सोमवार, 14 दिसंबर 2015

खड़खड़ करता दुश्शासन है ,बेबस द्रुपदसुता संसद है , एक इंच भी नहीं हटूंगा ,दुर्योधन का अड़ियलपन है ,


'कभी सुदर्शन चक्र खिलेगा'

अब जबकि पुरूस्कार लौटाने वाले   लौटंकी   दिखलाकर बड़े खुश हैं , कौरव  द्रुपदसुता रुपी संसद  का चीरहरण करने पर आमादा हैं ,राष्ट्र ठगा सा महसूस करता है ,राष्ट्र के आहत मन को आश्वस्त करती है डॉ वागीश की यह रचना :   

'कभी सुदर्शन चक्र खिलेगा'

 -डॉ.वागीश मेहता ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन इस्टेट ,गुडगाँव ,हरियाणा  

 चार उचक्के चालीस चोर , घन घमंड गर्जन है घोर ,

किसी और की बात न सुनते ,आसंदी की तरफ लपकते. 

                                  (१)

खड़खड़ करता दुश्शासन  है ,बेबस द्रुपदसुता संसद है ,

एक इंच भी नहीं हटूंगा ,दुर्योधन का अड़ियलपन है ,

गांधारी मुस्काती मन मन ,धृतराष्ट्र है खूब मगन। 

                                 (२ )
शोर शोर में कितनी मस्ती ,तर्क नियम की क्या है हस्ती ,

मन मारे अब विदुर मौन हैं ,मौन पितामह द्रौण मौन हैं ,

शकुनि ने फेंके हैं  पासे ,सबकी अटक गईं  हैं साँसें। 

                               (३) 

   न्याय पीठ पर चोट  करन्ते ,लोकलाज और शील के हन्ते ,

राष्ट्र समूचा स्तब्ध मना है ,एक आस विश्वास घना है ,

कभी सुदर्शन चक्र चलेगा ,और शांति का कमल खिलेगा।  

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