शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

एक और लोकप्रिय मिथ है :कैंसर संक्रमणकारी है छूतहा रोग है। यथार्थ में यह नान -इंफेक्शश है एक से दूसरे व्यक्ति को इसकी छूत नहीं लगती है।

भले सभी प्रकार के कैंसरों का समाधान अभी हमारे पास न सही लेकिन यह भी उतना ही सही है ,हमारी ही ला -परवाही ,समय से रोग का पता न लग पाना ,कभी कभार गलत रोगनिदान और दवा का मयस्सर न होना भी हमें मारता है लेकिन कैंसर का मतलब तयशुदा मौत नहीं है। समय रहते रोग का पता पड़ने और इलाज़ मयस्सर होने पर अनेक अंगों के कैंसर से रोग मुक्ति सम्भव है भले पूर्णतया न सही।

भले कैंसर रोग शरीर में अपना स्थान बदलता है लकिन इसका मतलब यह न लगाया जाए की शरीर को यह विनष्ट ही करता है और अंगभंग की नौबत आती ही आती है। अब अंग को सुरक्षित भी रखा जा सकता है। मरीज़ का पुनर्वास भी संभव है।

रेडिओथिरेपी (विकिरण चिकित्सा )और कीमोथैरेपी (रसायन देकर इलाज़ ) दोनों का संग साथ मरीज़ की जीवन अवधि बढ़ाने में कामयाब साबित हुआ है।

भले भारत में ऐसी सुविधाएं दक्षिण और पश्चिम भारत में ज्यादा केंद्रित हैं और कैंसर के माहिरों और अन्य सम्बद्ध स्वास्थ्यकर्मियों का भारत में न सिर्फ नितांत अभाव है घोर विषम अनुपात भी है ले देकर २००० कैंसररोगों के माहिर हमारे यहां उपलब्ध है जबकि मरीज़ों का आंकड़ा दो करोड़ के पार चला गया है।उत्तर तथा केंद्रीय भारत पीछे है। हर बरस दस लाख से भी ज्यादा नए मामले सामने आते जा रहे हैं।जबकि कैंसर रोगों के माहिर तथा अन्य सम्बद्ध स्वास्थ्य कर्मी इस क्षेत्र में बहुत काम आ रहे हैं।

कैंसर रोगों की बाबत फैले हैं अनेक मिथ :

एक मिथ यह भी कैंसर रोगों के बारे में रहा है ,कैंसर शुरू से ही पीड़ा दायक

रहता है। जबकि यथार्थ यह है कि लोगों को इसका इल्म भी नहीं होता कि उन्हें कैंसरकारी अल्सर है ,कैंसरघाव है कैंसरकारी गांठ (संक्रमणशील अर्बुद है ) .

रोगके बढ़जाने पर ही पीड़ा का एहसास रोग की एडवांस्ड स्टेजिज़ (रोग के उग्र चरणों में )होता है। इस स्थिति में ये ऊतकों और नसों को अपनी चपेट में लेकर असरग्रस्त कर सकता है। इसी चरण में इस बात का ध्यान रखा जाए कहीं और नै गांठ तो नहीं बन रही असरग्रस्त जगह के अलावा।

एक और लोकप्रिय मिथ है :कैंसर संक्रमणकारी है छूतहा रोग है। यथार्थ में यह नान -इंफेक्शश है एक से दूसरे व्यक्ति को इसकी छूत नहीं लगती है।

एक और मिथ रोग के गिर्द बनता देखा गया है :कैंसर का इलाज़ वैकल्पिक चिकित्सा बेहतर और पुख्ता तरीके से मुहैया करा सकती है। बेहतर हो ट्रीटमेंट टेस्ट्स देखे जाएं मेडिकल सहायकों की सहायता से किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भले ये दावा करे ,वैकल्पिक चिकित्सा अभी तक कारगर साबित नहीं हुई है लेकिन कई लोग इसका कामयाबी के साथ इलाज़ करने का दावा कर रहे हैं।उन्हें भी जांचा परखा जाए।

