मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand

भाव -सार :परमात्मा की बड़ी कृपा है यहां भारत में हमें एक गुरु प्राप्त हुआ है ,भक्तों ने हमें एक ऐसा काव्य दिया जो हमारे  जीवन के गूढ़ प्रश्न ,ऐसी चुनौतियां का हमें हल देता है  जो हमें अशांत करती हैं और  जिनमें हम धर्म और  अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए भी उलझ जाते हैं। राम कथा हमें जीना सिखाती है।

राम जहां रहते हैं उस निवास स्थान को रामायण (वाल्मीकि )कहा गया।तुलसीदास ने जिस राम कथा को हमारे जीवन में सौंपा ,जिस रूप में रामचरितमानस में प्रस्तुत किया उससे राम हमारे रग -रग में बस गए।तुलसी की चौपाई हम लोगों की नस नस में बस गईं हैं अवधि भाषा के स्पर्श के साथ लिखा गया यह ग्रंथ वे लोग भी समझ लेते हैं जो पढ़ना लिखना नहीं जानते।  मानस की एक -एक पंक्ति में तुलसी की भक्ति के माध्यम से भगवान् खुद प्रकट हुए हैं। 

महत्वपूर्ण यह नहीं है संसार से आपको क्या मिला महत्वपूर्ण यह है आप संसार को क्या लौटा रहें हैं।तुलसी यही सिखाते हैं।  
आत्मा राम दुबे के यहां तुलसीदास का जन्म हुआ जन्म के  बाद इस बालक की माँ मर गई। इस बालक को अपशकुनी मनहूस जानकार  छोड़ दिया गया। ज़माने ने तुलसी को विष दिया लेकिन तुलसी ने रामचरितमानस के रूप में अमृत लौटाया। 
चित्रकूट के घाट पर भइ  संतन की भीड़ ,

तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत  रघुबीर।

प्रसंग   है :तुलसी दास चित्रकूट में नदी के किनारे राम कथा सुना रहे हैं। भगवान् उनकी भक्ति से खुश होकर सोचते हैं आज इसे दर्शन करा ही दें। भगवान्  साधारण भेष में आते हैं तुलसीदास पहचान नहीं पाते तब पेड़ पर बैठे हनुमान यह दोहा पढ़ते हैं ,और तुलसीदास अपने ईष्ट भगवान राम को पहचान जाते हैं संकेत मिलते ही ।

 कहतें हैं इसी के बाद तुलसी ने रामायण लिखनी शुरू की ,जिसका एक- एक  दृश्य हनुमान ने ऐसे दिखलाया जैसे तुलसी ने स्वयं भी अपनी आँखों देखा हो। 

परमात्मा जीवन में संकेत रूप में ही समझ आता है गुरु देता है यह संकेत। ऐसा ही संकेत हनुमान जी ने तुलसी को इस दोहे के मार्फ़त किया। 

कथा का सूत्र :तुलसी वंदना के साथ बालकाण्ड आरम्भ करते हैं भगवान् का जन्म होता है भगवान बड़े होते हैं विश्वामित्र भगवान् को ले जाते हैं। भगवान् का विवाह होता है और भगवान् अयोध्या लौट आते हैं कथा बस इतनी ही है। लेकिन इसका व्यापकत्व समेटा नहीं जा सकता। इसलिए चर्चा कथा के सूत्र की ही की  जाती है। 
बालकाण्ड  का सूत्र है सहजता। बालपन की सहजता। 

तुलसी मात्र महाकवि नहीं हैं ,संत हैं ,जो लिखा है तुलसी ने वह भीतर से बाहर आया है मात्र शब्द नहीं है उस ग़ज़ल के जिसे लिखने वाला दारु पीते हुए लिख रहा है।इसमें एक भक्त का बिछोड़ा है।  

तुलसी बाल- काण्ड के आरम्भ दुष्टों की, दुश्मनों की भी वंदना करते हैं ,ताकि कोई विघ्न न आये कथा कहने बांचने लिखने  में। 

तुलसी से पहले वैष्णव -विष्णु और राम के भक्त कहलाते थे , कृष्ण भक्त भी खुद को वैष्णव मानते  थे ,शिव भक्त शैव और माँ दुर्गा शक्तिस्वरूपा पारबती के भक्त शाक्त कहाते  थे।

तीनों परस्पर एक दूसरे को फूटी आँख नहीं देखते थे। तुलसी बालकाण्ड के आरम्भ में तीनों सम्प्रदायों के ईष्ट   की स्तुति ,और गुणगायन करते हैं। आप शिव और पार्वती की भी वंदना करते हैं राम की भी। 
तुलसी लक्ष्मण जी को राम की विजय पताका का दंड  कहते  हैं। ध्वज तभी लहराता है जब दंड मज़बूत हो ,आधार मजबूत  हो। तीनों भाइयों की वंदना के साथ तुलसी हनुमान को भाइयों की पांत में बिठाकर वंदना करते हैं। 

हनुमान जी मैं आपको प्रणाम  करता हूँ ,आपके यश का गान तो स्वयं राम ने किया है। आवेगों और दुर्गुणों का नाश हनुमान जी करते हैं। आप राम के वक्ष में तीर कमान लेकर बैठते हैं।बेहतरीन रूपक है यहां दुर्गुण नाशक हनुमान के स्तुति गायन का। 

जनक सुता जग जननी जानकी '  

अतिशय प्रिय करुणा -निधान की। 

नारी के तीनों विशेषण (बेटी ,जननी माँ ,प्राण  राम की )यहां स्तुतिमाला के मोती बनाके डाल दिए  हैं सीता जी की स्तुति में ,तुलसी ने। 

'तात सुनो सादर मन लाई '-याज्ञवल्क्य भारद्वाज ऋषि से कहते हैं जब की दोनों ऋषि हैं लेकिन जानते हैं मन बड़ा चंचल है इसलिए इस कथा को आदर पूर्वक और पूरे ध्यान से सुनो ,चित लाई ,चित्त्त लगाकर। फिर ऐसे में आम संसारी की तो क्या बात है। 

मन मनुष्य को असहज बनाता है आज की कथा ऐसी है बार -बार मन पे इशारा आ रहा है। बाहर से सरल होने का आवरण हो सकता है अंदर से सहज होना बड़ा कठिन है। आपकी कोई भी उम्र हो भीतर से सहज रहें। बालकाण्ड सिखाता है बच्चे बाहर भीतर दोनों जगह सहज होते हैं। 

भगवान् शंकर उमा देवी को कथा सुना रहे हैं :

(याज्ञवल्क्य  जी भरद्वाज मुनि को )

सुनी महेश परम् सुख मानी। तुलसी सावधान हैं सिर्फ महेश का नाम लेते हैं सती  का नहीं। हरेक कथा सुनता कहाँ हैं। इनको क्या प्रणाम करना है ये तो खुद विलाप कर रहें हैं अपनी पत्नी के लिए। शंकर जानते हैं लीला चल रहीं हैं ,सती संदेह करतीं हैं नहीं मानतीं हैं शंकर अलग शिला खंड पे जाकर बैठ जाते हैं। शंकर जी सूत्र बतलातें हैं जब पति पत्नी में मतभेद हो जाएँ तो टेंशन नहीं लेना है। 

होइ है वही जो राम रची रखा -सती संदेह करतीं हैं ,परीक्षा लेती हैं भगवान् की (भगवान् संदेह का विषय नहीं हैं ,लेकिन सती नहीं मानती ,सीता का भेष धर लेती हैं। ),भगवान् कहते हैं माते अकेले ही विचर रहीं हैं वन में ?भोले नाथ क्या कर रहें हैं ?

