सत्य का आचरण करते -करते जिसके जीवन में भक्ति की बिंदी आ गई वही संत हो जाया करता है। साधू झूठ नहीं बोलता। भरोसा कर लिया शबरी ने भगवान् आयेंगे ,जिस समय भगवान् इनके द्वार पर आये ये अस्सी बरस की हो गई थीं ,भजन गा रहीं थीं ,पूजा में थीं ,गुरुदेव की चेतना इनके अंदर से बोल पड़ी -ओ सबरी देख ?क्या देखूं ?द्वार पे कौन है ?भगवान् खड़े थे:
शबरी देखि राम बिनि आये,
मुनि के वचन समुझ जिये आये।
साधु चरित शुभ चरित कपासू।
साधु का कहा झूठ नहीं होता सत्य ही सिद्ध होता है।
अरि शबरी देख !तेरे द्वार पे राम आये हैं द्वार पर शबरी ने देखा दो राजकुमार आये हैं। गुरु की चेतना जीवित रहती है साथ जाती है इस लोक से उस लोक तक। गुरु शिष्य को नहीं छोड़ सकता ,उसकी मज़बूरी है।शरीर का धर्म होता है शरीर जाया होता है मरता है क्षय होता है शरीर का ,गुरु मरा नहीं करते अंतर्ध्यान हुआ करते हैं।
स्वामी विवेकानंद के भाषण के शताब्दी समारोह वर्ष के बारे में एक फटॉग्रफर का संस्मरण "पंजाब केसरी"अखबार में छपा था जो उस समय फटॉग्रफी के क्षेत्र में एक बालक ही था ,वह भी उस अंतर् -राष्ट्रीय -धर्मसभा में था जिसमें स्वामीजी ने सम्भाषण किया था। इस बालक के पिता ने कहा तुम फोटो खींचो ,इस बालक ने सबके चित्र उतारे और चित्र तैयार करने के बाद होटल के जिन -जिन कमरों में सब धर्मगुरु रुके हुए थे वहां -वहां जाकर सबके फोटो देकर आया।
जब यह विवेकानंद जी के कमरे में पहुंचा तो इसने पूछा आपके पीछे एक साधु खड़े हुए थे वे कौन थे मैं उनके चरण छूना चाहता था ,यदि आप मिला दें तो। बोले विवेकानंद मुझे तो इस बात का इल्म ही नहीं है के कोई और भी मेरे पीछे खड़ा था। चित्र दिखाओ -देखा चित्र तो परमहंस रामकृष्ण थे उस चित्र में जो आठ वर्ष पहले ही शरीर छोड़ चुके थे जो इस चित्र में विवेकानंद जी के पीछे आभामंडल रूप में खड़े थे।
सन्देश यही था -गुरु शरीर छोड़ता है उसकी चेतना शिष्य के साथ -साथ रहती है ,गुरु नहीं मरता है कभी। इस जन्म से उस जन्म तक गुरु का आशीर्वाद साथ रहता है गुरु साथ नहीं छोड़ता।
आज भगवान् गौतम ऋषि के आश्रम पहुँचते हैं गुरु विश्वामित्र के साथ ,आश्रम जो निर्जन पड़ा है ,यहां एक बड़ी शिला भी पड़ी हुई है। भगवान् पूछते हैं यह क्या लीला है इतना बड़ा आश्रम और पशु -पक्षी ,जीव -जन्तु विहीन ,नीरव निर्जन प्रदेश -वत शून्य।
'चरण कमल रज चाहती ' ये जो शिला तुम देखते हो यह गौतम ऋषि की पत्नी थी जिसने बरसों तुम्हारी प्रतीक्षा की ,इस का उद्धार करो।पति गौतम ऋषि के शाप से यह शिला हो गई थी जिसने इसे त्याग दिया था।
भारत का साधु भगवान् से भक्त के लिए प्रार्थना ही करता है और कुछ नहीं चाहता। साधू कभी अपना कल्याण नहीं चाहता ।वह समाज का कल्याण चाहता है। भक्ति कथा से आती है। अहिल्या जी का प्रसंग बहुत मार्मिक प्रसंग है जो हमारे अपने जीवन से जुड़ा है। जीवन की समस्याओं से जुड़ा है। अहिल्या जी बुद्धि का प्रतीक हैं जिसे शतरूपा कहा गया है यह सौ रूप बदलती है। जब कुम्भ चलेगी बुद्धि भक्तानि रहेगी ,कुम्भ पूर्ण हो जाने के बाद (कथा के बाद) ये मयखाने जायेगी ,धोखा देती है बुद्धि।इसकी बातों में मत आइये।
