दिलवाने का कुकृत्य रहा  हो या हाल ही में कर्नाटक में लिंगायतों को सनातन  धर्मी वृहद् समाज से अलग छिटकाने का असफल प्रयास। 

    शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के उत्पीड़न का मामला रहा हो  या इतर साध्वियों पर षड्यंत्र के  तहत मामले गढवाने का। 

    इसीलिए इनकी संतति राहुल मतिमंद रह गए हैं ऐसे लोगों की संततियां बे -सुध ज़मीं से कटी हुई ही रहतीं हैं इसीलिए राहुल को यह इल्म ही नहीं रहता ,वह  क्या बोल रहें हैं क्या सुन रहें हैं। 

    सनातन धर्म में यह मान्यता रही है के पूर्वजों की आत्माएं लौट लौट कर उसी कुनबे में आती हैं ,रूप बदल के लिंग बदलके स्थान बदल के। 

    नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयं संघ नाम की सांस्कृतिक निष्ठावान राष्ट्र की  एकता को समर्पित संघ को नाहक ही न सिर्फ नौ महीनों से भी ज्यादा अवधि के लिए  प्रबंधित रखा था ,लाल किले में ढाई महीना चलने वाली पैरवी ने जबकि संघ को किसी भी बिध गांधी हत्या के लिए दोषी नहीं पाया था। 

    नेहरू को इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठन से यही खतरा था के यह देश की अस्मिता को प्रभुता को एक रखे हुए है भारतधर्मी समाज के लोग इसे बेहद प्यार करते हैं कहीं कांग्रेस वृहत्तर भारतधर्मी समाज की नज़रों में दोयम दर्ज़े पे न चली आये। नेहरू देवताओं के शासक इंद्र की तरह ताउम्र संघ से डरे रहे उस पर बहुविध फ़र्ज़ी आरोप मढ़वाते   रहे ,संघ के नाम चीन लोगों की आकस्मिक मृत काया  आज भी रहस्य बनी हुई है। किसने करवाया था यह सब। पूरा देश जानता है।   

    और नेहरू के आरआरएस विरोध को इंदिरा प्रियदर्शनी नेहरू ने विरासत में पाया था इसीलिए आपात काल के काले दिनों में इन सेवकों पर जम के कहर बरसाया था। उस दौरान हिन्दुस्तान की जेलों में कैद एक लाख तीस हज़ार लोगों में से एक लाख  सिर्फ स्वयं सेवक थे अलावा इसके 'मीसा' जैसे गैर -वैधानिक अस्त्र के तहत जिन ३०,००० लोगों को अमानवीय हालातों में रखा गया था उनमें से २५ ,०००  स्वयं सेवक थे। सारे उत्पीड़न को इन सेवकों ने चुपचाप पी लिया था ताकि भारत धर्मी  समाज को अभिव्यक्ति की आज़ादी का मौलिक अधिकार बहाल हो सके।

    जो मतिमंद राहुल आज यह पूछता है ,संघ में महिलाएं क्यों नहीं  है उसे क्या मालूम शाह कमीशन की सुनवाई के दौरान संघ की सहयोगी संस्थाओं से बड़ी संख्या में माताएं और बहनें स्वयंसेवकों के लिए सुनवाई के दौरान खाना और मिठाई लेकर पहुंचतीं थीं। संघ उतना ही नहीं जितना इस लाडले को समझाया गया है।  

    http://www.geetachhabra.com/aboutgc/book_review/Secrets-of-RSS.php

    Secrets of RSS : Demystifying the Sangh

    via Book Extract - Organiser published on January 20, 2011

    By Ratan Sharda 
    RSS, as an organisation has stood upto all kinds of persecution through democratic means since its first brush with government persecution with murder of Mahatma Gandhi to current times. It is again being targeted and efforts are being made to somehow link it to terrorism.
    IT is amazing that not much is known about Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) in spite of one of the oldest mass Indian organisation, being around for 85 years and widely accepted as the largest NGO in the world. People only have half baked information about it. Here are some extracts form the book:-