मैं कौन हूँ ये मैं तय करूंगा शंकर भगवान् मैना के अपमान करने पर कहतें हैं शंकरजी ऐसा ही कहते हैं। यहां सन्देश यह है घर टूटते ही ऐसे हैं किसी एक शब्द से। उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। 

नारद ने सम्बन्ध बदल दिया पारबती की माँ मेनका को शंकर जी का असली रूप दिखलाकर। अब तो मेनका भगवान् से क्षमा मांगतीं हैं। 

 गुरु की यही महिमा है। 

(ज़ारी )

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand
संदर्भ -सामिग्री :(१ )https://www.youtube.com/watch?v=uD2C4zjlhgU

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Uttar Kand

भरत जी हनुमान के अयोध्या आने की सूचना सबसे पहले अपने कुल गुरु को देते हैं। जीवन में गुरु का बड़ा महत्व है गुरु ज़रूर बनाइये व्यक्ति नहीं मिले कोई तो हनुमान जी को बनाइये। गुरु -मन्त्र को ज़रूर साधिये तभी जीवन में सार्थकता आएगी ,असफलता भी मिलेगी तो अवसाद नहीं आएगा। गुरु बनाना सिर्फ धर्म का विषय नहीं है जीवन को साधना है।

सिमरनि माला आपके सांस की गुरु है। इसके बाद भरत जी ये सूचना सभी माताओं को देते हैं घर की समस्त स्त्रियों को बतलाते हैं। आज घर की महिला को ये पता ही नहीं होता वह पुरुष कहाँ है जिसका उसने जीवन भर के लिए चयन किया था। कई पुरुष अपने गिर्द एक गोपन बनाये रखते हैं। कहाँ जा रहें हैं इसकी इत्तला घर की महिलाओं को ही नहीं देते।

अपनी धरती को मातृभूमि को मान दीजिये। भगवान् आते हैं तो सबसे पहले गुरु से मिलते हैं फिर ब्राहणों से और फिर भरत से मिलते हैं। भरत जी अपनी माँ समान भाभी को प्रणाम करते हैं।

ये सब सखा सुनहुँ मुनि मेरे-भगवान् वानरों को इंगित करते हुए वशिष्ठ जी को बतलाते हैं।

भगवान् वशिष्ठ जी को वानरों का परिचय देते हुए बतलाते हैं ,साथ ही भगवान् कहते हैं मेरी विजय इन्हीं के कारण हुई है। साथ ही भगवान वानरों को अपने घर में सब का परिचय देते हुए कहते हैं इन्हें प्रणाम करो -बड़ों को प्रणाम किया जाता है ,वानर तो इस  शिष्टाचार  से कहाँ और कैसे परिचित होते ,इस प्रकार भगवान् ने एक साथ दो काम किये राजगुरु वशिष्ठ जी का संशय दूर किया ,जो वानरों को देख कर असहज महसूस करते दिख रहे थे।
तब गुरु ने भी सबको गले लगाया।

परिवार में कोई छोटा बड़ा नहीं होता भगवान् यहां यही संकेत देते हैं। परिवार का अर्थ है सबको साथ लेकर चलना। राम का गुरु वशिष्ठ राजतिलक करते हैं राम सबको दिल खोलकर यथोचित देते हैं फिर सबको विदा करते हैं ये कहते हुए अब अपना -अपना जीवन जियो जो वक्त सबके साथ बीता बहुत अच्छा बीता।

अनुशासन प्रिय हनुमान अपने राजा सुग्रीव से अनुनय विनय पूर्वक कहते हैं आपकी आज्ञा हो तो मैं यहीं अयोध्या में भगवान् के पास रुक जाऊं। सुग्रीव उन्हें सहर्ष अनुमति देते हैं। चाहते भगवान् भी यही थे।

इंसान के जीवन में चार तरह का दुःख होता है :

ये दुःख राम के राज्य में नहीं आया करते

(१ )काल का दुःख भी होता है जो एक बड़ा दुःख होता है इंसान के जीवन में। आप आठ बजे उठते हैं आपको छः बजे उठा दिया जाए ,यही आपके लिए दुःख बन जाएगा।
,
(२ )कर्म का भी दुःख होता है -कर्म का फल भोगना पड़ता है.कार्य -करण ,काज एन्ड इफेक्ट सिद्धांत काम करता है यहां पर।

(३ )गुरु का भी दुःख होता है,आप सब कुछ करते जाएँ और वह संतुष्ट ही न दिखे न होवे।

(४ ) स्वभाव का दुःख

राम राज्य में सभी योग करते हैं ,योग से व्यक्ति मन को जीत लेता है।

 हमारे जीवन में वासना पूर्व जन्म के कर्मों से भी आती है। माँ का आचरण गर्भ काल में, पिता की वासनाएं भी इसमें शरीक होतीं हैं। माहौल से भी जो आपके आसपास होता है उससे भी आपके जीवन में वासनाएं आतीं हैं। माहौल आप अपने आसपास अच्छा रख सकते हैं अपनी सोहबत भी अच्छी रख सकते हैं।

कथा का उद्देश्य है आपका आंतरिक रूपांतरण हो जाए रामराज्य आपके मन में स्थापित हो जाए। राम जीवन में हैं तो सब हैं एक इनका सहारा छूट गया तो फिर कोई नहीं है आपके जीवन में। राम को अपने से दूर मत भेजिए।

राम तुमसे दूर होकर क्या पाया क्या पाएंगे ,

तेरा सहारा छूट गया तो ,अपने भी सभी कट जाएंगे।

संदर्भ -सामिग्री :

(१ )https://www.youtube.com/watch?v=sGRfmr_RI1A

(२ )





Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand

भाव -सार :परमात्मा की बड़ी कृपा है यहां भारत में हमें एक गुरु प्राप्त हुआ है ,भक्तों ने हमें एक ऐसा काव्य दिया जो हमारे  जीवन के गूढ़ प्रश्न ,ऐसी चुनौतियां का हमें हल देता है  जो हमें अशांत करती हैं और  जिनमें हम धर्म और  अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए भी उलझ जाते हैं। राम कथा हमें जीना सिखाती है।

राम जहां रहते हैं उस निवास स्थान को रामायण (वाल्मीकि )कहा गया।तुलसीदास ने जिस राम कथा को हमारे जीवन में सौंपा ,जिस रूप में रामचरितमानस में प्रस्तुत किया उससे राम हमारे रग -रग में बस गए।तुलसी की चौपाई हम लोगों की नस नस में बस गईं हैं अवधि भाषा के स्पर्श के साथ लिखा गया यह ग्रंथ वे लोग भी समझ लेते हैं जो पढ़ना लिखना नहीं जानते।  मानस की एक -एक पंक्ति में तुलसी की भक्ति के माध्यम से भगवान् खुद प्रकट हुए हैं। 

महत्वपूर्ण यह नहीं है संसार से आपको क्या मिला महत्वपूर्ण यह है आप संसार को क्या लौटा रहें हैं।तुलसी यही सिखाते हैं।  
आत्मा राम दुबे के यहां तुलसीदास का जन्म हुआ जन्म के  बाद इस बालक की माँ मर गई। इस बालक को अपशकुनी मनहूस जानकार  छोड़ दिया गया। ज़माने ने तुलसी को विष दिया लेकिन तुलसी ने रामचरितमानस के रूप में अमृत लौटाया। 
चित्रकूट के घाट पर भइ  संतन की भीड़ ,

तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत  रघुबीर।

प्रसंग   है :तुलसी दास चित्रकूट में नदी के किनारे राम कथा सुना रहे हैं। भगवान् उनकी भक्ति से खुश होकर सोचते हैं आज इसे दर्शन करा ही दें। भगवान्  साधारण भेष में आते हैं तुलसीदास पहचान नहीं पाते तब पेड़ पर बैठे हनुमान यह दोहा पढ़ते हैं ,और तुलसीदास अपने ईष्ट भगवान राम को पहचान जाते हैं संकेत मिलते ही ।

 कहतें हैं इसी के बाद तुलसी ने रामायण लिखनी शुरू की ,जिसका एक- एक  दृश्य हनुमान ने ऐसे दिखलाया जैसे तुलसी ने स्वयं भी अपनी आँखों देखा हो। 

परमात्मा जीवन में संकेत रूप में समझ आता है गुरु देता है यह संकेत। ऐसा ही संकेत हनुमान जी ने तुलसी को इस दोहे के मार्फ़त किया। 

कथा का सूत्र :तुलसी वंदना के साथ बालकाण्ड आरम्भ करते हैं भगवान् का जन्म होता है भगवान बड़े होते हैं विश्वामित्र भगवान् को ले जाते हैं। भगवान् का विवाह होता है और भगवान् अयोध्या लौट आते हैं कथा बस इतनी ही है। लेकिन इसका व्यापकत्व समेटा नहीं जा सकता। इसलिए चर्चा कथा के सूत्र की ही की  जाती है। 
बालकाण्ड  का सूत्र है सहजता। बालपन की सहजता। 

तुलसी मात्र महाकवि नहीं हैं ,संत हैं ,जो लिखा है तुलसी ने वह भीतर से बाहर आया है मात्र शब्द नहीं है उस ग़ज़ल के जिसे लिखने वाला दारु पीते हुए लिख रहा है।इसमें एक भक्त का बिछोड़ा है।  

