गहरे लाल रंग की चमक लिए हुए है इस झील की सतह का पानी जिसे लेक नाट्रन के नाम से जाना जाता है। अफ्रिका की मशहूर रिफ्ट वैली का आकर्षण बनी हुई है यह झील। झील क्या यूं समझ लीजिये साबुन और कागज़ बनाने के काम में आने वाले तथा कपडे धोने में प्रयुक्त होते आये एक रसायन कास्टिक सोडा की यह मायावी चमक और आभा है जो पक्षियों को भरमा कर उन्हें ज़िंदगी की आखिरी डुबकी लगवा देती है बाहर आते आते उनका शरीर कैल्सियम लवणों के जमा होने से सीपी और शंख सा कठोर हो जाता है। जीवित पक्षी का बुत इस कुदरती तुषार म्यज़ियम का हिस्सा बन जाता है हमेशा हमेशा के लिए ममी बन जाती है उसकी। ऐसा होता है यह रसायन का पक्का लेप.
इस झील में कॉस्टिक सोडा और साल्ट का डेरा है अतिरिक्त सांद्रण है।
रंगबिरंगे कुछ ख़ास शैवालों एक ख़ास मच्छी (The Alkaline Tilapia )और फ्लेमिंगो पक्षी का प्रजनन स्थल बनी हुई है यह झील।नमकीन खारे जल से पोषण प्राप्त करने वाले कुछ जीव -आवयविक संगठन (सूक्ष्मतर जीव )यहां पल्लवित होते हैं। इन्हीं में शरीक है एक नीली हरे वर्ण की खूबसूरत मनमोहक नयनाभिराम शैवाल स्पिरुलिना (Spirulina algae) जिसमें एक लाल रंजक मौजूद रहता है यही वर्ण फ्लेमिंगो तक भी पहुंचता है जो इस शैवाल का भक्षण करते हैं। हाँ यहां जीवन का स्वरूप भिन्न है। आम झीलों में मौजूद जीवों जैसा नहीं है। इस झील का अपना एक नाज़ुक पारितंत्र है। एको-सिस्टम है।
नीचे दिखलाई गई एक तस्वीर अंतरिक्ष से ली गई है उस अंतरिक्ष में स्थापित उपकरण से जिसे -
The Advanced Spaceborne Thermal Emission and Reflection Radiometer (ASTER)कहा जाता है।
यह एक दूर नियंत्रण प्रणाली संचालित संवेदी यंत्र है जिसे अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने अपने एक उपग्रह टेरा (TERRA -Thermal Emission and Reflection Radiometer )पर तैनात किया हुआ है .यह उच्चतर विभेदकता वाली तस्वीरें पृथ्वी की भेजता रहा है तथा ये तस्वीरें दृश्य और तापीय अवरक्त विकिरण रेंज में हैं। झील के सतह के जल के तापमान का भी इस से कयास लगाया गया है।
अब सवाल यह उठता है झील में इतना लवण आख़िर आया कहाँ से ?
समझा जाता है इसके लिए वह ज्वालामुखीय राख जिम्मेवार है जो ग्रेट रिफ्ट वैली से लोकल बैसिन्स तक पहुंची है। लवणीय झील उसी की सृष्टि है। फ्लेमिंगो पक्षी यहां प्रजनन के बाद अंडे देने और सेने आते हैं क्योंकि शिकारी पक्षी यहां पहुँचने से कतराते हैं अतः अंडे सुरक्षित रहते हैं। अलबत्ता फ्लेमिंगो पक्षियोंको भी सावधान रहना पड़ता है। झील कभी भी उनके प्रति भी एक दम से प्रतिकूल हो सकती है । कब ?इसका कोई निश्चय नहीं।
सब कुछ बरसात के हाथों का खेला है। बरसात होने पर इसकी लवणीयता अमोनिया के सम-कक्ष हो जाती है। बरसात का अतिरिक्त पानी भरने पर इस झील के पानी का तापमान झुलसाने वाले ६० सेल्सियस यानी १४० फारेनहाइट तक बढ़ जाता है।
इस झील में कॉस्टिक सोडा और साल्ट का डेरा है अतिरिक्त सांद्रण है।
रंगबिरंगे कुछ ख़ास शैवालों एक ख़ास मच्छी (The Alkaline Tilapia )और फ्लेमिंगो पक्षी का प्रजनन स्थल बनी हुई है यह झील।नमकीन खारे जल से पोषण प्राप्त करने वाले कुछ जीव -आवयविक संगठन (सूक्ष्मतर जीव )यहां पल्लवित होते हैं। इन्हीं में शरीक है एक नीली हरे वर्ण की खूबसूरत मनमोहक नयनाभिराम शैवाल स्पिरुलिना (Spirulina algae) जिसमें एक लाल रंजक मौजूद रहता है यही वर्ण फ्लेमिंगो तक भी पहुंचता है जो इस शैवाल का भक्षण करते हैं। हाँ यहां जीवन का स्वरूप भिन्न है। आम झीलों में मौजूद जीवों जैसा नहीं है। इस झील का अपना एक नाज़ुक पारितंत्र है। एको-सिस्टम है।
नीचे दिखलाई गई एक तस्वीर अंतरिक्ष से ली गई है उस अंतरिक्ष में स्थापित उपकरण से जिसे -
