गुरुवार, 12 नवंबर 2015

अल्प संख्यक तुष्टिकरण का एक नायाब मौक़ा कांग्रेस को मिल गया है। सोनिया मायनो की गुप्त योजना के अनुसार कर्नाटक की कांग्रेस सरकार टीपू सुलतान की जयंती मना रही है। कर्नाटक के लोग ही इस जयंती का विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वाले तीन आदमी मार गिराये गए हैं। साफ़ है कि ये तीनों हिन्दू हैं। अगर उनके चहेते सम्प्रदाय का कोई इखलाक होता तो सोनिया मायनो की कांग्रेस पूरे देश में हल्ला करके उलट पुलट कर देती। टीपू सुलतान कोई इतिहास की अनजानी सख्शियत नहीं है ,ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार टीपू सुलतान ने हिन्दुओं पर अथाह जुल्म किये उसने ८०० तो हिन्दू मंदिर तुड़वा दिए ,चर्चों को भी तुड़वा दिया। हज़ारों हिन्दू ब्राह्मण कर्नाटक छोड़कर केरल में जा बसे। इतिहास के इन तथ्यों को झुठलाना कांग्रेस के लिए सम्भव नहीं है। अब सोनिया मायनो अपने पुराने वफादार गिरीश कर्नाड को आगे लेकर आईं हैं ,वो खुद तो चुप है पर गिरीश कर्नाड को ले जा रहे हैं। उनका तर्क ये है कि टीपू सुलतान अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े थे। ये क्या तर्क हुआ। अपनी सल्तनत बचाने के लिए उन्होनें अंग्रेज़ों से युद्ध किया था। गिरीश कर्नाड जैसे लोगों का ये कहना कि युद्ध में टीपू सुलतान ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ते हुए कुर्बानी दे दी थी ये ऐसा बेहूदा तर्क गिरीश कर्नाड ही दे सकते हैं। दो पक्षों में से कोई न कोई सेनापति या राजा मारा ही जाता है। अब यदि टीपू सुलतान युद्ध में मारे गए तो कैसी कुर्बानी।



शिवाजी ने मुगलों और अंग्रेज़ों दोनों के विरुद्ध युद्ध में हथियार उठाये थे न की अपनी तलवार से निरीह मुसलमानों को मारा था। युद्ध में लड़ना और अपने धर्म के इतर लोगों पर बे -पनाह जुल्म करना और उन्हें मार देना ये कहाँ की वीरता है। तो फिर वीर शिवाजी से टीपू सुलतान की तुलना कैसी। अब लोग पूछ रहे हैं ,सोनिया मायनो की कांग्रेस क्या बाबर की जयंती भी मनाएगी। कुछ तो ये भी सुझाव दे रहे हैं की कांग्रेसियों को मोेहम्मद गौरी, मेहमूद गजनवी ,तैमूर खान ,अहमद शाह अब्दाली और सिंध पर हमला करने वाले यवनों की भी जयंतियाँ मनानी चाहिए। लीद ही खानी है तो हाथी की खाए। अल्पसंख्यकों का वोट भी मिलेगा और पेट भी भरेगा।

अल्प संख्यक तुष्टिकरण का एक नायाब मौक़ा कांग्रेस को मिल गया है। सोनिया मायनो की गुप्त योजना के अनुसार कर्नाटक की कांग्रेस सरकार टीपू सुलतान की जयंती मना  रही है। कर्नाटक के लोग ही इस जयंती का विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वाले तीन आदमी मार गिराये गए हैं। साफ़ है कि ये तीनों हिन्दू हैं। अगर उनके चहेते सम्प्रदाय का कोई इखलाक होता तो सोनिया मायनो की कांग्रेस पूरे देश में हल्ला करके उलट  पुलट कर देती। टीपू सुलतान कोई इतिहास की अनजानी सख्शियत नहीं है ,ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार टीपू सुलतान ने हिन्दुओं पर अथाह जुल्म किये उसने ८०० तो हिन्दू मंदिर तुड़वा दिए ,चर्चों को भी तुड़वा दिया। हज़ारों हिन्दू ब्राह्मण कर्नाटक छोड़कर केरल में जा बसे। इतिहास के इन तथ्यों को झुठलाना कांग्रेस के लिए सम्भव नहीं है। अब सोनिया मायनो अपने पुराने वफादार गिरीश कर्नाड को आगे लेकर आईं  हैं  ,वो खुद तो चुप है पर गिरीश कर्नाड को ले जा रहे हैं। उनका तर्क ये है कि टीपू सुलतान अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े थे। ये क्या तर्क हुआ। अपनी सल्तनत बचाने के लिए उन्होनें अंग्रेज़ों से युद्ध किया था। गिरीश कर्नाड जैसे लोगों का ये कहना कि युद्ध में टीपू सुलतान ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ते हुए कुर्बानी दे दी थी ये ऐसा बेहूदा तर्क गिरीश कर्नाड ही दे सकते हैं। दो पक्षों में से कोई न कोई सेनापति या राजा मारा ही जाता है। अब  यदि टीपू सुलतान युद्ध में मारे गए तो कैसी कुर्बानी।

एक बेहूदी बात गिरीश कर्नाड ने और कही है ,यदि टीपू सुलतान मुस्लिम न होकर हिन्दू होते और कर्नाटक की बजाय महाराष्ट्र में पैदा होते तो उन्हें शिवाजी के समान आदर मिलता। गिरीश कर्नाड को अंग्रेज़ों के जिस इतिहास लेखन पर एतराज है उन्होंने शिवाजी की वीरता का वर्रण करते हुए यह भी लिखा है की शिवाजी ने इस्लाम के पूजा स्थलों को कभी हाथ नहीं लगाया उन्हें सुरक्षित रखा। और टीपू के बारे में लिखा है ,उन्होंने सैंकड़ों मंदिरों को तोड़ा और हज़ारों हिन्दुओं को मार दिया। गिरीश कर्नाड को इतनी समझ तो होनी चाहिए ,शिवाजी ने  मुगलों और अंग्रेज़ों दोनों के विरुद्ध युद्ध में हथियार उठाये थे न की अपनी तलवार से निरीह मुसलमानों को मारा था। युद्ध में लड़ना और अपने धर्म के इतर लोगों पर बे -पनाह जुल्म करना और उन्हें मार देना ये कहाँ  की वीरता है। तो फिर वीर शिवाजी से टीपू सुलतान की तुलना कैसी। अब लोग पूछ रहे हैं ,सोनिया मायनो की कांग्रेस क्या बाबर की जयंती  भी मनाएगी। कुछ तो ये भी सुझाव दे रहे हैं की कांग्रेसियों को मोेहम्मद गौरी, मेहमूद गजनवी ,तैमूर खान ,अहमद शाह अब्दाली और सिंध पर हमला करने वाले यवनों की भी  जयंतियाँ मनानी चाहिए। लीद  ही खानी है तो हाथी की खाए। अल्पसंख्यकों का वोट भी मिलेगा और पेट भी भरेगा।

ये नहीं भूलना चाहिए की श्रीमती  सोनिया मायनो के पिताश्री इटली के  तानाशाह मुसोलिनी के प्रशंशक ही नहीं पक्षकार भी थे। 

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