मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

फूल से कोमल होते हैं बच्चे और उनकी सुकुमार भावनाएं ,,पसंदगी ,ना -पसंदगी ,कुण्डली मारके बैठ जाते हैं घर के बड़े उन भावनाओं पर। बच्चे का सहज रुझान न देखकर उसे के रोबोट नुमा बना देते हैं -अपनी अपेक्षाओं ,ना -कामयाबियों को ,दबी हुई वासनाओं को उन पर आरोपित कर देते हैं हम लोग। अपनी नाकामयाब महत्वकांक्षाओं को हम बच्चों में फलित होते देखना चाहते हैं। क्यों ?

Ishita Katyal speaking at TED 2016

हमारे देश भारत में विवाह ही नहीं कैरीयर्स भी बालकों के अनुबंधित (अरेंज्ड )होते हैं। मुझे याद है मैं जब नौवीं कक्षा  में पहुंचा बेहद सम्मोहन था मुझे संगीत में आगे बढ़ने का,साहित्य में कुछ कर गुज़रने का । वजह मुझे बचपन से ही न सिर्फ गाने  का शौक था मेरे सुख्खकन मामा (श्री सुख्खन लाल शर्मा ,शागिर्द उस्ताद एहमद जान थिरकवा साहब ,लखनऊ घराना )मुझे साथ बिठा लेते तबले का रियाज़ करते वक्त ,मुझसे फिल्म  सांग गवाते -गौरी बुलाए तेरा साँवरिया ,मनाये तेरा साँवरिया मान भी जा ... खुद बेहतरीन संगत करते। आज भी उनके तबले के बोल कानों में गूंजते हैं। लेकिन मैं संगीत में कुछ करूँ  इससे पहले मुझे विज्ञान विषय ही पढ़ने पड़े  -विज्ञान ,जीवविज्ञान ,इतिहास -नागरिक -शास्त्र -भूगोल ,हिंदी और अंग्रेजी। नतीजा दसवीं की परीक्षा में ग्रेस मार्क्स के साथ हम उत्तीर्ण तो हो गए लेकिन थर्ड क्लास का ठप्पा लग गया। 

ग्यारवीं में पहुंचे हम फिर मचले ,फिजिक्स केमिस्ट्री मेथ्स (प्रोफेशनल ग्रुप )के स्थान पर हम ,फिजिक्स ,केमिस्ट्री ,जीवविज्ञान पढ़ना चाहते थे।गणित से पिंड छुड़ाना चाहते थे , ऐसा हमें मौक़ा नहीं दिया गया घर के बड़ों के आगे हम खुलके कुछ भी तो नहीं कह पाते थे। वल्लाह हिंदी ,अंग्रेजी ,रसायन शाश्त्र ने हमारी लाज रखी ,हम ५७ %अंक लेकर आइएससी (इंटरमीडिएट साइंस )में उत्तीर्ण हुए।  गणित में मात्र ५२ % अंक ही थे ,दसवीं में तो ४२ % ही थे। 

बीएससी किया फिजिक्स केमिस्ट्री मेथ्स ,हिंदी कम्पलसरी के संग बेमन से। वही पुरानी कहानी -गणित में मात्र ५२ %अंक ,रसायन शाश्त्र में ६९ %. ,हिंदी में ६२ %अंक। 

रुझान साहित्य की तरफ हो चला था बारवीं तक आते आते।थेंक्स टू माई टीचर्स -जिन्होनें हमारी साहित्यिक अभिरुचि का परिमार्जन किया।  म्यूज़िक वाज़ माय फस्ट लव ,लिटरेचर इनफेचुेटिड मी आलवेज़। 

ज़नाब एमएससी करना पड़ा फिजिक्स में। ये सबकुछ उनके आदेश पर हुआ जिनकी चलती थी सुनी जाती थी। पास तो हो गए अंक भी ५९.२ % ले गए ,लेकिन एक कसक बनी रही। 