तुलसी बाल- काण्ड के आरम्भ दुष्टों की, दुश्मनों की भी वंदना करते हैं ,ताकि कोई विघ्न न आये कथा कहने बांचने लिखने  में। 

तुलसी से पहले वैष्णव -विष्णु और राम के भक्त कहलाते थे , कृष्ण भक्त भी खुद को वैष्णव मानते  थे ,शिव भक्त शैव और माँ दुर्गा शक्तिस्वरूपा पारबती के भक्त शाक्त कहाते  थे।

तीनों परस्पर एक दूसरे को फूटी आँख नहीं देखते थे। तुलसी बालकाण्ड के आरम्भ में तीनों सम्प्रदायों के ईष्ट   की स्तुति ,और गुणगायन करते हैं। आप शिव और पार्वती की भी वंदना करते हैं राम की भी। 
तुलसी लक्ष्मण जी को राम की विजय पताका का दंड  कहते  हैं। ध्वज तभी लहराता है जब दंड मज़बूत हो ,आधार मजबूत  हो। तीनों भाइयों की वंदना के साथ तुलसी हनुमान को भाइयों की पांत में बिठाकर वंदना करते हैं। 

हनुमान जी मैं आपको प्रणाम  करता हूँ ,आपके यश का गान तो स्वयं राम ने किया है। आवेगों और दुर्गुणों का नाश हनुमान जी करते हैं। आप राम के वक्ष में तीर कमान लेकर बैठते हैं।बेहतरीन रूपक है यहां दुर्गुण नाशक हनुमान के स्तुति गायन का। 

जनक सुता जग जननी जानकी '  

अतिशय प्रिय करुणा -निधान की। 

नारी के तीनों विशेषण (बेटी ,जननी माँ ,प्राण  राम की )यहां स्तुतिमाला के मोती बनाके डाल दिए  हैं सीता जी की स्तुति में ,तुलसी ने। 

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Baal Kand
संदर्भ -सामिग्री :(१ )https://www.youtube.com/watch?v=uD2C4zjlhgU




मनो -विश्लेषण चिकित्सा का उद्भव (आदि )

कैसे आरम्भ हुई साइकोथिरेपी ?

सिग्मंड  फ़्रायड  की दूर -दृष्टिता  का परिणाम थी मनो -विश्लेषण चिकित्सा ,बाइनाकुलर विज़न था फ़्रॉयड  महोदय के पास ।इनकी पहली मरीज़ा एक महिला थीं जो रूप परिवर्तन भावोन्माद (कन्वर्जन हिस्टीरिया ,Conversion Hysteria )से ग्रस्त हो गईं थीं।

इस स्थिति में महिलायें भावात्मक चोट (सदमे )को भौतिक समस्याओं के रूप में समझने -भोगने  लगतीं हैं। मसलन उन्हें लगता है उनके किसी अंग को फालिज मार गया है। आज कहते हैं मन से ही होते हैं काया के रोग। मनोकायिक रोग रहा है यह भाव -उन्माद भी। मनो -कायिक बोले तो साइको -सोमाटिक। 

फ्रायड के गुरु रहे  जोज़फ़ ब्रुएर ने आर्म -पेरेलिसिस का पहला ऐसा मामला दर्ज़ किया बतलाया जाता है। मरीज़ा अन्ना   ओ.  नाम की एक महिला  थीं। भौतिक जांच के बाद पता चला इनमें पेरेलिसिस के कैसे भी भौतिक लक्षण ही नहीं थे। इन्हें ब्रुएर के पास मनो -विश्लेषण चिकित्सा के लिए लाया गया। ब्रुएर ने सम्मोहन तकनीक को इनके ऊपर आज़माया साथ ही फ्री -एशोशिएशन टेक्नीक का  भी इस्तेमाल किया। 


What is Free Association?

Free association is a technique used in psychoanalytic therapy to help patients learn more about what they are thinking and feeling. It is most commonly associated with Sigmund Freud, who was the founder of psychoanalytic therapy. Freud used free association to help his patients discover unconscious thoughts and feelings that had been repressed or ignored. When his patients became aware of these unconscious thoughts or feelings, they were better able to manage them or change problematic behaviors.
अन्ना अपने मरणासन्न ( मृत्यु -आसन्न ) पिता के सिरहाने खड़ी थीं। खड़ी -खड़ी ही ये निद्रा में चली गईं जब इनकी आँख खुली इनके पिता मर चुके थे। आपको गहरी मानसिक वेदना पहुंची इस हादसे से ,एक हीन -भावना,अपराध -बोध भी आपके मन में बैठ गया  आप पिता की मृत्यु के लिए खुद को कुसूरवार मान ने लगीं। लेकिन आपने इन मनोभावों को दबाये रखा ,भाव -शमन किया अपनी रागात्मकता का मनो -संवेगों का; मनोविज्ञान की भाषा में यही रिपरैशन कहलाता है। उनकी मनोव्यथा रूपांतरित होकर उनके द्वारा कल्पित भौतिक लक्षणों में तब्दील हो गई उन्हें लगा उनका बाज़ू अब संवेदना शून्य है। 

 मनो -विश्लेषण चिकित्सा ने एक मर्तबा फिर उन्हें उस  सदमे का स्मरण करवाया और सम्मोहन द्वारा उस असर को हटा दिया। 
अन्ना अब आगे की मनो -विश्लेषण चिकित्सा का आधार बन गईं। ऐसे शुरुआत हुई मनो -विश्लेषण चिकित्सा या साइकोथिरेपी की। निष्कर्ष निकाला गया सारे भौतिक लक्षण मनो -संवेगों के दमन (शमन )का परिणाम होते हैं। शमन को हटाते ही मन की गांठ के खुलते ही लक्षण भी गायब हो जाते हैं।उनका बाजू लकवा भी दुरुस्त था अब। 
लेकिन धीरे -धीरे फिर शोध से यह भी पता चला शमन या दमन (repression )का हटा लेना निर्मूल करना सभी मामलों में कामयाब नहीं होता है।फ्रायड महोदय ने यहीं से मनो -विश्लेषण को एक व्यापक आधार दिया जिसके तहत असर ग्रस्त व्यक्ति के बारे में व्यापक (विस्तृत ,गहन ) जानकारी जुटानी आरम्भ  की गई।

Now Freud broadened his focus .He referred to psychoanalysis as an educational process ,which focused on "insight ".
Insight or the recognition of patterns and historical generative events ,became the cure for all ailments.

इसके तहत पहले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमताओं ,बोध प्रक्रिया ,सोच ,की पड़ताल की गई ,इसी दरमियान एक मरीज़ ने बतलाया मुझे बरसों हो गए ये परामर्श चिकित्सा लेते- लेते मैं समझता भी सब कुछ हूँ लेकिन फायदा या हासिल अभी तक कुछ हुआ नहीं है। फ्रायड अब ये जान चुके थे इस प्रकार की वैयक्तिक गहन पड़ताल का आंशिक फायदा ही पेशेंट्स तक पहुँच पा रहा है। 

Recognizing one's patterns ,history ,and vulnerability was important ,but hardly curative.There were problems.

मरीज़ में रचनात्मक बदलाव का आना  दो और चीज़ों पर निर्भर करता है :

(१ )उसकी सोच के अलावा उसका रागात्मक भाव जगत ,उसकी संवेदनाएं बड़े मायने रखतीं हैं। 

(२ )रोज़मर्रा के हिसाब से रोज़ -ब -रोज़ हमें अपने जीवन को जीने का ढर्रा जीवन शैळी में बदलाव लाने की आदत डालनी होगी। केवल सोचने और सोचने से कुछ नहीं होना -हवाना है। 

गहन जानकारी जुटाना व्यक्ति विशेष की बस  एक संज्ञानात्मक परख है ,उसकी बोध प्रक्रिया की पड़ताल भर है। ये प्रक्रियाएं मस्तिष्क के बाएं अर्द्धगोल से ताल्लुक रखतीं हैं। एहम का ,हमारे ego -mind का ,यही प्राकृत आवास है।तर्कणा शक्ति ,सारे तर्क  और भाषा का वाग्जाल यहीं है।एक किस्म की  रेखीय बूझ है यहां।  

The left brain houses the ego -mind and is linear ,logical and linguistic .

