भरत जी हनुमान के अयोध्या आने की सूचना सबसे पहले अपने कुल गुरु को देते हैं। जीवन में गुरु का बड़ा महत्व है गुरु ज़रूर बनाइये व्यक्ति नहीं मिले कोई तो हनुमान जी को बनाइये। गुरु -मन्त्र को ज़रूर साधिये तभी जीवन में सार्थकता आएगी ,असफलता भी मिलेगी तो अवसाद नहीं आएगा। गुरु बनाना सिर्फ धर्म का विषय नहीं है जीवन को साधना है।
सिमरनि माला आपके सांस की गुरु है। इसके बाद भरत जी ये सूचना सभी माताओं को देते हैं घर की समस्त स्त्रियों को बतलाते हैं। आज घर की महिला को ये पता ही नहीं होता वह पुरुष कहाँ है जिसका उसने जीवन भर के लिए चयन किया था। कई पुरुष अपने गिर्द एक गोपन बनाये रखते हैं। कहाँ जा रहें हैं इसकी इत्तला घर की महिलाओं को ही नहीं देते।
अपनी धरती को मातृभूमि को मान दीजिये। भगवान् आते हैं तो सबसे पहले गुरु से मिलते हैं फिर ब्राहणों से और फिर भरत से मिलते हैं। भरत जी अपनी माँ समान भाभी को प्रणाम करते हैं।
ये सब सखा सुनहुँ मुनि मेरे-भगवान् वानरों को इंगित करते हुए वशिष्ठ जी को बतलाते हैं।
भगवान् वशिष्ठ जी को वानरों का परिचय देते हुए बतलाते हैं ,साथ ही भगवान् कहते हैं मेरी विजय इन्हीं के कारण हुई है। साथ ही भगवान वानरों को अपने घर में सब का परिचय देते हुए कहते हैं इन्हें प्रणाम करो -बड़ों को प्रणाम किया जाता है ,वानर तो इस शिष्टाचार से कहाँ और कैसे परिचित होते ,इस प्रकार भगवान् ने एक साथ दो काम किये राजगुरु वशिष्ठ जी का संशय दूर किया ,जो वानरों को देख कर असहज महसूस करते दिख रहे थे।
तब गुरु ने भी सबको गले लगाया।
परिवार में कोई छोटा बड़ा नहीं होता भगवान् यहां यही संकेत देते हैं। परिवार का अर्थ है सबको साथ लेकर चलना। राम का गुरु वशिष्ठ राजतिलक करते हैं राम सबको दिल खोलकर यथोचित देते हैं फिर सबको विदा करते हैं ये कहते हुए अब अपना -अपना जीवन जियो जो वक्त सबके साथ बीता बहुत अच्छा बीता।
अनुशासन प्रिय हनुमान अपने राजा सुग्रीव से अनुनय विनय पूर्वक कहते हैं आपकी आज्ञा हो तो मैं यहीं अयोध्या में भगवान् के पास रुक जाऊं। सुग्रीव उन्हें सहर्ष अनुमति देते हैं। चाहते भगवान् भी यही थे।
इंसान के जीवन में चार तरह का दुःख होता है :
ये दुःख राम के राज्य में नहीं आया करते
(१ )काल का दुःख भी होता है जो एक बड़ा दुःख होता है इंसान के जीवन में। आप आठ बजे उठते हैं आपको छः बजे उठा दिया जाए ,यही आपके लिए दुःख बन जाएगा।
,
(२ )कर्म का भी दुःख होता है -कर्म का फल भोगना पड़ता है.कार्य -करण ,काज एन्ड इफेक्ट सिद्धांत काम करता है यहां पर।
(३ )गुरु का भी दुःख होता है,आप सब कुछ करते जाएँ और वह संतुष्ट ही न दिखे न होवे।
(४ ) स्वभाव का दुःख
राम राज्य में सभी योग करते हैं ,योग से व्यक्ति मन को जीत लेता है।
हमारे जीवन में वासना पूर्व जन्म के कर्मों से भी आती है। माँ का आचरण गर्भ काल में, पिता की वासनाएं भी इसमें शरीक होतीं हैं। माहौल से भी जो आपके आसपास होता है उससे भी आपके जीवन में वासनाएं आतीं हैं। माहौल आप अपने आसपास अच्छा रख सकते हैं अपनी सोहबत भी अच्छी रख सकते हैं।
कथा का उद्देश्य है आपका आंतरिक रूपांतरण हो जाए रामराज्य आपके मन में स्थापित हो जाए। राम जीवन में हैं तो सब हैं एक इनका सहारा छूट गया तो फिर कोई नहीं है आपके जीवन में। राम को अपने से दूर मत भेजिए।
राम तुमसे दूर होकर क्या पाया क्या पाएंगे ,