गुण और अवगुण साधु और पापी दोनों में बराबर होते हैं सवाल यह है आप जीवन का कौन सा कमरा खुला रखते हैं सद्गुणों का या दुर्गुणों का।बुद्धि भ्रमित कर देती है। जैसा भी मौसम होता है,वैसी ही हो जाती है । वह वनस्पति ,वह पौध आ जाती है जैसा भी मौसम होता है। बीज गर्भ में पड़े रहते हैं मौसम के आते ही पौधा ज़मीन से निकलकर आता है।
पीना छोड़ दिया लेकिन पीने के बीज अंदर पड़े थे ,अगर बीज है और उसका मौसम आया तो वह निकलेगा। अहिल्या का इंद्र के प्रति शादी से पूर्व आकर्षण था। ब्रह्मा जी की बेटी थी अति सुन्दर भी इतनी के इंद्र खुद भी इन पर मोहित थे सम्मोहन का बीज इंद्र के अंदर भी पड़ा हुआ था। आकर्षण का बीज है तो वह ऊपर आएगा मौसम देखकर।
बुद्धि की मत सुनिए आत्मा की सुनिए। अहिल्या ने अपराध ज़रूर किया लेकिन पति से छिपाया नहीं। पाप छुपाने से बढ़ता है और पुण्य गाने बताने से घटता है ,जिसे हम छुपा कर रखते हैं मरते समय वही हमारे पास बचता है।
किये हुए कर्म भोगने पड़ते हैं।
"अवश्यमेव भोक्तम "
जो भी भला बुरा है श्री राम जानते हैं ,हमारा जीपीएस हैं श्री राम।
बन्दे के दिल में क्या है भगवान् जानते हैं।
आता कहाँ है कोई ,जाता कहाँ है कोई ,
युग युग से इस गति को ,श्री राम जानते हैं।
चरण कमल रज चाहती कृपा करो रघुवीर -विश्वामित्र भगवान् राम से कहते हैं :
सन्देश यही है कथा का :पाप हुआ है तो ज़ाहिर कर दो छुपाओ मत।
गुरु को बतला दो उसके चरणों में बैठकर ,किसी संसारी को नहीं -के मुझसे ये अपराध हो गया। संसारी को बतलाओगे तो वह ब्लेक मेल करेगा ,एक्सप्लॉइट करेगा ,परिवार को और मित्रों को तो भूलकर भी मत बतलाइये।
एक दिन गुरु ही पूजा में बैठकर भगवान् से आपके लिए विनय करेगा -प्रभु कृपा करो इससे अपराध तो हुआ है लेकिन यह क्षमा माँगता है।
अहिल्या चरण रज चाहती है।कृपा करो रघवीर चरण रज चाहती है यह नारी।
भगवान् कहते हैं पाप करो -
पाप तो होगा जैसे मछली बिना जल के नहीं रह सकती ,ऐसे ही मनुष्य बिना पाप के रह नहीं सकता लेकिन जो कल हुआ वह आज कैसे हो रहा है ,नया नया करो रोज़ ,इसका अर्थ है जानबूझकर किया जा रहा है। पाप करना है तो बड़े से बड़ा करो नित्य नया करो -लेकिन जो जीवन में एक बार हो गया दोबारा नहीं चलता।
फिर भी पाप हमारे जीवन में मौसम चक्र की तरह घूमता रहता है।चिता के साथ भी चिता तक भी नहीं छूटता ,चिता से आगे भी चला जाता है। साबुन भी है धोने के लिए रोज़ गंदा करो लेकिन रोज़ धोवो। महापुरुषों के जीवन में एक ही बार घटना हुई है जानकी जी ने एक बार भूल की है शंकर जी एक बार स्खलित हुए हैं ,विश्वामित्र जी एक बार पतित हुए हैं नारद जी एक बार गिरें हैं दोबारा नहीं ,अहिल्या जी एक बार गिरीं हैं दोबारा नहीं।हम रोज़ -रोज़ गिरते हैं।
कल केवल मलमूल मलीना। पाप पयोनिधि जल बिन बिना मीना।
अहिल्या जी का उद्धार हुआ। भगवान् ने कृपा कर दी भगवान् ने गौतम ऋषि को बुला लिया गौतम जी अहिल्या जी को बुला लीजिये। अहिल्या जी से पवित्र दूसरी नारी नहीं है।
प्रभु आगे की यात्रा में गंगा जी के किनारे आये हैं गंगाजी को देखकर भगवान् बैठ गए -पूछने लगे ये दिव्य नदी कौन है ?ऐसी नदी तो हमने स्वर्ग में भी नहीं देखी । गुरूजी कहते हैं गंगा को नहीं पहचानते आपके श्री कदमों से ही तो निकली है। भगवान् गंगा जी की कथा सुनना चाहते हैं।
भगवान् अब गंगा की कथा सुनना चाहते हैं।
जेहि प्रकार सुरसरि मुनि आई ,
राम बिलोकहिं गंग तरंगा ,
गंग सकल मुद मंगल मूला।
सब सुख करनी हरणी सब शूला ....