सूचना संशाधन और सूचना को व्यवस्थिति करने ऑर्गेनाइज करने का काम दिमाग का यही हिस्सा करता है ,यादें और विचार सरणी भी यहीं हैं लेकिन यहां जीवन और जगत का सीधा बोध प्राप्त नहीं है।
It does not experience the world directly .

सीधा अनुभव दिमाग का दायां हिस्सा करता है यह ज्ञानेंद्रिय के पीछे -पीछे हो लेता है संवेदनाओं की प्रावस्थाओं को देखता समझता  है। लेकिन ये अनुभव भी पल दो पल के ही होतें हैं यहां कोई चेक या फ़िल्टर नहीं है। टोटैलिटी रूप में ही हैं एक अनुभव होता है बस । 

यानी ये सब भी कच्चा माल ही होता है जिसको  दिमाग का बांया हिस्सा अवधारणाओं में तब्दील कर लेता है। बस धारणाएं पुख्ता होने लगतीं हैं। 

मनो -विश्लेषण चिकित्सा को इन सब पर नज़र रखनी पड़ेगी। यानी बोध प्रक्रिया ,विचार सरणी तथा मरीज़ की संवेदनाओं संवेगों की भी गहन पड़ताल करनी पड़ेगी। 
जो हो साइकेट्रिक ड्रग्स चिकित्सा   के संग -संग मनो -विश्लेषण चिकित्सा (साइको -थिरेपी )को आनुषंगिक चिकित्सा का दर्ज़ा आज भी प्राप्त है। दोनों साथ -साथ चलतीं हैं। बेशक कुछ मनो -दशाओं में यह उतनी कारगर न भी हो।
संदर्भ -सामिग्री :
The Beginnings of Psychotherapy -Dr .Michael Abramsky
He is a licensed psychologist with 35 yrs of experience treating adolescents and adults for anxiety,depression and trauma .He is nationally Board Certified in both Clinical and  Forensic psychology ,has a MA in Comparative Religions ,and has practiced and taught Buddhist Meditation for 25 yrs .You may call him at 248 644 7398 

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

CAN ENZYMES REJUVENATE OUR PANCREAS ,HELP DIABETES


CAN DIABETES BE HELPED?

क्या आप जानते है ,मधुमेह एक अपविकासी  (degenerative disease)जीवन शैली रोग है ?

क्या डायबिटीज़ से बचाव संभव है ?क्या इस दिशा में वाकई कुछ हो सकता है ,कहीं से कोई टेका(इमदाद ,help ) मिल सकता   है। इससे जुड़ी वह जानकारी क्या है जो बिरले ही किसी को मालूम होगी वह भी उसे जो बे -हिसाब मेडिकल शोध की खिड़की को खंगलाता होगा ?

बे -शक हम सभी जानते हैं - मधुमेह रोग का दायरा लगातार सुरसा के मुंह सा फैलता जा रहा है फिर चाहे वह अमरीका जैसे खुशहाल खाते पीते दीखते लोग हों या गरीब देश। 

यह भी बहुतों ने सोचा होगा शक़्कर का बे -हिसाब इस्तेमाल इस महामारी की  वजह बनता है।आइये कुछ बातों पर गौर करते हैं :

(१ )हमारे शरीर में खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता विद्यमान रही आई है और रहती है। जैसे कटी -फटी ऊँगली अपने आप ठीक हो जाती है वैसे ही हमारा अग्नाश्य (अग्नाश्य ग्रंथि ,pancreas )खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता लिए रहता  है। लेकिन अगर आप अदबदाकर उस गर्म तवे को बारहा हाथ लगाते रहेंगे जो आपको जला देता है ,फिर आपका अल्लाह ही मालिक है कमान आपके हाथ से निकल जाएगी। 

शुगर और हाईग्लाईकेमिक इंडेक्स (G.I)वाला खाद्य वही काम करता है। High -glycemic foods )खाद्य ऐसे तमाम खाद्य हैं प्रसंस्करित खाद्य हैं ,जो जल्दी ही सिंपल सुगर्स में टूट जाते है अपचयित हो जाते है और तुरत फुरत हमारे खून में ग्लूकोज़ के स्तर को ऊपर ले आते हैं। नतीजा होता है हाई -ब्लड -शुगर ,भले कुछ समय के लिए ही सही। 

वाइट फूड्स से आप बाकायदा परिचित हैं फिर भी :

(१ )वाइट राइस (पोलिश वाला परिष्कृत ताजमहल सा जगमग ,लालकिले सा मशहूर देहरादून सा बासमती )

(२ )वाइट ब्रेड 

(३ )वाइट फ्लोर (मैदा )

(४ )वाइट -पोटेटो  

अलबत्ता वाइट स्किन लोग (गोर -चिट्टे नर -नारी )इस लिस्ट से बाहर ही रखे जाएंगे। 

ये तमाम खाद्य उस दर से आपके ब्लड सुगर में देखते ही देखते इज़ाफ़ा कर देते हैं जो सामान्य दर नहीं कही जाएगी। 

ऐसे में बेचारे अग्नाश्य पर दवाब बनता है  उसे अप्रत्याशित तौर पर इन्सुलिन का सैलाब लाना पड़ता है। मामला क्लाउड ब्रस्ट की तरह है हमारे पेन्क्रियेज़ के लिए। ऐसा इसलिए है ,कुदरती प्राकृत अवस्था में हमारे शरीर को शक्कर के बढ़ने की दर का इल्म ही नहीं होता है ,सब कुछ स्वयंचालित व्यवस्था करती रहती है। 

बे -चारे शरीर को ऐसे में मालूम ही कहाँ है यहां मांजरा कुछ और है- ब्लड सुगर बढ़ती ही जाती है बढ़ती ही जाती है। अगर मालूम हो के ये वृद्धि तात्कालिक है ,थम जाएगी तो पेन्क्रियेज़ इन्सुलिन का बे -हिसाब स्राव ही क्यों करे ?

अब इतना फ़ालतू इन्सुलिन तो अपना रंग दिखायेगा वह भी शक़्कर को जलाता ही जाएगा ठिकाने लगाता ही जाएगा और नतीजा होगा -हाइपोग्लाइसेमिया -इस स्थिति में आपके खून में तैरती शक्कर का स्तर एक दम से गिर कर निम्न हो जाएगा। 

बारहा शक्कर के स्तर में आकस्मिक घट-बढ़ धमनियों पर कालांतर में भारी पड़ती है। मैंने डायबिटीज़ के ऐसे मरीज़ बहुत करीब से देखें हैं उनकी चिकित्सा व्यवस्था का पूरा निगरानी तंत्र करीब से देखा है ,जिनकी डायबिटीज़  तीस -पैंतीस  साला हो गई है। 

 इन्हें बार -बार एंजियोग्रेफी की जरूत पेश आ जाती है ,लेकिन  बारहा एंजियोग्रेफी के लिए धमनी ही हाथ नहीं आती बीच में ही कहीं खो जाती है।पूरे परिवार का रोग बन जाता है मधुमेह जीवन- शैली -रोग। अब ऐसे में अग्नाश्य ही बे -चारा कहाँ बचेगा। 

उसका अपविकास होगा के नहीं होगा ?पेंक्रियाज़ डिजेनरेट करेगी या नहीं करेगी।मरता क्या न करता इस अपविकासी  स्थिति आने  से पहले अग्नाश्य अति -सक्रीय (hyperactive )हो जाता है। ताकि कुछ  ले दे के उसका काम तो ठप्प न हो।लेकिन होता उल्ट ही है। आपका ब्लड शुगर लेवल अब जल्दी जल्दी सामन्य से बहुत नीचे स्तर पर आने लगता है।ऐसे में आप एक टाइम का भोजन मिस कर जाएँ वक्त ही न निकाल पाए भोजन का चर्या में से फिर देखिये क्या होता है आपके साथ। 

हाइपो -ग्लाइसीमिया आपके लिए खतरे की घंटी हो सकता है ,चेतावनी यही है आप अपना खान -पानी दुरुस्त कर लें। अग्नाश्य भी सम्भल जाएगा। 

Some will get the shakes if they skip meals . 

क्या आप जानते हैं -अग्नाश्य के स्वास्थ्य को कुछ किण्वक 

या एंजाइम बचाये रह सकते हैं ? 