प्रवक्ता भी बन गए ,कामयाब भी रहे अध्यापन में ,लेकिन विज्ञान पत्रकारिता की ओर  हम कब मोहित हुए आगे बढे पता ही न चला। ढूंढ ही लिया जिसकी तलाश थी खुद में से। साधन बना निरंतर साहित्य और भौतक विज्ञानों का अनुशीलन। अखबार और रेडिओ से हमें खूब प्रोत्साहन मिला। विज्ञान पत्रिकाओं ने सर पे बिठाए रखा सालों साल। 

आज शिकायत किसी से कुछ भी नहीं है एक कसक है काश ऐसा होता। ये कसक एक हूक  में बदल गई नीचे दी हुई रिपोर्ट पढ़के। सोचा अपना व्यक्तिगत अनुभव आपसे शेयर करूँ। 

फूल से कोमल होते हैं बच्चे और उनकी सुकुमार भावनाएं ,,पसंदगी ,ना -पसंदगी ,कुण्डली मारके बैठ जाते हैं घर के बड़े उन भावनाओं पर। बच्चे का सहज रुझान न देखकर उसे के रोबोट नुमा बना देते हैं -अपनी अपेक्षाओं ,ना -कामयाबियों को ,दबी हुई वासनाओं को उन पर आरोपित कर देते हैं हम लोग। अपनी नाकामयाब महत्वकांक्षाओं को हम बच्चों में फलित होते देखना चाहते हैं। क्यों ?

अजीब बात है रूचि का भी निर्धारण हम लोग करने लगते हैं। और इसीलिए कितने ही बच्चे अभिव्यक्त नहीं हो पाते अपना सौ फीसद नहीं दे पाते।  

10-year-old Indian girl wows brainiacs' meet

VANCOUVER: There was jetlag from travelling 13 time zones, daddy's absence that was keenly felt, and the brilliance of the world's brainiacs arrayed before her.

None of this fazed Ishita Katyal, a 10-year-old Pune writer and middle-schooler who, quite extraordinarily, debuted as the opening speaker at the TED2016 (Technology, Entertainment, Design), a nerdy conference of some of the world's smartest people.

Alpha-geeks from Google and Tesla, Apple and Uber, not to speak of marquee names such as Al Gore and Bill Gates are attending the annual brainiacs gig, but it was the singsong voice of this pre-teen, with her pink-frame spectacles and burgundy velvet gown, that held centerstage on Monday when the conference opened.

Her message was simple: Put children first; give kids a chance. "Instead of asking children what they want to do when they grow up, you should ask them what they want to be right now," she told a packed audience, composed and self-assured under the klieg lights and before a brainbank that unnerves the best public speakers.

"We can do a lot in this moment, in the present. The problem is our world has many forces working against the dreams of children." Adults, she said, chronically underestimate kids, and in the process they pass on fear to children who are born without fear.

The nerdy audience, with an average age perhaps in the forties, absorbed the mild admonition, responding with frequent applause as she pressed on to issues such as hunger, education, and war.

"My dream for the future is that people think 10 times before raising school fees, a hundred times before going to war with another country, a thousand times before wasting food and water, and ten thousand times before letting their child's 

childhood go away," she said. "I hope you adults can look after the world long enough to give us our chance."

After she concluded to rousing cheers (AR Rahman, who performed a little later in the opening session, was in the anteroom), scientists and savants, poets and philosophers, mandarins and musicians ambushed her in the lobby, wanting selfies with her.

Her mother, Nancy Katyal, an image consultant in Pune, beamed with pride, recalling how Ishita, who wrote her first book "Simran's Diary," came into limelight after she organized a TEDx talk at her school Vibgyor High, Balewadi, last February.

http://timesofindia.indiatimes.com/world/us/10-year-old-Indian-girl-wows-brainiacs-meet/articleshow/51017537.cms

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