सब प्रकार के पाप का नाश करने वाली गंगा जी हैं। भक्ति कथा के बिना नहीं आएगी। भगवान् सारे रास्ता कथा ही सुनते जा रहे हैं।अभी गौतम जी की स्त्री की कथा सुनी अब गंगा जी की कथा सुन रहे हैं। क्षिप्राजी गंगा जी की सगी बहन हैं क्षिप्रा जी भगवान् विष्णु के हृदय से निकलीं हैं और गंगा श्री चरणों से। प्रतिदिन गंगा में स्नान कीजिये। हरिद्वार उज्जैन को आप घर बुला सकते हो। वहां जाने की जरूरत नहीं है।कहीं भी नहाइये बस गंगा जी का आवाहन करिये हर- हर गंगे जैशिवशंकर। हर -हर गंगे जैशिवशंकर। अगर इतना बोलते हुए आपने स्नान किया तो आपको लगेगा उज्जैनी ही नहाकर आये हैं हर की पौड़ी ही से नहाकर आये हैं।आखिर बाथ रूम में आप मौज़ में होते हैं कुछ न कुछ हर व्यक्ति गाता ही है। चुपचाप नहीं नहाता है मुक्त होता है स्नानघर में आदमी।नित्य अपनी बाल्टी में बुलाओ गंगा जी को।
कुछ न कुछ गंगा धाम पर जाकर दान करिये चाहे एक कप चाय ही पिला दो किसी साधू को। एक छोटी बुराई आप जो छोड़ सकते हैं ज़रूर छोड़िये।ये माँ है गंगा और क्षिप्रा इसकी सगी बहिन है और हर माँ यह चाहती है मेरा बेटा बाप की गोद में जाए। कभी भी बाप गंदे बच्चे को गोद में नहीं रखता मैले कुचैले बच्चे को नहीं उठाता, जगत का पिता भी :
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ,
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
माँ ही बच्चे को निर्मल करती है उसका मलमूत्र धौती है ताकि बच्चा नहाकर बाप की गोद में जा सके ।
रास्ते में एक बहुत सुन्दर बागीचा पड़ता है राम लक्ष्मण जी के साथ विश्वामित्र वहीँ ठहर जाते हैं। समाचार जनक जी को पता चलता है :
विश्वामित्र महामुनि आये ,
समाचार मिथिला पति पाये ।
जैसे ही जनक जी को पता चला सेवक सचिव अपने भाई को लेकर बागीचे में आये।
संतों के दर्शन अगर आपके शहर में आये हैं उनके दर्शन ज़रूर करिये। क्योंकि संत भगवान् के पार्षद होते हैं।
जब संत मिलन हो जाये ,
तेरी वाणी हरि गुण गाये ,
तब इतना समझ लेना ,
अब हरि से मिलन होगा।
बाग़ में दर्शन करने आये जनक जी बोले -गुरुवर मुझे तो स्मरण नहीं होता मैंने कभी कोई पुण्य किया है ज़रूर मेरे पूर्वजों का पुण्य होगा जो आप मेरे नगर में आये।आपका मुझे दर्शन हो गया राघव के रूप का जादू निर्गुण निराकार पर चल गया -जनक पूछने लगे ये दोनों बालक हैं या पालक हैं ?मुझे बताओ।
संत अगर आता है तो समझिये पीछे -पीछे राम जी भी आ रहें हैं। जनक के हाथ जुड़ गए भगवान को देखकर। विश्वामित्र जी से बात करना भूल गए जनक जी।
मुनि कुल तिलक के नृप कुल पालक
ब्रह्म जो कही नेति कही गावा
इन्हहिं बिलोकत अति अनुरागा ,
बरबस ब्रह्म सुकहिं मन जागा।
विदेह देह में डूब गये।
जो वस्तु ,व्यक्ति और विषय से प्रसन्न या अप्रसन्न होता है वह संसारी है ,जो असुरक्षा में जीता है वह संसारी है।
जो निश्चिन्त रहता है हर हाल में मधुकरि या भिक्षा मिले या न मिले ,जिसकी प्रसन्नता या अप्रसन्नता किसी वस्तु विषय या व्यक्ति से नहीं जुडी है वह साधु है।जो परिश्थितियों की सवारी करता है ,जो आज के आनंद में है वह साधु है।
जो परिस्थितियों से विचलित होता है वह संसारी है।
सीता राम ,सीता राम ,सीता राम कहिये ,
जाहि विधि राखै राम, ताहि विधि रहिये .