The Advanced Spaceborne Thermal Emission and Reflection Radiometer (ASTER)कहा जाता है।
यह एक दूर नियंत्रण प्रणाली संचालित संवेदी यंत्र है जिसे अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने अपने एक उपग्रह टेरा (TERRA -Thermal Emission and Reflection Radiometer )पर तैनात किया हुआ है .यह उच्चतर विभेदकता वाली तस्वीरें पृथ्वी की भेजता रहा है तथा ये तस्वीरें दृश्य और तापीय अवरक्त विकिरण रेंज में हैं। झील के सतह के जल के तापमान का भी इस से कयास लगाया गया है।
अब सवाल यह उठता है झील में इतना लवण आख़िर आया कहाँ से ?
समझा जाता है इसके लिए वह ज्वालामुखीय राख जिम्मेवार है जो ग्रेट रिफ्ट वैली से लोकल बैसिन्स तक पहुंची है। लवणीय झील उसी की सृष्टि है। फ्लेमिंगो पक्षी यहां प्रजनन के बाद अंडे देने और सेने आते हैं क्योंकि शिकारी पक्षी यहां पहुँचने से कतराते हैं अतः अंडे सुरक्षित रहते हैं। अलबत्ता फ्लेमिंगो पक्षियोंको भी सावधान रहना पड़ता है। झील कभी भी उनके प्रति भी एक दम से प्रतिकूल हो सकती है । कब ?इसका कोई निश्चय नहीं।
सब कुछ बरसात के हाथों का खेला है। बरसात होने पर इसकी लवणीयता अमोनिया के सम-कक्ष हो जाती है। बरसात का अतिरिक्त पानी भरने पर इस झील के पानी का तापमान झुलसाने वाले ६० सेल्सियस यानी १४० फारेनहाइट तक बढ़ जाता है।
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Lake Natron, in Africa’s Great Rift Valley, practically sends a warning with its color. This bright red lake is the world’s most caustic body of water, but not to everything. An endemic species of fish, the alkaline tilapia, lives along the edges of the hotspring inlets, and the lake actually derives its color from salt-loving microorganisms that thrive in its alkaline waters. Spirulina, a blue-green algae with red pigments, passes its pigments along to the Lesser Flamingoes that feed on the algae and raise their young here.
The Advanced Spaceborne Thermal Emission and Reflection Radiometer (ASTER) flying on the Terra satellite captured this image on March 8, 2003. This image simulates natural color, showing where the salt-loving microorganisms have colored the lake’s salt crust red or pink. The salt crust changes over time, giving the lake a slightly different appearance each time it is photographed by astronauts or imaged by satellites.
Volcanic ash from the Great Rift Valley has collected in local lake basins, creating a network of soda lakes hostile to most organisms. This forbidding environment enables Lake Natron to serve millions of flamingoes as the ideal nursery; would-be predators avoid the saline lake and leave young birds in peace. Flamingoes must exercise caution, however, because the lake can turn deadly even to them. Depending on rainfall, its alkalinity can approach that of straight ammonia, and when the lake is flooded with water that has heated underground, its temperature can reach a scalding 60 degrees Celsius (140 degrees Fahrenheit).
The uniqueness of Lake Natron prompted Tanzania to add the lake to the Ramsar List of Wetlands of International Importance on July 4, 2001.
NASA image courtesy NASA/GSFC/METI/ERSDAC/JAROS, and U.S./Japan ASTER Science Team
TERR stands for Thermal Emission and Reflection Radiometer
क्यों बन जाती है लेक नाट्रन पक्षियों का कब्रगाह ?
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