    The Ultimate Secret
    ……RSS, like most successful social or cultural movements, is ignited purely with fire emanating straight from the heart—heartfelt pain and compassion for the society and a burning desire to do something to improve it. The aura of patriotism and burning desire for nation building is all enveloping through its various activities and programmes.
    ……The spirit of sacrifice that RSS invokes in its members translates in such simple acts that one doesn’t even note it. What value would you attach to an RSS worker Bhaurao Belvalkar’s sacrifice who went as a teacher to the annual month long Sangh Shiksha Varg without a single break for 36 years, foregoing his summer holidays and simple pleasures of family life?
    Secretiveness of RSS and Media
    I had noted in the beginning of the book that the exercise of writing this book began with a news story that talked of secretiveness of RSS. I am sure, by now, any unbiased reader would have realised that there is nothing secret about RSS’s working and its organisation. It is more a problem of lack of familiarity with the idiom and language that RSS uses, which is different from the ones established by the dominant intellectual elite and media. It is also a problem to understand an organisation which doesn’t work on established norms of a typical Indian social organisation, its non-interest in publicising itself or its work.
    In the first year after his appointment, a well known scholar asked Guruji during his Bombay tour in 1941, “Are you opposed to publishing literature about Sangh? Why don’t you create various kinds of literature to spread Sangh ideology?” Guruji’s response was, “I hope that a great scholar like you would be well aware of the tradition of this country. We give more importance to spoken word— ‘shruti’. As long as one can manage with the spoken word, one should work through this system only.
    …….This RSS phobia and anti-Hindu sentiment has gone to such ridiculous length that Arjun Singh’s friend Digvijay Singh, the humanist member of Congress who still supports theory of false police encounter in Batla House case in Delhi, or commiserates with terrorists’ families, is alarmed that students educated in RSS run schools are entering portals of Indian Administrative Services. He is worried about incursion of nationalist philosophy but not about amoral education being imparted by our schools that throw up rootless educated youth with no idea about ancient Indian culture and spiritual wealth! And press laps all this up happily without questioning his honestly towards his own party, government and police force. It is not at all embarrassed at such phobic and intellectually corrupt politicians corrupting Indian social arena totally. The same press which has gone to town today when Arjun Singh is down and out about Union Carbide story was totally asleep when the incident actually happened. It didn’t follow such a shameful story. Probably, Arjun Singh could gain their ‘empathy’ and persuade them to kill such stories with his well know tricks of the trade at that time. The fact that a person like Anderson could not have escaped without complicity of the Centre is being handled very ‘sensitively’ by media so that ‘fair name’ of Rajiv Gandhi is not besmirched. The Union Carbide tragedy has been reduced to Anderson’s escape and all other worst aspects of government’s apathy, negotiating most pitiable and embarrassing settlement in financial terms, misuse of funds etc. have all been forgotten in this most shameful episode in post Independence history.
    However, inspite of the examples I have cited above, I feel that for this state of affairs, RSS has to blame itself to some extent. Since it is an abiding part of mental makeup of the RSS workers based on the founder’s directive to keep away from publicity and propaganda and work silently, it is difficult to break away from this method of working. I think, this idea has been stretched too far, for too long. There is a sense of negativity about media in RSS establishment for the reasons noted above. On the other hand, media is more responsible for such a negativity and lack of interest in it, not RSS. For RSS, media is unnecessary waste of time, or at the best, a necessary evil. It has, not so far, looked at it as a crucial tool to disseminate its views and ideology; as something that is a must in today’s battle for the minds. I hope the positive nationwide impact that Mohanrao Bhagwat’s statement immediately after Allahabad High Court judgment created and the way media carried it for days will convince RSS media managers (if there are any) that media can respond positively if handled well and given due weightage in its public relations exercise inspite of carrying a secular chip on its shoulders.
    Hindus, RSS and Saffron Terror
    Last few months have been vitiated by secular lobby ably supported by Congress-UPA government to implicate Hindus and RSS as terrorists to please its vote bank. The duplicity of this lobby vis a vis Sangh and Hindus is exposed very well by the coverage of a news of manhandling of Mirwaiz Farooq in Chandigarh by Kashmiri Hindus and supposedly VHP workers on 25th November. TV news channels, especially Headlines Today went overboard in describing this incident as growing intolerance of Indians (read Hindus) that is ‘hallmark’ of Indian society. Now, imagine a Hindu missionary espousing some Hindu cause against some alleged Muslim atrocities and Muslim youth had attacked him, what would be the reaction? I am sure, it would be – Hindu seer (or whosoever) had provoked Muslim youth who felt aggrieved about ‘xyz’ cause, it could be any ‘cause’.
    Worthy commentators forgot that nearly 4 lac Hindus have been thrown out of Kashmir by ‘tolerant’ Muslim leaders in the name of ‘liberal’ Kashmiriyat as they were inimical to their goal of separatists. And after more than two decades, if a few Kashmiri youth feel anger at about their fate – being refugees in their own country, of living in pitiable conditions for years with no promise of return to their homeland, without any rights or privileges that any Indian enjoys and more so a Kashmiri (read Muslim) citizen; our intellectual leadership is horrified. They are not surprised that not a single Hindu Kashmiri has really turned terrorist inspite of years of persecution. Do they wish in their hearts that they should also turn terrorist so both sides look evenly balanced and ‘poor Kashmiris’ who threw out their own flesh and blood are not shown in poor light?
    Coverage or lack of it about blockade in Manipur for weeks leading to untold hardships can be attributed simply to the fact that sufferers are local tribes while perpetrators are extremists and terrorists belonging to Christian groups supported in most of the cases by local Church. There is no outrage in chatteratti and self-appointed opinion leaders, or in media.
    I have quoted elsewhere from Francois Gautier and Koenrad Elst etc. that Hindu community on the receiving end for centuries having lost millions of its members to hordes of violent marauders culminating in Partition of its mother country has not reacted with any extreme actions except when provoked through riots. They have not tried to set the wrongs right through extremist terror whether it is North East, or Kashmir or any other part of India facing terror attacks for more than a decade now (Infact, much longer in North East). We remember 26/11 but our memories are short; more horrendous acts have taken place for years. If after so much of provocation, only a handful of Hindus have been allegedly found to have taken to the path of violence, it only underlines the non-violent nature of Hindus due to their cultural ethos. Instead of appreciating this tolerance, Hindus are being labeled ‘saffron terrorists’ with only a few shreds of evidence. They are exceptions who are sought to be made an example of Saffron terror.
    RSS, as an organisation has stood upto all kinds of persecution through democratic means since its first brush with government persecution with murder of Mahatma Gandhi to current times. It is again being targeted and efforts are being made to somehow link it to terrorism. Look at the simple facts, 85 years of a highly disciplined and well networked organisation, millions of members across India. An organisation that is under microscopic gaze of secular and Marxist lobby all these years ably supported by police and intelligence agencies. But, they have not been able to stick any dirt on it about terrorism or serious violence all these years. Recall that it could wage an underground fight against Emergency in a totalitarian police state with its vast network of volunteers and sympathisers for nearly 18 months. Imagine what RSS can do if it takes up extremist path earnestly…….
    (Manas Publications, email:manaspublications@vsnl.com)