आ गए राज भवन में विश्वामित्र राम लक्ष्मण के साथ। जनक के आग्रह पर।
'करो सुफल सबके नयन ,
बेटा सुंदर बदन दिखाओ' -ये निर्गुण के उपासकों का नगर है। ज़रा इन्हें सगुण के दर्शन कराओ।
"जाहि देख आवहु नगर ... सुखनिधान दोउ भाई ,
बेटा सुफल करो सबके नयन सुंदर बदन दिखाओ। " ये विदेह नगरी है इन्हें सगुण साकार का भी आस्वाद कराओ।विश्वामित्र ने दोनों को नगर देखने भेज दिया।
समाचार पुर वासिन पाये ,
देखन नगर आये दोउ भाई। -कौन हैं कहाँ से आये हैं ये राजकुमार इतने कोमल इतने सुन्दर, नगर वासियों की आखों में यही सवाल है ?
युवती भवन झरोखेहिं लागीं .....
वर सांवरो जानकी जोग .... सखियाँ आपस में बतियाती हैं अरि ये सांवरो तो जानकी के योग्य है लेकिन ये तो बहुत कोमल है। धनुष कैसे उठाएगा ,दूसरी बोली इसका सौंदर्य देखके जनक अपनी प्रतिज्ञा बदल देंगे ,स्वयंवर में धनुष तोड़ने की शर्त ही समाप्त कर देंगें। एक बूढ़ी नब्बे साला बोली -अब इनका दर्शन तो बार -बार होगा ,जनक को जानकी बहुत प्यारी हैं जब ससुराल चली जाएंगी तो जनकजी , जल्दी -जल्दी बुलाया करेंगें ,ये दोनों विदा कराने आया करेंगे। हमें भी इन दोनों राजकुमारों का दर्शन हो जाया करेगा।सखियाँ अपनी सुध -बुध खोने लगतीं हैं एक भगवान से कहती है अब हमारा दिल तो हमारे पास रहा नहीं हम वगैर दिल के कैसे ज़िंदा रहेंगी ,आत्महत्या कर लेंगी। भगवान् बोले आत्महत्या की जरूरत नहीं है।
भक्ति अगर घर में है तो -भगवान् को आना ही पड़ेगा।
द्वापर में आना सब ,सबको ले चलूँगा। इस बार तो मैं एक पत्नी का ही व्रत लेकर आया हूँ।
सुन सखी प्रथम मिलन की बात -अब भगवान् और भक्ति सीता का जनक वाटिका में मिलन होने वाला है।आगे का प्रसंग बड़ा सुन्दर है। ध्यान से सुनिए :
"लेंहिं प्रसून चले दोउ भाई "-माली को चाचा जी कहके प्रणाम किया भगवान् ने । यही भगवद्ता है जो छोटे को बड़ा कर दे।माली कहने लगा भगवान् नहीं ऐसा मत करिये कहाँ आप और मैं कहाँ ?
आज समाज में वह बड़ा माना जाता है जिसके सामने सब छोटे दिखाई दें।
आ गया सम्पर्क में जो ,धन्यता पा गया -
इधर श्री किशोरी जी का सखियों के साथ वाटिका में प्रवेश हो रहा है। उधर भगवान् ने वाटिका में प्रवेश लिया है।
पूजन की करने तैयारी , सखिन संग आई जनक लली.......
बीच, सिया -कुमारी सखिन संग ,आईं जनक की लली ...
