रविवार, 4 जुलाई 2021

चीन का शताब्दी मार्च – साम्यवाद से साम्राज्यवाद की ओर

शी जिनपिंग अपने आप को आज के युग के चीनी सम्राट के रूप में पेश कर रहें हैं। अमेरिका और यूरोप को माल बेचकर हासिल हुई अपनी आर्थिक ताकत से अमेरीका और यूरोप को ललकारा जा रहा है। ताकि चीनी लोग आर्थिक सुधारों और अपने नागरिक अधिकारों की मांग की बात को भूलकर चीन के खिलाफ गोलबंद हो रहे लोकतांत्रिक देशों का सामना करने में चीनी कम्यूनोस्ट पार्टी का साथ दें।  

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इस महीने अपनी स्थापना शताब्दी मना रही है। पार्टी की स्थापना शंघाई की फ़्रांसीसी कॉलोनी के पास हुआंगपू नदी की एक नाव में हुई थी जहाँ माओ-त्से दोंग और दर्जन भर युवा क्रांतिकारियों ने पुलिस से बचते-बचाते एक बैठक की थी। कहते हैं कि माओ इस बैठक की तिथि को भूल गए थे। इसलिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का स्थापना दिवस पहली जुलाई को मनाया जाता है।

राजधानी बीजिंग के तियानन्मैन चौक में हुए भव्य शताब्दी समारोह में बोलते हुए राष्ट्रपति शी जिन्पिंग ने चीन को घेरने की कोशिश में लगी ताक़तों को चेतावनी देते हुए कहा, ‘चीन किसी की धौंस में नहीं आएगा। जो चीन को दबाने की ज़ुर्रत करेगा उसका सिर तोड़ दिया जाएगा।’ उन्होंने अमेरिका की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ‘हम नैतिक पाठ नहीं पढ़ेंगे और हमारा अटल संकल्प है कि हम ताइवान को चीन में मिलाएँगे। कोई इसे हल्के में न ले।’

शताब्दी समारोह के अवसर पर शी जिन्पिंग के इस तेवर के दो लक्ष्य थे। पहला, लोगों में चीनी अस्मिता और राष्ट्रवाद की भावना जगाना और यह याद दिलाना कि वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उनकी सरकार के हाथों में ही सुरक्षित है। उन्होंने अपने भाषण में कहा, ‘समाजवाद ही चीन को बचा सकता है और चीनी ख़ूबियों वाला समाजवाद ही चीन का विकास कर सकता है।’ चीनी ख़ूबियों वाले समाजवाद का मतलब पूँजीवादी उद्योगनीति और समाजवादी राजनीति का वह दिलचस्प मिश्रण है जो चीन में पिछले 40 साल से चल रहा है। दूसरा लक्ष्य दुनिया को यह संकेत देना था कि चीन अब अपनी नई आर्थिक और सैनिक ताक़त का प्रयोग अपने प्रभाव और हितों के साम्राज्य को फैलाने में करेगा।

ध्यान देने की बात है कि यह वही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है जिसे 1949 में सत्ता में आने के बाद 21 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र में अपनी सीट पर नहीं बैठने दिया गया था। सत्ता के आरंभिक वर्षों में जिसकी आर्थिक दशा उत्तरी कोरिया से भी ख़राब थी, जिसने मुख्यतः माओ के नेतृत्व वाले पहले 30 वर्षों में ‘ग्रेट लीप फ़ॉरवर्ड’ और ‘सांस्कृतिक क्रांति’ जैसे ऊल-जलूल प्रयोगों से देश को भुखमरी और बरबादी के गर्त में धकेला। माओ के मार्चों से बरबाद हुई खेती और भीषण अकाल ने, और एक वर्ग के लोगों को दूसरे वर्ग के लोगों पर छोड़ने की नीति ने कम-से-कम साढ़े चार करोड़ लोगों की जान ले ली। मानव इतिहास में इससे बड़ी जनहानि नहीं हुई।

लेकिन पिछले चालीस सालों के आर्थिक विकास ने पहले तीस सालों के ज़ख़्म भर दिए हैं। चीन का आर्थिक विकास इतिहास में सबसे तेज़ और अनवरत चलने वाला आर्थिक विकास है। 1980 में चीन का सकल घरेलू उत्पाद केवल 191 अरब डॉलर था और प्रति व्यक्ति आय 195 डॉलर प्रति वर्ष थी और वह भारत से पीछे था। आज उसकी अर्थव्यवस्था 143 खरब डॉलर और प्रति व्यक्ति आय 10,261 डॉलर हो गई है जो भारत से पाँच गुना है। 

आख़िर फ़र्श से अर्श की इस उड़ान का रहस्य क्या है? ऐसा क्या है जो दुनिया की कोई और कम्युनिस्ट पार्टी नहीं कर पाई और चीन ने कर लिया? चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रेरणास्रोत सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से भी लंबे समय तक शासन किया। पर अपने 74 साल के शासन में उसने सोवियत संघ का दिवाला निकाल दिया। यही हाल उत्तरी कोरिया, क्यूबा और वेनेज़ुएला जैसे देशों का हुआ। चीन के अलावा कोई ऐसा कम्युनिस्ट देश नहीं है जो चीन जैसी आर्थिक उन्नति कर पाया हो जो पूँजीवादी देशों को सोचने पर मजबूर कर दे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने यह काम सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखते हुए किया है। मज़दूरों को अपने हक़ों के लिए लड़ने, लोगों को अपने विचार और असहमति प्रकट करने और असहमत लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। फिर भी लोगों से बात करके देखने पर लगता है कि वे ख़ुश हैं।

विशेष :हमारा मानना है आलमी स्तर पर आसन्न खतरे से घिरे शी चिनपिंग बेहद डरे हुए हैं। कमज़ोर आदमी ही धमकी देता है। बंदर घुड़की से ज्यादा असर नहीं रखती हैं ऐसी धमकियां। आखिर कब तक नयी सोच पर आप  ढ़क्कन लगाए रहियेगा।  एक दिन ये अंदर के दाब से उड़ जाएगा। बेहद सटीक विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं शिवकांत जी। इतिहास के झरोखों में ले जाकर आप पाठक को वर्तमान में लाके छोड़ देते हैं अपना निष्कर्ष खुद निकालने को।आपका यह आलेख 'सत्य हिंदी ' दैनिक की आज ४ जुलाई २०२१ की लीड स्टोरी (अग्र लेख )बना मुखरित है।  

शिवकांत जी लंदन से (पूर्व सम्पादक बीबीसी )
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