कुदरती खाना (तमाम किस्म के भोज्य पदार्थ  )इन एन्जाइज़ों के  ढ़ेर  के ढ़ेर लिए रहते हैं। ये कैंची है खाद्य को कतरने की। खाद्य टूट जाएगा अपने सरलतम रूपों में। 

लिटमस पेपर टेस्ट  है यह -वह खाना जल्दी सड़ेगा नहीं दीर्घावधि में भी ,जिसमें एन्जाइम्स का स्तर निम्तर बना होगा।

लेकिन एन्जाइम्स से भरपूर खाने की भंडारण अवधि ,सेल्फ- लाइफ कमतर होगी। परिष्कृत - प्रसंस्करित ,संशाधित खाद्यों में एंजाइम तकरीबन -तकरीबन नष्ट ही हो जाते है। 

ओवर कुक्ड और माइक्रोवेव्ड किए खाने के साथ भी यही होता है -एन्जाइम्स नदारद हो जाते हैं खाद्यों में से। उन्हें उनकी प्राकृत अवस्था में ही परम्परागत तरीके से पका बनाकर खाइये। 
बड़े एहम हैं एंजाइम हमारे भोजन के लिए। इनके अभाव में अग्नाश्य पर क्या गुज़रती होगी ये आप नहीं जानते हैं। 

संदर्भ -सामिग्री :माननीया शाइरी याले जी के साथ एक लम्बी बातचीत पर आधारित है यह आलेख। आप नामचीन काइरोप्रेक्टर हैं। डीसी का मतलब यहां  डॉक्टर आफ काइरोप्रेक्टिक है। 

Dr Sherry Yale ,DC is the owner of TLC Holistic Wellness .She lives in Livonia ,MI 48 150 phone :734 664 0339  

CAN DIABETES BE HELPED?


CAN DIABETES BE HELPED?

क्या आप जानते है ,मधुमेह एक अपविकासी  (degenerative disease)जीवन शैली रोग है ?

क्या डायबिटीज़ से बचाव संभव है ?क्या इस दिशा में वाकई कुछ हो सकता है ,कहीं से कोई टेका(इमदाद ,help ) मिल सकता   है। इससे जुड़ी वह जानकारी क्या है जो बिरले ही किसी को मालूम होगी वह भी उसे जो बे -हिसाब मेडिकल शोध की खिड़की को खंगलाता होगा ?

बे -शक हम सभी जानते हैं - मधुमेह रोग का दायरा लगातार सुरसा के मुंह सा फैलता जा रहा है फिर चाहे वह अमरीका जैसे खुशहाल खाते पीते दीखते लोग हों या गरीब देश। 

यह भी बहुतों ने सोचा होगा शक़्कर का बे -हिसाब इस्तेमाल इस महामारी की  वजह बनता है।आइये कुछ बातों पर गौर करते हैं :

(१ )हमारे शरीर में खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता विद्यमान रही आई है और रहती है। जैसे कटी -फटी ऊँगली अपने आप ठीक हो जाती है वैसे ही हमारा अग्नाश्य (अग्नाश्य ग्रंथि ,pancreas )खुद को दुरुस्त कर लेने की क्षमता लिए रहता  है। लेकिन अगर आप अदबदाकर उस गर्म तवे को बारहा हाथ लगाते रहेंगे जो आपको जला देता है ,फिर आपका अल्लाह ही मालिक है कमान आपके हाथ से निकल जाएगी। 

शुगर और हाईग्लाईकेमिक इंडेक्स (G.I)वाला खाद्य वही काम करता है। High -glycemic foods )खाद्य ऐसे तमाम खाद्य हैं प्रसंस्करित खाद्य हैं ,जो जल्दी ही सिंपल सुगर्स में टूट जाते है अपचयित हो जाते है और तुरत फुरत हमारे खून में ग्लूकोज़ के स्तर को ऊपर ले आते हैं। नतीजा होता है हाई -ब्लड -शुगर ,भले कुछ समय के लिए ही सही। 

वाइट फूड्स से आप बाकायदा परिचित हैं फिर भी :

(१ )वाइट राइस (पोलिश वाला परिष्कृत ताजमहल सा जगमग ,लालकिले सा मशहूर देहरादून सा बासमती )

(२ )वाइट ब्रेड 

(३ )वाइट फ्लोर (मैदा )

(४ )वाइट -पोटेटो  

अलबत्ता वाइट स्किन लोग (गोर -चिट्टे नर -नारी )इस लिस्ट से बाहर ही रखे जाएंगे। 

ये तमाम खाद्य उस दर से आपके ब्लड सुगर में देखते ही देखते इज़ाफ़ा कर देते हैं जो सामान्य दर नहीं कही जाएगी। 

ऐसे में बेचारे अग्नाश्य पर दवाब बनता है  उसे अप्रत्याशित तौर पर इन्सुलिन का सैलाब लाना पड़ता है। मामला क्लाउड ब्रस्ट की तरह है हमारे पेन्क्रियेज़ के लिए। ऐसा इसलिए है ,कुदरती प्राकृत अवस्था में हमारे शरीर को शक्कर के बढ़ने की दर का इल्म ही नहीं होता है ,सब कुछ स्वयंचालित व्यवस्था करती रहती है। 

बे -चारे शरीर को ऐसे में मालूम ही कहाँ है यहां मांजरा कुछ और है- ब्लड सुगर बढ़ती ही जाती है बढ़ती ही जाती है। अगर मालूम हो के ये वृद्धि तात्कालिक है ,थम जाएगी तो पेन्क्रियेज़ इन्सुलिन का बे -हिसाब स्राव ही क्यों करे ?

अब इतना फ़ालतू इन्सुलिन तो अपना रंग दिखायेगा वह भी शक़्कर को जलाता ही जाएगा ठिकाने लगाता ही जाएगा और नतीजा होगा -हाइपोग्लाइसेमिया -इस स्थिति में आपके खून में तैरती शक्कर का स्तर एक दम से गिर कर निम्न हो जाएगा। 

बारहा शक्कर के स्तर में आकस्मिक घट-बढ़ धमनियों पर कालांतर में भारी पड़ती है। मैंने डायबिटीज़ के ऐसे मरीज़ बहुत करीब से देखें हैं उनकी चिकित्सा व्यवस्था का पूरा निगरानी तंत्र करीब से देखा है ,जिनकी डायबिटीज़  तीस -पैंतीस  साला हो गई है। 

 इन्हें बार -बार एंजियोग्रेफी की जरूत पेश आ जाती है ,लेकिन  बारहा एंजियोग्रेफी के लिए धमनी ही हाथ नहीं आती बीच में ही कहीं खो जाती है।पूरे परिवार का रोग बन जाता है मधुमेह जीवन- शैली -रोग। अब ऐसे में अग्नाश्य ही बे -चारा कहाँ बचेगा। 

उसका अपविकास होगा के नहीं होगा ?पेंक्रियाज़ डिजेनरेट करेगी या नहीं करेगी।मरता क्या न करता इस अपविकासी  स्थिति आने  से पहले अग्नाश्य अति -सक्रीय (hyperactive )हो जाता है। ताकि कुछ  ले दे के उसका काम तो ठप्प न हो।लेकिन होता उल्ट ही है। आपका ब्लड शुगर लेवल अब जल्दी जल्दी सामन्य से बहुत नीचे स्तर पर आने लगता है।ऐसे में आप एक टाइम का भोजन मिस कर जाएँ वक्त ही न निकाल पाए भोजन का चर्या में से फिर देखिये क्या होता है आपके साथ। 

हाइपो -ग्लाइसीमिया आपके लिए खतरे की घंटी हो सकता है ,चेतावनी यही है आप अपना खान -पानी दुरुस्त कर लें। अग्नाश्य भी सम्भल जाएगा। 

Some will get the shakes if they skip meals . 

क्या आप जानते हैं -अग्नाश्य के स्वास्थ्य को कुछ किण्वक 

या एंजाइम बचाये रह सकते हैं ? 