निर्मल नीर नहाई सरोवर ,
अरे शिवजी के मंदिर पधारीं ,
सखिन संग ,आईं जनक लली।
अब शादी कल करेंगे ,आज की कथा को विराम देते हैं।
जयश्री राम !
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )
शबरी देखि राम बिनि आये,
मुनि के वचन समुझ जिये आये।
साधु चरित शुभ चरित कपासू।
साधु का कहा झूठ नहीं होता सत्य ही सिद्ध होता है।
अरि शबरी देख !तेरे द्वार पे राम आये हैं द्वार पर शबरी ने देखा दो राजकुमार आये हैं। गुरु की चेतना जीवित रहती है साथ जाती है इस लोक से उस लोक तक। गुरु शिष्य को नहीं छोड़ सकता ,उसकी मज़बूरी है।शरीर का धर्म होता है शरीर जाया होता है मरता है क्षय होता है शरीर का ,गुरु मरा नहीं करते अंतर्ध्यान हुआ करते हैं।
स्वामी विवेकानंद के भाषण के शताब्दी समारोह वर्ष के बारे में एक फटॉग्रफर का संस्मरण "पंजाब केसरी"अखबार में छपा था जो उस समय फटॉग्रफी के क्षेत्र में एक बालक ही था ,वह भी उस अंतर् -राष्ट्रीय -धर्मसभा में था जिसमें स्वामीजी ने सम्भाषण किया था। इस बालक के पिता ने कहा तुम फोटो खींचो ,इस बालक ने सबके चित्र उतारे और चित्र तैयार करने के बाद होटल के जिन -जिन कमरों में सब धर्मगुरु रुके हुए थे वहां -वहां जाकर सबके फोटो देकर आया।
जब यह विवेकानंद जी के कमरे में पहुंचा तो इसने पूछा आपके पीछे एक साधु खड़े हुए थे वे कौन थे मैं उनके चरण छूना चाहता था ,यदि आप मिला दें तो। बोले विवेकानंद मुझे तो इस बात का इल्म ही नहीं है के कोई और भी मेरे पीछे खड़ा था। चित्र दिखाओ -देखा चित्र तो परमहंस रामकृष्ण थे उस चित्र में जो आठ वर्ष पहले ही शरीर छोड़ चुके थे जो इस चित्र में विवेकानंद जी के पीछे आभामंडल रूप में खड़े थे।
सन्देश यही था -गुरु शरीर छोड़ता है उसकी चेतना शिष्य के साथ -साथ रहती है ,गुरु नहीं मरता है कभी। इस जन्म से उस जन्म तक गुरु का आशीर्वाद साथ रहता है गुरु साथ नहीं छोड़ता।
आज भगवान् गौतम ऋषि के आश्रम पहुँचते हैं गुरु विश्वामित्र के साथ ,आश्रम जो निर्जन पड़ा है ,यहां एक बड़ी शिला भी पड़ी हुई है। भगवान् पूछते हैं यह क्या लीला है इतना बड़ा आश्रम और पशु -पक्षी ,जीव -जन्तु विहीन ,नीरव निर्जन प्रदेश -वत शून्य।
'चरण कमल रज चाहती ' ये जो शिला तुम देखते हो यह गौतम ऋषि की पत्नी थी जिसने बरसों तुम्हारी प्रतीक्षा की ,इस का उद्धार करो।पति गौतम ऋषि के शाप से यह शिला हो गई थी जिसने इसे त्याग दिया था।
भारत का साधु भगवान् से भक्त के लिए प्रार्थना ही करता है और कुछ नहीं चाहता। साधू कभी अपना कल्याण नहीं चाहता ।वह समाज का कल्याण चाहता है। भक्ति कथा से आती है। अहिल्या जी का प्रसंग बहुत मार्मिक प्रसंग है जो हमारे अपने जीवन से जुड़ा है। जीवन की समस्याओं से जुड़ा है। अहिल्या जी बुद्धि का प्रतीक हैं जिसे शतरूपा कहा गया है यह सौ रूप बदलती है। जब कुम्भ चलेगी बुद्धि भक्तानि रहेगी ,कुम्भ पूर्ण हो जाने के बाद (कथा के बाद) ये मयखाने जायेगी ,धोखा देती है बुद्धि।इसकी बातों में मत आइये।
गुण और अवगुण साधु और पापी दोनों में बराबर होते हैं सवाल यह है आप जीवन का कौन सा कमरा खुला रखते हैं सद्गुणों का या दुर्गुणों का।बुद्धि भ्रमित कर देती है। जैसा भी मौसम होता है,वैसी ही हो जाती है । वह वनस्पति ,वह पौध आ जाती है जैसा भी मौसम होता है। बीज गर्भ में पड़े रहते हैं मौसम के आते ही पौधा ज़मीन से निकलकर आता है।