तेरा सहारा छूट गया तो ,अपने भी सभी कट जाएंगे।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=sGRfmr_RI1A
(२ )
सिमरनि माला आपके सांस की गुरु है। इसके बाद भरत जी ये सूचना सभी माताओं को देते हैं घर की समस्त स्त्रियों को बतलाते हैं। आज घर की महिला को ये पता ही नहीं होता वह पुरुष कहाँ है जिसका उसने जीवन भर के लिए चयन किया था। कई पुरुष अपने गिर्द एक गोपन बनाये रखते हैं। कहाँ जा रहें हैं इसकी इत्तला घर की महिलाओं को ही नहीं देते।
अपनी धरती को मातृभूमि को मान दीजिये। भगवान् आते हैं तो सबसे पहले गुरु से मिलते हैं फिर ब्राहणों से और फिर भरत से मिलते हैं। भरत जी अपनी माँ समान भाभी को प्रणाम करते हैं।
ये सब सखा सुनहुँ मुनि मेरे-भगवान् वानरों को इंगित करते हुए वशिष्ठ जी को बतलाते हैं।
भगवान् वशिष्ठ जी को वानरों का परिचय देते हुए बतलाते हैं ,साथ ही भगवान् कहते हैं मेरी विजय इन्हीं के कारण हुई है। साथ ही भगवान वानरों को अपने घर में सब का परिचय देते हुए कहते हैं इन्हें प्रणाम करो -बड़ों को प्रणाम किया जाता है ,वानर तो इस शिष्टाचार से कहाँ और कैसे परिचित होते ,इस प्रकार भगवान् ने एक साथ दो काम किये राजगुरु वशिष्ठ जी का संशय दूर किया ,जो वानरों को देख कर असहज महसूस करते दिख रहे थे।
तब गुरु ने भी सबको गले लगाया।
परिवार में कोई छोटा बड़ा नहीं होता भगवान् यहां यही संकेत देते हैं। परिवार का अर्थ है सबको साथ लेकर चलना। राम का गुरु वशिष्ठ राजतिलक करते हैं राम सबको दिल खोलकर यथोचित देते हैं फिर सबको विदा करते हैं ये कहते हुए अब अपना -अपना जीवन जियो जो वक्त सबके साथ बीता बहुत अच्छा बीता।
अनुशासन प्रिय हनुमान अपने राजा सुग्रीव से अनुनय विनय पूर्वक कहते हैं आपकी आज्ञा हो तो मैं यहीं अयोध्या में भगवान् के पास रुक जाऊं। सुग्रीव उन्हें सहर्ष अनुमति देते हैं। चाहते भगवान् भी यही थे।
इंसान के जीवन में चार तरह का दुःख होता है :
ये दुःख राम के राज्य में नहीं आया करते
(१ )काल का दुःख भी होता है जो एक बड़ा दुःख होता है इंसान के जीवन में। आप आठ बजे उठते हैं आपको छः बजे उठा दिया जाए ,यही आपके लिए दुःख बन जाएगा।
,
(२ )कर्म का भी दुःख होता है -कर्म का फल भोगना पड़ता है.कार्य -करण ,काज एन्ड इफेक्ट सिद्धांत काम करता है यहां पर।
(३ )गुरु का भी दुःख होता है,आप सब कुछ करते जाएँ और वह संतुष्ट ही न दिखे न होवे।
(४ ) स्वभाव का दुःख
राम राज्य में सभी योग करते हैं ,योग से व्यक्ति मन को जीत लेता है।
हमारे जीवन में वासना पूर्व जन्म के कर्मों से भी आती है। माँ का आचरण गर्भ काल में, पिता की वासनाएं भी इसमें शरीक होतीं हैं। माहौल से भी जो आपके आसपास होता है उससे भी आपके जीवन में वासनाएं आतीं हैं। माहौल आप अपने आसपास अच्छा रख सकते हैं अपनी सोहबत भी अच्छी रख सकते हैं।
कथा का उद्देश्य है आपका आंतरिक रूपांतरण हो जाए रामराज्य आपके मन में स्थापित हो जाए। राम जीवन में हैं तो सब हैं एक इनका सहारा छूट गया तो फिर कोई नहीं है आपके जीवन में। राम को अपने से दूर मत भेजिए।
राम तुमसे दूर होकर क्या पाया क्या पाएंगे ,
तेरा सहारा छूट गया तो ,अपने भी सभी कट जाएंगे।
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=sGRfmr_RI1A
(२ )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें