राहुल और कन्हैयाँ में फ़र्क ज्यादा है समानता कम
कन्हैया एक मेहनतकश माँ का बेटा है। सबकुछ समझता है लेकिन सब कुछ बूझते हुए भी मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामों की सोहबत में पड़ा हुआ है। राहुल परम्परागत अमीरी के टापू में पैदा हुआ है। निर्बुद्ध है ,जिसे तिलहन और दलहन का फर्क नहीं मालूम। ज्वार और बाजरे में जो भेद नहीं कर सकता लेकिन किसानों की वकालत करता है।
बेशक दोनों जमानती है। दोनों अपने महान होने की भ्रांत धारणा से ग्रस्त हैं। मतिमन्द अपने आपको मोदी के समकक्ष रखके देख रहा है। कन्हैया भावी बौद्धिक भकुए के रूप में।
राहुल और उसके चाकर मोदी को कोसते हैं कन्हैया देश को ही गाली देता है। अफ़ज़ल को महिमामंडित करता है अपने को भगतसिंह समझने लगा है। इसे ही ही मेगालो-मैनिया कहा जाता है।
राहुल स्विस बैंक खातों से लेकर हेराल्ड गोलमाल के लिए विख्यात है उस पार्टी से ताल्लुक रखता है जिसने १९४७ के बाद से ही विघटनवादी राजनीति का पल्लू पकड़ा हुआ है।तुष्टिकरण और अल्पसंख्यक वाद का अलाव जलाए रखा है। सांप्रदायिक भेद को हवा दी है।सम्प्रदायों को आपसे में लड़ाकर दंगे भड़काए हैं। आतंकियों को न सिर्फ 'जी 'कहकर पुकारा है ,बाटला हाउस एनकाउंटर में एक आतंकी के मारे जाने पर सोनिया रात भर नहीं सोईं।
कन्हैया अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहा है।
फासिष्ट वादी ताकतें (रक्त-रंगी कामोदरी लेफ्टीए )और कांग्रेस से लेकर केजर -बवाल तक उसे विमोहित हैं।
कन्हैया एक मेहनतकश माँ का बेटा है। सबकुछ समझता है लेकिन सब कुछ बूझते हुए भी मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामों की सोहबत में पड़ा हुआ है। राहुल परम्परागत अमीरी के टापू में पैदा हुआ है। निर्बुद्ध है ,जिसे तिलहन और दलहन का फर्क नहीं मालूम। ज्वार और बाजरे में जो भेद नहीं कर सकता लेकिन किसानों की वकालत करता है।
बेशक दोनों जमानती है। दोनों अपने महान होने की भ्रांत धारणा से ग्रस्त हैं। मतिमन्द अपने आपको मोदी के समकक्ष रखके देख रहा है। कन्हैया भावी बौद्धिक भकुए के रूप में।
राहुल और उसके चाकर मोदी को कोसते हैं कन्हैया देश को ही गाली देता है। अफ़ज़ल को महिमामंडित करता है अपने को भगतसिंह समझने लगा है। इसे ही ही मेगालो-मैनिया कहा जाता है।
राहुल स्विस बैंक खातों से लेकर हेराल्ड गोलमाल के लिए विख्यात है उस पार्टी से ताल्लुक रखता है जिसने १९४७ के बाद से ही विघटनवादी राजनीति का पल्लू पकड़ा हुआ है।तुष्टिकरण और अल्पसंख्यक वाद का अलाव जलाए रखा है। सांप्रदायिक भेद को हवा दी है।सम्प्रदायों को आपसे में लड़ाकर दंगे भड़काए हैं। आतंकियों को न सिर्फ 'जी 'कहकर पुकारा है ,बाटला हाउस एनकाउंटर में एक आतंकी के मारे जाने पर सोनिया रात भर नहीं सोईं।
कन्हैया अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहा है।
फासिष्ट वादी ताकतें (रक्त-रंगी कामोदरी लेफ्टीए )और कांग्रेस से लेकर केजर -बवाल तक उसे विमोहित हैं।
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