रविवार, 25 अक्टूबर 2015

मुखचिठ्ठे (फेस बुक )को कब भाया है , वो चेहरा जो हरजाई हो।

पेंटिंग्स के सब्जेक्ट्स सी तुम ,

मनभाऊ छवि लिए आई हो। 

फेसबुकियों  को हरषाई हो। 

निरख निरख निज की छवि को ,

पल पल प्रतिपल मुस्काई हो ,

तुम किसकी गाढ़ी कमाई हो ,

मुखचिठ्ठे (फेस बुक )को कब भाया है ,

वो चेहरा जो हरजाई हो। 

फेसबुक को बहुत लुभाई हो ,

कान्हा (कृष्ण कन्हाई )की तुम्ही लुगाई हो। 

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