पीना छोड़ दिया लेकिन पीने के बीज अंदर पड़े थे ,अगर बीज है और उसका मौसम आया तो वह निकलेगा। अहिल्या का इंद्र के प्रति शादी से पूर्व आकर्षण था। ब्रह्मा जी की बेटी थी अति सुन्दर भी इतनी के इंद्र खुद भी इन पर मोहित थे सम्मोहन का बीज इंद्र के अंदर भी पड़ा हुआ था। आकर्षण का बीज है तो वह ऊपर आएगा मौसम देखकर।
बुद्धि की मत सुनिए आत्मा की सुनिए। अहिल्या ने अपराध ज़रूर किया लेकिन पति से छिपाया नहीं। पाप छुपाने से बढ़ता है और पुण्य गाने बताने से घटता है ,जिसे हम छुपा कर रखते हैं मरते समय वही हमारे पास बचता है।
किये हुए कर्म भोगने पड़ते हैं।
"अवश्यमेव भोक्तम "
जो भी भला बुरा है श्री राम जानते हैं ,हमारा जीपीएस हैं श्री राम।
बन्दे के दिल में क्या है भगवान् जानते हैं।
आता कहाँ है कोई ,जाता कहाँ है कोई ,
युग युग से इस गति को ,श्री राम जानते हैं।
चरण कमल रज चाहती कृपा करो रघुवीर -विश्वामित्र भगवान् राम से कहते हैं :
सन्देश यही है कथा का :पाप हुआ है तो ज़ाहिर कर दो छुपाओ मत।
गुरु को बतला दो उसके चरणों में बैठकर ,किसी संसारी को नहीं -के मुझसे ये अपराध हो गया। संसारी को बतलाओगे तो वह ब्लेक मेल करेगा ,एक्सप्लॉइट करेगा ,परिवार को और मित्रों को तो भूलकर भी मत बतलाइये।
एक दिन गुरु ही पूजा में बैठकर भगवान् से आपके लिए विनय करेगा -प्रभु कृपा करो इससे अपराध तो हुआ है लेकिन यह क्षमा माँगता है।
अहिल्या चरण रज चाहती है।कृपा करो रघवीर चरण रज चाहती है यह नारी।
भगवान् कहते हैं पाप करो -
पाप तो होगा जैसे मछली बिना जल के नहीं रह सकती ,ऐसे ही मनुष्य बिना पाप के रह नहीं सकता लेकिन जो कल हुआ वह आज कैसे हो रहा है ,नया नया करो रोज़ ,इसका अर्थ है जानबूझकर किया जा रहा है। पाप करना है तो बड़े से बड़ा करो नित्य नया करो -लेकिन जो जीवन में एक बार हो गया दोबारा नहीं चलता।
फिर भी पाप हमारे जीवन में मौसम चक्र की तरह घूमता रहता है।चिता के साथ भी चिता तक भी नहीं छूटता ,चिता से आगे भी चला जाता है। साबुन भी है धोने के लिए रोज़ गंदा करो लेकिन रोज़ धोवो। महापुरुषों के जीवन में एक ही बार घटना हुई है जानकी जी ने एक बार भूल की है शंकर जी एक बार स्खलित हुए हैं ,विश्वामित्र जी एक बार पतित हुए हैं नारद जी एक बार गिरें हैं दोबारा नहीं ,अहिल्या जी एक बार गिरीं हैं दोबारा नहीं।हम रोज़ -रोज़ गिरते हैं।
कल केवल मलमूल मलीना। पाप पयोनिधि जल बिन बिना मीना।
अहिल्या जी का उद्धार हुआ। भगवान् ने कृपा कर दी भगवान् ने गौतम ऋषि को बुला लिया गौतम जी अहिल्या जी को बुला लीजिये। अहिल्या जी से पवित्र दूसरी नारी नहीं है।
प्रभु आगे की यात्रा में गंगा जी के किनारे आये हैं गंगाजी को देखकर भगवान् बैठ गए -पूछने लगे ये दिव्य नदी कौन है ?ऐसी नदी तो हमने स्वर्ग में भी नहीं देखी । गुरूजी कहते हैं गंगा को नहीं पहचानते आपके श्री कदमों से ही तो निकली है। भगवान् गंगा जी की कथा सुनना चाहते हैं।
भगवान् अब गंगा की कथा सुनना चाहते हैं।
जेहि प्रकार सुरसरि मुनि आई ,
राम बिलोकहिं गंग तरंगा ,
गंग सकल मुद मंगल मूला।
सब सुख करनी हरणी सब शूला ....