कुदरती खाना (तमाम किस्म के भोज्य पदार्थ  )इन एन्जाइज़ों के  ढ़ेर  के ढ़ेर लिए रहते हैं। ये कैंची है खाद्य को कतरने की। खाद्य टूट जाएगा अपने सरलतम रूपों में। 

लिटमस पेपर टेस्ट  है यह -वह खाना जल्दी सड़ेगा नहीं दीर्घावधि में भी ,जिसमें एन्जाइम्स का स्तर निम्तर बना होगा।

लेकिन एन्जाइम्स से भरपूर खाने की भंडारण अवधि ,सेल्फ- लाइफ कमतर होगी। परिष्कृत - प्रसंस्करित ,संशाधित खाद्यों में एंजाइम तकरीबन -तकरीबन नष्ट ही हो जाते है। 

ओवर कुक्ड और माइक्रोवेव्ड किए खाने के साथ भी यही होता है -एन्जाइम्स नदारद हो जाते हैं खाद्यों में से। उन्हें उनकी प्राकृत अवस्था में ही परम्परागत तरीके से पका बनाकर खाइये। 
बड़े एहम हैं एंजाइम हमारे भोजन के लिए। इनके अभाव में अग्नाश्य पर क्या गुज़रती होगी ये आप नहीं जानते हैं। 

संदर्भ -सामिग्री :माननीया शाइरी याले जी के साथ एक लम्बी बातचीत पर आधारित है यह आलेख। आप नामचीन काइरोप्रेक्टर हैं। डीसी का मतलब यहां  डॉक्टर आफ काइरोप्रेक्टिक है। 

Dr Sherry Yale ,DC is the owner of TLC Holistic Wellness .She lives in Livonia ,MI 48 150 phone :734 664 0339  

इन दिनों मोदी के खिलाफ एक नियोजित षड्यंत्र चल रहा है

इन दिनों मोदी के खिलाफ एक नियोजित षड्यंत्र चल रहा है

 जिसके रचनाकार वही लोग हैं ये षड्यंत्र -पटकथा उन्हीं की लिखी लिखवाई हुई है जिन्हें विदेशों से यहाँ लाकर भारत की राजनीतिक काया पर एक पैवन्द लगाया गया था। आज ये कह रहें हैं मोदी देश पे बम गिरवा  देगा ,जीएसटी का भूत इन पर इस तरह सवार है इन्होनें चंद ऐसे युवकों को पकड़ लिया है जो इनके एजेंट के भी एजेंट हैं ,अपने पढ़े लिखे होने की दुहाई बात- बात पे देते हुए कहतें हैं हम इंस्टीटूट आफ मैनजमेंट के पढ़े हुए हैं इसलिए हमें मालूम है -आपको नहीं मालूम ये मोदी देश  को किस तरह तबाह कर रहा है पहले डिमो-नैटाइज़ेशन के नाम पे, कभी बुलेट ट्रेन की आड़ में कभी पेट्रोल डीज़ल की आड़ लेकर। ये भूलते हैं जो इनसे पहले पढ़ गए ये उन्हीं की टीप मारके पढ़ें हैं वे भी पढ़े लिखे ही थे। आगे कहते है :

'आप वहीँ के वहीँ -   वही ढ़ाक के तीन पात, पहले भी अम्बानी और अब भी अम्बानी बस बोलें - मोदी वाणी।'

इनका गणित उस कुनबे की तरह है जिसके एक अक्लमंद पढ़े लिखे आदमी ने ये हिसाब लगा के बतलाया नदी में पानी  इतना गहरा है मैंने आप लोगों की हाइट जोड़के कुल योग निकाल  लिया है गहराई को चार से तकसीम कर दिया है कोई भी नहीं डूबेगा चलते चलो ,हमें उस पार तो हर हाल में पहुंचना ही है।  पूरा कुनबा डूब गया।

जानतें हैं इस पढ़े लिखे ने क्या किया था -ये लोग संख्या में चार थे नदी में पानी था १२ फुट इनकी कुल कुंबाई  लम्बाई इससे कहीं ज्यादा थी। इन्होने ने बस १२ को चार का भाग किया और कहा  कोई  नहीं डूबेगा। जब पूरा कुनबा डूब गया कहने लगा ये युवक नदी का पानी तो बढ़ा नहीं कुनबा कैसे डूब गया।

 आदमी ''गू ''खाये तो हाथी का खाये कमसे कम पेट तो भरे ये उनके (उन्हीं के जो आप समझ रहें हैं )एजेंट के भी एजेंट हैं जिन्हें देश का मनोबल तोड़ने के लिए लगाया गया है इसलिए कहते फिर रहें हैं मोदी ने सब बर्बाद कर दिया।

कुल मिलाकर  इन्हें जब  अपने बाप के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो ये कहने लगें हैं मैं जानता हूँ मेरा बाप मुझे जहर देकर मार देगा उसने स्लो पॉइज़न देना शुरू भी कर दिया है।

'कोई योजना नहीं है इसलिए की भ्रष्टाचार  भी नहीं है मोदी राज में। 'इनका  आप्त -वचनामृत  ज़ारी हैं। '

देखिये इनकी विकास की परिभाषा कितना बे -लाग है। 'भ्रष्टाचार' और 'विकास 'बकौल इन कांग्रेसी एजेंटों के पर्याय वाची शब्द  हैं।

ये ही पाकिस्तान और चीन सोच के लोग हैं। जो इस हद तक अवसाद में चले आएं हैं देश को आग लगवा कर भी ये मोदी को हटवाने के लिए तैयार हैं।  

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात , का रहीम हरि को घटो, जो भृगु मारी लात।

क्षमा शील व्यक्ति ही अपने कर्म-दहन कर पाता है 

क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात ,

का रहीम हरि को घटो, जो भृगु मारी लात।

Forgiveness transforms anger and hurt into healing and peace. Forgiveness can help you overcome feelings of depression, anxiety, and rage, as well as personal and relational conflicts. It is about making the conscious decision to let go of a grudge. Why would anyone want to forgive someone who has wronged her in the past? It is not about letting someone off the hook for a wrongdoing, or forgetting about the past, or forgetting about the pain. It certainly does not mean that you stick around for future maltreatment from a boss, a partner, parent, or friend. It is about setting yourself free so that you can move forward in your own life. Joan Borysenko said in an interview, “You can forgive someone who wronged you and still call the police and testify in court.” Forgiveness requires a deep inquiry within ourselves about “our story.”
Forgiveness means giving up the suffering of the past and being willing to forge ahead with far greater potential for inner freedom. Anne Lamott famously declared, “Forgiveness is giving up all hope of having had a different past.” Besides the reward of letting go of a painful past, there are powerful health benefits that go hand-in-hand with the practice of forgiveness. In the physical domain, forgiveness is associated with lower heart rate and blood pressure as well as overall stress relief. It is also associated with improving physical symptomsreducing fatigue in some patient populations, and improving sleep quality. In the psychological domain, forgiveness has been shown to diminish the experience of stress and inner conflict while simultaneously restoring positive thoughts, feelings, and behaviors.

The problem for many of us is that sometimes we can choose to forgive another, but still in our heart of hearts, the anger or resentment lingers. However, it is in fact possible to forgive and truly let go of past disappointments, hurts, or blatant acts of abuse. Although at times this may seem implausible, forgiveness is a teachable and learnable skill that can dramatically improve with practice over time.

Harvard researcher and physician George Vaillant describes forgiveness as one of the eight positive emotions that keep us connected with our deepest selves and with others. He considers these positive emotions to be key ingredients that bind us together in our humanity and they include love, hope, joy, compassion, faith, awe, and gratitude. Whether you have a spiritual bent or not, the research supports the notion that developing stronger positive emotions supports us in leading healthier, happier, and more connected lives. When we forgive and develop these other positive emotions we become less encumbered by the scars of the past.

The question remains: How do we give up a grudge and forgive someone who has hurt, disappointed, or betrayed us? Fred Luskin talks about the way we develop our grievance story in his book Forgive For Good. Your grievance story is the one you tell over and over to yourself, and possibly to others, about the way you were maltreated and the way you became the victimized. Luskin teaches us to cast our story in such a way that we become a survivor of difficult times, or — better yet — the hero of our story.
The following strategy model for learning forgiveness is derived from an amalgam of work by several researchers and my own work as a psychologist:
1. Inquire deeply about the root of your anger or grudge. Look at the situation honestly, without embellishing or rearranging the details. Pay attention to how this anger is holding you back and keeping you hostage in your own day-to-day existence.
2. Review your grievance story and reengineer that story so you see yourself in a more empowered way. Perhaps you chose to disengage or limit your time spent with a friend or family member that has consistently been hurtful to you. Perhaps you left a toxic partner. You had the fortitude to leave a bad situation. You were indeed the survivor and hero in your own story. Look at the strengths that you developed as a result of this situation. Being hurt or compromised can be your invitation to a transformative new path and a more fulfilling life.

