"विनाश काले विपरीत बुद्धि "
चार कौए उर्फ़ चार हौए
बहुत नहीं थे सिर्फ़ चार कौए थे काले
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खाएँ और गाएँ
वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनाएँ।
कभी-कभी जादू हो जाता है दुनिया में
दुनिया-भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गए
इनके नौकर चील, गरूड़ और बाज हो गए।
हंस मोर चातक गौरैयें किस गिनती में
हाथ बाँधकर खड़े हो गए सब विनती में
हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगाएँ
पिऊ-पिऊ को छोड़ें कौए-कौए गाएँ।
बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को
खाना-पीना मौज उड़ाना छुटभैयों को
कौओं की ऐसी बन आयी पाँचों घी में
बड़े-बड़े मनसूबे आये उनके जी में
उड़ने तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले
उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले।
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं चार कौओं का दिन है
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना
लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना!
वीरेंद्र शर्मा ,८७० /३१ ,भू -तल,निकटस्थ एफएम स्कूल ,फरीदाबाद १२१ ००३
अफ़सोस ,यूपी में जितिन बन रहे निशाना :सिब्बल (एक खबर २८ अगस्त अंक )वैसे कांग्रेस के पास बचा ही क्या है ?कांग्रेस की गति और मति ,वर्तमान रंगढंग पर बड़ी सटीक बैठतीं हैं भवानी दा की ये रचना:
चार कौए उर्फ़ चार हौए
बहुत नहीं थे सिर्फ़ चार कौए थे काले
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले
उनके ढंग से उड़ें, रुकें, खाएँ और गाएँ
वे जिसको त्योहार कहें सब उसे मनाएँ।
कभी-कभी जादू हो जाता है दुनिया में
दुनिया-भर के गुण दिखते हैं औगुनिया में
ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गए
इनके नौकर चील, गरूड़ और बाज हो गए।
हंस मोर चातक गौरैयें किस गिनती में
हाथ बाँधकर खड़े हो गए सब विनती में
हुक्म हुआ, चातक पंछी रट नहीं लगाएँ
पिऊ-पिऊ को छोड़ें कौए-कौए गाएँ।
बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को
खाना-पीना मौज उड़ाना छुटभैयों को
कौओं की ऐसी बन आयी पाँचों घी में
बड़े-बड़े मनसूबे आये उनके जी में
उड़ने तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले
उड़ने वाले सिर्फ़ रह गए बैठे ठाले।
आगे क्या कुछ हुआ सुनाना बहुत कठिन है
यह दिन कवि का नहीं चार कौओं का दिन है
उत्सुकता जग जाए तो मेरे घर आ जाना
लंबा किस्सा थोड़े में किस तरह सुनाना!
"जाको प्रभु दारुण दुख देही,
ताकी मति पहले हर लेही|"
"जाको विधि पूरन सुख देहीं,
ताकी मति निर्मल कर देहि|"
एक तो कांग्रेस में पहले ही मतिमंद पैदा हुआ है जैसा बीज वैसा फल। बहनिया को कोई पूछता नहीं। वाड्रा साहब को हुड्डा साहब लील गए। सोनिया लाहौल बिला क़ूवत इस देश की ज़बान भी वह न सीख सकीं है क्या है उनके पास सिवाय इंदिरा परिवार की बहु होने के।
विशेष :गुलाम नबी आज़ाद ,कपिल सिब्बल साहब ,मनीषतिवारी ,जितिन प्रसाद ,मुकुल वासनिक और इन जैसे आंच और साख़ वाले कुछ कर दिखाएँगे ,भगवान् इनका हौसला बनाये रहे।
वीरेंद्र शर्मा ,८७० /३१ ,भू -तल,निकटस्थ एफएम स्कूल ,फरीदाबाद १२१ ००३
८५ ८८ ९८ ७१५०
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