सब प्रकार के पाप का नाश करने वाली गंगा जी हैं। भक्ति कथा के बिना नहीं आएगी। भगवान् सारे रास्ता कथा ही सुनते जा रहे हैं।अभी गौतम जी की स्त्री की कथा सुनी अब गंगा जी की कथा सुन रहे हैं। क्षिप्राजी गंगा जी की सगी बहन हैं क्षिप्रा जी भगवान् विष्णु के हृदय से निकलीं हैं और गंगा श्री चरणों से। प्रतिदिन गंगा में स्नान कीजिये। हरिद्वार उज्जैन को आप घर बुला सकते हो। वहां जाने की जरूरत नहीं है।कहीं भी नहाइये बस गंगा जी का आवाहन करिये हर- हर गंगे जैशिवशंकर। हर -हर गंगे जैशिवशंकर। अगर इतना बोलते हुए आपने स्नान किया तो आपको लगेगा उज्जैनी ही नहाकर आये हैं हर की पौड़ी ही से नहाकर आये हैं।आखिर बाथ रूम में आप मौज़ में होते हैं कुछ न कुछ हर व्यक्ति गाता ही है। चुपचाप नहीं नहाता है मुक्त होता है स्नानघर में आदमी।नित्य अपनी बाल्टी में बुलाओ गंगा जी को।
कुछ न कुछ गंगा धाम पर जाकर दान करिये चाहे एक कप चाय ही पिला दो किसी साधू को। एक छोटी बुराई आप जो छोड़ सकते हैं ज़रूर छोड़िये।ये माँ है गंगा और क्षिप्रा इसकी सगी बहिन है और हर माँ यह चाहती है मेरा बेटा बाप की गोद में जाए। कभी भी बाप गंदे बच्चे को गोद में नहीं रखता मैले कुचैले बच्चे को नहीं उठाता, जगत का पिता भी :
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ,
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
माँ ही बच्चे को निर्मल करती है उसका मलमूत्र धौती है ताकि बच्चा नहाकर बाप की गोद में जा सके ।
रास्ते में एक बहुत सुन्दर बागीचा पड़ता है राम लक्ष्मण जी के साथ विश्वामित्र वहीँ ठहर जाते हैं। समाचार जनक जी को पता चलता है :
विश्वामित्र महामुनि आये ,
समाचार मिथिला पति पाये ।
जैसे ही जनक जी को पता चला सेवक सचिव अपने भाई को लेकर बागीचे में आये।
संतों के दर्शन अगर आपके शहर में आये हैं उनके दर्शन ज़रूर करिये। क्योंकि संत भगवान् के पार्षद होते हैं।
जब संत मिलन हो जाये ,
तेरी वाणी हरि गुण गाये ,
तब इतना समझ लेना ,
अब हरि से मिलन होगा।
बाग़ में दर्शन करने आये जनक जी बोले -गुरुवर मुझे तो स्मरण नहीं होता मैंने कभी कोई पुण्य किया है ज़रूर मेरे पूर्वजों का पुण्य होगा जो आप मेरे नगर में आये।आपका मुझे दर्शन हो गया राघव के रूप का जादू निर्गुण निराकार पर चल गया -जनक पूछने लगे ये दोनों बालक हैं या पालक हैं ?मुझे बताओ।
संत अगर आता है तो समझिये पीछे -पीछे राम जी भी आ रहें हैं। जनक के हाथ जुड़ गए भगवान को देखकर। विश्वामित्र जी से बात करना भूल गए जनक जी।
मुनि कुल तिलक के नृप कुल पालक
ब्रह्म जो कही नेति कही गावा
इन्हहिं बिलोकत अति अनुरागा ,
बरबस ब्रह्म सुकहिं मन जागा।
विदेह देह में डूब गये।
जो वस्तु ,व्यक्ति और विषय से प्रसन्न या अप्रसन्न होता है वह संसारी है ,जो असुरक्षा में जीता है वह संसारी है।
जो निश्चिन्त रहता है हर हाल में मधुकरि या भिक्षा मिले या न मिले ,जिसकी प्रसन्नता या अप्रसन्नता किसी वस्तु विषय या व्यक्ति से नहीं जुडी है वह साधु है।जो परिश्थितियों की सवारी करता है ,जो आज के आनंद में है वह साधु है।
जो परिस्थितियों से विचलित होता है वह संसारी है।
सीता राम ,सीता राम ,सीता राम कहिये ,
जाहि विधि राखै राम, ताहि विधि रहिये .