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यहां हम उल्लेखित का ज़िक्र करना चाहेंगे क्यों न इन्हें भी परख लिया जाए।


एक मिथ और है जो बड़ा लोकप्रिय है :कैंसर बायोप्सी (कैंसर गांठ की जांच के दौरान की जाने वाली जांच )से कैंसर प्रसार पाता है। जबकि यथार्थ यह है , बायोप्सी इसके दूसरे अंगों तक पहुँचने की वजह नहीं ही बनती है। शल्य कर्मी इस हेतु एक मानक प्राविधि स्टेंडर्ड प्रसीजर ही अपनाते हैं ताकि बायोप्सी रोग के दूसरे अंगों तक पहुँचने की वजह न बने।

दुखद पहलू रोग का यह है ,दवा सबको उपलब्ध नहीं है। दवा की कीमत एक परिवार की सालाना आय को खा जाती है।विकिरण चिकित्सा भी सब जगह उपलब्ध नहीं है।

सन्दर्भ -सामिग्री :

World Cancer Day: 6 myths surrounding one of the most deadly diseases

http://indiatoday.intoday.in/story/world-cancer-day-conquering-cancer-you-have-to-know-these-myths-surrounding-the-deadly-disease-lungs-breast-blood-health-medical/1/586939.html

Cancer, diabetes, heart diseases and stroke--some of the biggest health slayers that the world is currently fighting. What adds to the misery though, is that full treatment for a disease like cancer (well, most types of cancers) is still not prevalent.
Celebrating #WorldCancerDay today, we need to spread awareness about the preventive measures one can take from the very beginning, in order to keep the life-threatening disease at bay. But first, let us give you a low-down on the most baffling misconceptions about this lethal disease and why we must wipe them out without delay.
Dr. Pawan Gupta, Additional Director, Surgical Oncology, Jaypee Hospital, Noida told us, "Cancer is not a killer. What kills is carelessness and ignorance, delayed diagnosis and denied or wrong treatment. The only thing that can change the prognosis of a cancer patient is early diagnosis and awareness."
Also read: This kind of DNA cuts down on the chances of breast cancer, says study
Furthermore, he shared these common myths about the disease.
India has just 2,000 oncologists for 10 million patientsNew Delhi: Even as cancer is fast taking epidemic proportions in India, the country is facing severe shortage of care- givers with merely 2000 oncologists to look after around 10 million patients. Besides, there is also a dearth of surgical oncologists and radio-therapists, who play a crucial role in cancer treatment.

A rapidly spreading disease, very little research, fewer doctors and unequipped hospitals along with spiralling cost of treatment, cancer is fast becoming a major health menace for India with the healthcare system in shambles to tackle the burden.

As per WHO's latest assessment, cancer cases in India will multiply five times over the next decade (by 2025) with more women falling prey to it than men. Even after adjusting population growth, the new cancer cases have increased by 30% per unit population, according to several assessments on the disease trend in the country.
According to a Lancet report of 2014, slightly over 10 lakh or one million new cases of cancer are diagnosed every year in India. Increasing incidence of cancer is also leading to economic burden of cancer treatment which was 20 times the annual income of the family, an assessment by AIIMS showed.

Though the government is trying to build an infrastructure to tackle the disease, the wide gap between the number of patients and specialized oncologists has hit expansion plans of not just the government but also of private hospitals trying to create dedicated cancer facilities.
"One core reason why the infrastructure for management of India's cancer burden is insufficient is the severe shortage of appropriately educated medical and other health personnel, and of the training facilities needed to produce them," says the Lancet article. It also points at factors such as the preferences of doctors and other health professionals for working in more affluent areas, and the effects of a largely unregulated private sector resulting in a skewed geographical distribution of cancer treatment facilities.

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