गुरुवार, 26 जुलाई 2018

मन फूला फूला फिरे जगत में झूठा नाता रे , जब तक जीवे माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे , तेरह दिन तक तिरिया रोवे फ़ेर करे घर वासा रे।

https://www.youtube.com/watch?v=DjmOFM9q0uk

पेड़ से फल पकने के बाद स्वत : ही गिर जाता है डाल से अलग हो जाता है एक मनुष्य ही है जो पकी उम्र के बाद भी बच्चों के बच्चों से चिपका रहता है। इसे ही मोह कहते हैं। माया के कुनबे में लिपटा रहता है मनुष्य -मेरा बेटा मेरा पोता मेरे नाती आदि आदि से आबद्ध रहता है। 

ऐसे में आध्यात्मिक विकास के लिए अवकाश ही कहाँ रहता है लिहाज़ा :

पुनरपि जन्मम पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शयनम। 

अनेकों जन्म बीत गए ट्रेफिक ब्रेक हुआ ही नहीं।   

क्या इसीलिए ये मनुष्य तन का चोला पहना था। आखिर तुम्हारा निज स्वरूप क्या है। ये सब नाते नाती रिश्ते तुम्हारे देह के संबंधी हैं  तुम्हारे निज स्वरूप से इनका कोई लेना देना नहीं है। शरीर नहीं शरीर के मालिक  शरीरी हो तुम। पहचानों अपने निज सच्चिदानंद स्वरूप को। 
अहम् ब्रह्मास्मि 

कबीर माया के इसी कुनबे पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं :मनुष्य जब यह शरीर छोड़ देता है स्थूल तत्वों का संग्रह जब सूक्ष्म रूप पांच में तब्दील हो जाता है तब माँ जीवन भर संतान के लिए विलाप करती है उस संतान के लिए जो उसके जीते जी शरीर छोड़ जाए। बहना दस माह तक और स्त्री तेरह दिन तक। उसके बाद जीवन का वही ढर्रा बढ़ता है अपनी चाल। 

मन फूला फूला फिरे जगत में झूठा नाता रे ,

जब तक जीवे माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे ,

तेरह दिन तक तिरिया रोवे फ़ेर करे घर वासा रे। 

https://www.youtube.com/watch?v=fIn2dPfXflA

https://www.youtube.com/watch?v=7FZFvFWztOA

https://www.youtube.com/watch?v=_AHBSi2_Dpc&list=PL8AD58AE18FE2FC69

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