आ गए राज भवन में विश्वामित्र राम लक्ष्मण के साथ। जनक के आग्रह पर।
'करो सुफल सबके नयन ,
बेटा सुंदर बदन दिखाओ' -ये निर्गुण के उपासकों का नगर है। ज़रा इन्हें सगुण के दर्शन कराओ।
"जाहि देख आवहु नगर ... सुखनिधान दोउ भाई ,
बेटा सुफल करो सबके नयन सुंदर बदन दिखाओ। " ये विदेह नगरी है इन्हें सगुण साकार का भी आस्वाद कराओ।विश्वामित्र ने दोनों को नगर देखने भेज दिया।
समाचार पुर वासिन पाये ,
देखन नगर आये दोउ भाई। -कौन हैं कहाँ से आये हैं ये राजकुमार इतने कोमल इतने सुन्दर, नगर वासियों की आखों में यही सवाल है ?
युवती भवन झरोखेहिं लागीं .....
वर सांवरो जानकी जोग .... सखियाँ आपस में बतियाती हैं अरि ये सांवरो तो जानकी के योग्य है लेकिन ये तो बहुत कोमल है। धनुष कैसे उठाएगा ,दूसरी बोली इसका सौंदर्य देखके जनक अपनी प्रतिज्ञा बदल देंगे ,स्वयंवर में धनुष तोड़ने की शर्त ही समाप्त कर देंगें। एक बूढ़ी नब्बे साला बोली -अब इनका दर्शन तो बार -बार होगा ,जनक को जानकी बहुत प्यारी हैं जब ससुराल चली जाएंगी तो जनकजी , जल्दी -जल्दी बुलाया करेंगें ,ये दोनों विदा कराने आया करेंगे। हमें भी इन दोनों राजकुमारों का दर्शन हो जाया करेगा।सखियाँ अपनी सुध -बुध खोने लगतीं हैं एक भगवान से कहती है अब हमारा दिल तो हमारे पास रहा नहीं हम वगैर दिल के कैसे ज़िंदा रहेंगी ,आत्महत्या कर लेंगी। भगवान् बोले आत्महत्या की जरूरत नहीं है।
भक्ति अगर घर में है तो -भगवान् को आना ही पड़ेगा।
द्वापर में आना सब ,सबको ले चलूँगा। इस बार तो मैं एक पत्नी का ही व्रत लेकर आया हूँ।
सुन सखी प्रथम मिलन की बात -अब भगवान् और भक्ति सीता का जनक वाटिका में मिलन होने वाला है।आगे का प्रसंग बड़ा सुन्दर है। ध्यान से सुनिए :
"लेंहिं प्रसून चले दोउ भाई "-माली को चाचा जी कहके प्रणाम किया भगवान् ने । यही भगवद्ता है जो छोटे को बड़ा कर दे।माली कहने लगा भगवान् नहीं ऐसा मत करिये कहाँ आप और मैं कहाँ ?
आज समाज में वह बड़ा माना जाता है जिसके सामने सब छोटे दिखाई दें।
आ गया सम्पर्क में जो ,धन्यता पा गया -
इधर श्री किशोरी जी का सखियों के साथ वाटिका में प्रवेश हो रहा है। उधर भगवान् ने वाटिका में प्रवेश लिया है।
पूजन की करने तैयारी , सखिन संग आई जनक लली.......
बीच, सिया -कुमारी सखिन संग ,आईं जनक की लली ...
निर्मल नीर नहाई सरोवर ,
अरे शिवजी के मंदिर पधारीं ,
सखिन संग ,आईं जनक लली।
अब शादी कल करेंगे ,आज की कथा को विराम देते हैं।
जयश्री राम !
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )
Vijay Kaushal Ji Maharaj | Shree Ram Katha Ujjain Day 11 Part 2,and Part 3
(२)https://www.youtube.com/watch?v=Z2ZvKCVsqJ4
(३)
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