Is There Someone You Need to Forgive ?

Many people feel that they have been wronged by someone in their recent or distant past.Often this is a parent ,or siblings ,or a life partner . 

It may be true that you were treated in a hurtful way .You may think the person who wronged you does not deserve to be forgiven .Unfortunately ,holding to this position is hurting you a great deal more than the other person .You may have been holding on to this anger or resentment for years without realizing the toll it is taking .

The fact is ,the person or persons who have wronged you may not even be aware of how you feel .They are probably going about their life without any thought about what they did to you .They are not the ones suffering.

While you may want to get back at the person you feel has harmed you ,you are actually causing many more problems for yourself .Many people do not want to let the person who has hurt them "off the hook ," believing that will allow the person to get away with it .But holding on to the anger may be causing you serious problems ,both physical and psychological ,greatly affecting the quality of your life.In this state you are unable to make changes or improve your life ; you can not move forward .

Dr Wayne Dyer used to say when he was a psychologist doing therapy , and his clients blamed their parents for the problems in their life , "send your parents to me for therapy ,I will cure them ,and then will you be alright." Obviously ,curing your parent or parents is not going to do anything to make your life better .

You need to  accept for what is occurring in your life .If you are waiting for some one else to change in order to be happy ,you will never be happy .You are the one who needs to make the changes .

There is an interesting analogy about not forgiving .It states ,"Not forgiving others is like drinking poison and hoping the other person will die ."The point is that you are drinking the poison and you are the one who is suffering as a result of this .Why punish yourself in the present because someone hurt you in the past ?This just increases your pain .It is vital to let go of what happened in the past and then learn to forgive others , if you wish to heal .

Forgiveness is not for the other person ,it is really for you .By forgiving others you free yourself .

You may be familiar with the "Course in Miracles ." It states that "All dis -eases comes from a state of unforgiveness."So if you are experiencing dis -ease ,you might want to contemplate who it is you might want to forgive .Forgiveness is nothing to do with condoning the behavior .Rather ,you are just letting it go and are getting on with your life .It might help you to realize that the person you need to forgive may also have been in a lot of pain .Forgiveness is a way of loving yourself .

Further more there may be devastating consequences by not forgiving .Dolores Canon , a hypnotist who often communicated with beings on the super conscious level ,stated that many people have cancer because they would not forgive .That is how powerful and destructive not forgiving is .Many illnesses are a result of not forgiving .We cannot change what happened in the past .We can ,however change our thoughts about the past .

If you are finding it very difficult to forgive ,hypnosis can be enormously helpful .Hypnosis deal with the subconscious part of the mind ,and by accessing the subconscious one can more easily learn to forgive and let past hurt go .

You may search for google for a near by hypnotist for help .Pl do it if you need one .Life is not to be wasted .Every person is useful ,very special and unique .

Forgiveness is life .

Reference Material :Based on a free conversation with a renowned hypno-therapist Phil Rosenbaum 

246 -688 -6469 

  

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

Heart and Cardio-vascular Heart Diseases(Hindi lll)

Heart and Cardio-vascular Heart Diseases (Hindi lll )
Coronary Heart Disease

परिहृद्य धमनी रोग ;परि -हृदय -धमनी -रोग क्या है ?

इसे ही CAD भी कह दिया जाता है यानी कोरोनरी -आर्टरी -डिज़ीज़। दिल की बीमारियों में यह सबसे ज्यादा कॉमन है आमफहम है। इससे हमारी ब्लड वेसिल्स (रक्त शिराएं ,रक्त वाहिकाएं या फिर धमनियां यानी हृदय को रक्त मुहैया करवाने वाली नालियां असरग्रस्त होती हैं। एंजाइना इसी की एक कम गंभीर किस्म की नस्ल है क्योंकि यह चेतावनी देकर आता है दर्द की लहर सीने की हड्डी जहां है वहां से उठकर आगे बढ़ती है हाथों की उंगलियों तक आ जाती है ,कमर के किसी भी हिस्से में  गर्ज़  ये कहीं तक भी जा सकती है। बस मुंह में जीभ  के नीचे एक सब -लिंगुअल छोटी सी गोली रखिये थोड़ा सा आराम करिये। लेकिन यह वैसे ही है जैसे कम शक्ति का ज़लज़ला (भू -कम्प ),इसका बार -बार उठना ,आराम करते वक्त भी आसन्न खतरे की घंटी भी हो सकता है। 
You may be in for a MI (Mayo-cardiac -infarction )

बड़ा ज़लज़ला आपकी जान को आ सकता है मेजर ब्लॉकेड की  ओर इशारा है यह। एंजाइना पेक्टोरिस में तो हृदय को रक्त की आपूर्ति आंशिक तौर पर ही विलम्बित होती है यहां मांजरा दूसरा है। इसकी गंभीरता धमनी अवरोध कितना है कितनी धमनियों में चला आ रहा है आपको इसकी खबर भी  है या नहीं अनेक चीज़ों से तय होता है। 

दिल के आम  दौरे की वजह भी यही बनता है। हार्ट फेलियर का मतलब सिर्फ इतना होता है हृदय की कार्यप्रणाली पूरी तरह ठीक से काम नहीं कर पा रही है। 

कैसे बचा जाए बीमारी से (बचाव के  रण-नीतिक उपाय )क्या हो सकते हैं ?

सामान्य  से कुछ ज्यादा ही रक्त चाप का कायम रहना ,खून में चर्बी की मात्रा का ज्यादा बने रहना ,धूम्रपान की आदत और मोटापा आपके लिए रोग के खतरे के वजन को बढ़ाते हैं। ज़ाहिर हैं इन पे काबू रखिये यही बचाव है। और हाँ !(दिन )चर्या में से व्यायाम का सिरे से नदारद होना ,बैठे -बैठे हुकुम चलाना हरेक काम के लिए दिल के लिए अच्छा नहीं है। 

मधुमेह है तो ब्लड सुगर कंट्रोल फाइन होना चाहिए। 

Understanding Angina Pectoris

जब आपके हृदय के किसी हिस्से को रक्त की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती है ज़रूरी से कमतर रक्त यहां पहुँच रहा है ,आपको सीने में दर्द ,घुटन जैसा कुछ महसूस हो रहा है। तब यह एंजाइना का ही संकेत है। जानकार बतलाते हैं यह एहसास दर्द का डिस्कम्फर्ट का आमतौर पर तो चेस्टरनम के नीचे होता है लेकिन क्या काँधे क्या जबड़े ,गर्दन,  क्या आपकी कमर कहीं भी यह दर्द आपको बे -चैनी दे सकता है। 

विशेष :एक छोटा सा टेलर भर हमने आप के साथ देखा है हृदय और हृद संवहन तंत्र से जुड़े रोगों का। 

संदर्भ -सामिग्री :(१ )http://heartdiseasefaqs.com/cardiovascular-disease/?utm_source=bing&utm_medium=cpc&utm_campaign=heartdiseasefaqs.com&utm_term=cardiovascu

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

Pandit Vijay Shankar Mehta Ji | Shri Ram Katha | Kishkindha Kand

अकर्ता का भाव आपके जीवन में आये। ऐसा अनुभव करिये आज अंतिम दिन है आपके जीवन का तब देखिये जीवन में कैसे परिवर्तन आते हैं । कथा आपके जीवन में रूपांतरण पैदा करे तभी सार्थकता है कथा सुन ने की ।

आप प्रकृति से जुड़ें ,जड़ वस्तुओं से  चेतन जैसा ही व्यवहार करें। जीवन से सहजता चली गई ,पूरा जीवन चला गया ,जीवन संतुलन का नाम है। जो चल रहा है उसको जम के पकड़ लें जो बीत गया उसे भूल जाएँ। अपेक्षा रहित हो जाएँ।
अनुचित का विसर्जन कथा का परिणाम हो तभी कथा सुन ना सार्थक होगा। अहम को छोड़िये दुर्गुणों से मुक्ति पाइये ,हलके रहिये तभी जीवन में जो समस्याएं कुकुरमुत्तों की तरह चली आती है अनिमंत्रित उनसे दो चार होने की सूझ मिलेगी ,बल मिलेगा सात्विक। चार प्रकार की समस्याएं आती हैं  हमारे जीवन में :

(१ )निजी जीवन की समस्याओं का संबंध होता है मन से। निजी जीवन में अशांति का केंद्र यह मन ही होता है।हमें  मन पे काम करना पड़ेगा अन्यों पर आरोप लगाने से हल नहीं होंगी समस्याएं। निजी जीवन में आप सबसे ज्यादा परेशान स्वयं से होते हैं।

(२ )दूसरी समस्या पारिवारिक जीवन की होती है जिसका संबंध होता है तन से क्योंकि परिवार का सम्बन्ध तन से रहता है।

(३ )तीसरी समस्या है सामाजिक जीवन की जिसका संबंध है जन्म से।

(४ )चौथी समस्या होती है व्यावसायिक जीवन की जिसका संबंध होता है  धन से।

किष्किंधा काण्ड इनका समाधान प्रस्तुत करता है। इसीलिए इसे मानस का रत्न कहा गया है।जैसे रत्न एक बेशकीमती डिब्बी में होता है जिसके नीचे भी अस्तर होता है  और जिसके ऊपर भी अस्तर लगा ढक्कन होता है।किष्किंधा काण्ड भी इसी तरह बीच में है मानस के।

  रामचररित मानस जीवन का प्रबंधन प्रस्तुत करती है। किष्किंधा काण्ड के सारे पात्र समस्या ग्रस्त हैं :

(१ )राम जी की समस्या सीता जी का अपहरण होना है

(२ )लक्षमण सोचते हैं यह सब मेरी गलती के कारण हुआ है

(३ )बाली इसलिए परेशान है सुग्रीव हाथ नहीं आता है जाकर छिप गया है किष्किंधा परबत पर

(४ )सुग्रीव की समस्या यह है बाली मार न दे।

(५  )हमनुमान की समस्या यह है राम कब मिलेंगे।

शरीर मन और आत्मा तीनों का प्रबंधन जीवन का प्रबंधन है अभी हम अपना सारा ध्यान अस्सी फीसद शरीर पर ही लगाते हैं इसे ही वजन देते हैं।ब्यूटीपार्लर की बढ़ती फैलती नर्सरी शहरों कस्बों में इसका प्रमाण है।  फिर भी शरीर से स्वस्थ रहते हुए भी हम अशांत रहते हैं। मन पे हमें काम करना पड़ेगा। मन अन-गढ़ा पड़ा हुआ है इसे गढ़ना पड़ेगा। ध्यान (मेडिटेशन )से गढ़ा जाएगा मन।बिना गढ़ा पथ्थर पथ्थर गढ़ा हुआ भगवान् की मूर्ती।

आपको आप के अलावा कोई तंग नहीं कर सकता ,मन को गढ़िए।मन और आत्मा का प्रबंधन सिर्फ मनुष्य ही कर सकता है पशुपक्षी नहीं ,उनके कार्यकलाप शरीर तक ही हैं।  लेकिन मनुष्य  शरीर के प्रबंधन में ही ९९.९ फीसद अटका हुआ है । भोग यौनि है यह पशुवत इस प्रकार का जीवन जो शरीर प्रबंधन तक ही सीमित है।

इंसान लगातार जानवर होता जा रहा है तो क्यों ?सोचिये ज़वाब आपको ही ढूंढना है।

माँ अंजना हनुमान को कहती हैं जीवन में तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बन ना है तुम्हें राम से मिलना है राम के लिए काम करना है जीवन में तीन बातें याद रखना

 -प्रार्थना करना ,प्रार्थना  (उपासना मनुष्य को विनम्र बनाती है ),परिश्रम और इन दोनों के बाद भी प्रतीक्षा करना -धैर्य भक्ति का संबल है बहुत बड़ा गुण  है शर्त है।

अक्सर हनुमान बचपन में अकेले बैठे खुद से पूछा करते थे -आखिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है एक दिन माँ से भी यही सवाल पूछा तब उल्लेखित ज़वाब मिला।

बाली का बध हमें बतलाता है परिवार के सम्बन्ध  नीति और नैतिकता पर चलने चाहिए। बाली अपने अनुज की पत्नी का अपहरण करके ले आता है इसीलिए मारा जाता है लेकिन जाते -जाते अंगद को भगवान के  हवाले करके ये सन्देश  भी दे जाता है अपने जीते जी अपनी संतानों को भगवान से जोड़ देना।

माता -पिता को भारतीय संस्कृति में भगवान् का दर्ज़ा दिया गया है। आपको संतान के प्रति करुणा आखिर तक नहीं छोड़नी है संतान जो भी करे ये वो जाने। संताने माँ बाप का आईना होती हैं आईने में छवि विकृत है तो आईना साफ़ किया जाता है तोड़ा नहीं जाता ,कहीं न कहीं हमें अपना आचरण भी चेक करना पड़ेगा कहीं संतान हमारी वजह से तो नहीं बिगड़ रही।

मेडिटेशन कर लेना १५ मिनिट संतानें बचाने के लिए आज यह ज़रूरी है आज संतान केवल विचार और  शब्दों से नहीं पाली जा सकती ,उसके अंदर उतरना  पड़ेगा पहले अपना आचरण ठीक करना  पड़ेगा ।

सत्संग से क्रोध समाप्त हो जाता है। कुपित लक्ष्मण जी का क्रोध राम का यशोगान सुनने पर समाप्त हो जाता है लक्ष्मण  सुग्रीव को समझाने आये थे अपने ढंग से -तुम भगवान् का काम भूल गए ,सीता की खोज का काम भूल गए।

साकिया भले टाल दे मुझे मयखाने से ,

मेरे हिस्से की छलक जाएगी पैमाने से।

सुग्रीव राम से कृपा माँगते  हैं ये कहते हुए काम क्रोध और लोभ  के हण्डों  से कौन बचा है फिर मैं ठहरा नीच कुल का वानर गलती हुई मुझसे -तेरी कृपा के बिना अब मेरा पार नहीं मेरे साधने से कुछ न सधेगा।सुग्रीव भगवान से कृपा मांगना सिखलाते हैं।

किष्किंधा काण्ड का एक और सन्देश है :गलत बात एक सीमा तक ही सहना ,इसके आगे इसका प्रतिरोध न करना इसे बढ़ावा देना होगा। कोई एक चांटा मारे दूसरा आगे करना यहां तक तो ठीक लेकिन तीसरा मारे तो पलट के ज़ोरदार मुक्का मारना बुरा नहीं है।

संदर्भ -सामिग्री :

https://www.youtube.com/watch?v=HmT4ehEspeI

सुनामी का मतलब सुंदर नाम वाली

सुनामी का मतलब सुंदर नाम वाली 

एक बार एक पत्रकार ने राहुल से कहा -लोग पूछते हैं आप पचास साल के हो गए शादी कब कर रहें हैं। बोले राहुल -सुनामी आ रही है क्या ?

आप सुनामी को कल अच्छे नाम वाली सुंदर लड़की समझ रहे थे आज उसे राहुलजी - जीएसटी बतला रहे हैं। 

आप राजनीति में इधर -उधर प्रचलित भाषा सुनते रहते हैं और फिर उसका मन -माना इस्तेमाल शुरू कर देते हैं। वजह इसकी यह रहती है आपको अपने द्वारा ही बरते गए शब्दों का मतलब पता  नहीं होता। 

परसों आप इसी 'जनरल सर्विसेज़ और गुड्स टेक्स 'को -'गब्बर सिंह टेक्स 'कह रहे थे। अरे भाई एक बात पे कायम रहो। रोज़ नए पर्यायवाची गढ़ रहे हो जीएसटी के। 
हाँ आई थी सुनामी भारत में तब जब आपके पिता श्री ने ये कहा था-जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांपती है। नतीजा सब जानते हैं फिर भी जो १९८४ के बाद पैदा हुए हमारे नौनिहाल हैं उनकी जानकारी के लिए बतला देवें -फिर हुआ था नर संहार ,सरदार भाइयों का कत्ले आम,सुबह शाम। 

मज़ाक से हटके बतलाते चलें Tsunami शब्द में जापानी भाषा में 'tsu'
(kanji  )Harbor बोले तो बंदरगाह होता है और  (nami),का Wave या तरंग ,दोनों मिलाकर बंदरगाह -तरंग (सुनामी ). 

मुख्य तौर पर समुन्दर के नीचे सब्डक्शन अर्थ कुएक्स इसकी वजह बनते हैं। 

संदर्भ -सामग्री :

(१ )http://academic.evergreen.edu/g/grossmaz/SPRINGLE/ 
(२ )https://en.wikipedia.org/wiki/Tsunami