उड़ जा ,उड़जारे काले से काग ,मेरी माँ ने जाके कह दिए ,
तेरी बेटी के हुआ नंदलाल ,तेरी तेरी बेटी मांगे पीलिया।
उड़ जा ,उड़जारे काळे से काग, मेरी बेटी ने जाके कह दिए ,
हो घर में बहु-बेटा का यो राज ,हम कित ते भेजें पीलिया।
उड़ जा ,उड़जा रे काले से काग, मेरी भाभी ने जाके कह दिए ,
हो तेरी नड़दन के हुआ नंदलाल ,तेरी नड़दी मांगे पीलिआ।
उड़ जा उड़जारे काले से काग ,मेरी ,नड़दी ने जाके कह दिए ,
री वा ते तो रोज़ जनेगी नंदलाल ,हम कित ते भेजें पीलिया।
उड़ जा उड़जारे काले से काग ,मेरी बहना ने जाके कह दिए ,
तेरी बहना के हुआ नंदलाल ,तेरी बहना मांगे पीलिया ,
उड़ जा उड़जा रे काले से काग ,मेरी बहना ने जाके कह दिए ,
री वो तो रोज़ जानेगी नंदलाल ,हम रोज्जे भेजें पीलिया।
भले लोग संगीत की माधुरी के अलावा परम्परा की हूक भी है इस परम्परागत हरियाणवी बंदिश में। लेकिन आज के बदले हुए सन्दर्भों में जब मांग जांच को लेकर सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज में पर्याप्त हंगामा है ,किसी लड़की का यूं मुंह खोलके मांगना -पीड़िया (यहां पीलिया में ल और ड़ के बीच की ध्वनि है ,ल के नीचे बिंदी जड़िये )या कोई और नेग थोड़ा अटपटा सा ज़रूर लगता है। हरियाणा जैसे राज्यों में तो लड़की के आने पे ही गर्भ पे पहरा है। लड़किया कमतर होती जातीं हैं। जहाज हवाई ही नहीं सात समुन्द्र की यात्रा कर रहीं हैं आज भारतीय नेवल फोर्सिज की युवतियां। मांग जांच कैसी। बदलो इन लोकगीतों को ढालों आधुनिक हालातों में इनके शब्दावलियों को यही श्रेय का मार्ग है प्रेय के मार्ग में बहुत बाधाएं हैं सब माया ही माया बंधन ही बंधन हैं यहां।
आप अपनी राय जताइए ,बड़ी मेहरबानी होगी। इस विमर्श को आगे बढ़ाइए।
सन्दर्भ -सामिग्री :YOUTUBE.COM
तेरी बेटी के हुआ नंदलाल ,तेरी तेरी बेटी मांगे पीलिया।
उड़ जा ,उड़जारे काळे से काग, मेरी बेटी ने जाके कह दिए ,
हो घर में बहु-बेटा का यो राज ,हम कित ते भेजें पीलिया।
उड़ जा ,उड़जा रे काले से काग, मेरी भाभी ने जाके कह दिए ,
हो तेरी नड़दन के हुआ नंदलाल ,तेरी नड़दी मांगे पीलिआ।
उड़ जा उड़जारे काले से काग ,मेरी ,नड़दी ने जाके कह दिए ,
री वा ते तो रोज़ जनेगी नंदलाल ,हम कित ते भेजें पीलिया।
उड़ जा उड़जारे काले से काग ,मेरी बहना ने जाके कह दिए ,
तेरी बहना के हुआ नंदलाल ,तेरी बहना मांगे पीलिया ,
उड़ जा उड़जा रे काले से काग ,मेरी बहना ने जाके कह दिए ,
री वो तो रोज़ जानेगी नंदलाल ,हम रोज्जे भेजें पीलिया।
भले लोग संगीत की माधुरी के अलावा परम्परा की हूक भी है इस परम्परागत हरियाणवी बंदिश में। लेकिन आज के बदले हुए सन्दर्भों में जब मांग जांच को लेकर सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज में पर्याप्त हंगामा है ,किसी लड़की का यूं मुंह खोलके मांगना -पीड़िया (यहां पीलिया में ल और ड़ के बीच की ध्वनि है ,ल के नीचे बिंदी जड़िये )या कोई और नेग थोड़ा अटपटा सा ज़रूर लगता है। हरियाणा जैसे राज्यों में तो लड़की के आने पे ही गर्भ पे पहरा है। लड़किया कमतर होती जातीं हैं। जहाज हवाई ही नहीं सात समुन्द्र की यात्रा कर रहीं हैं आज भारतीय नेवल फोर्सिज की युवतियां। मांग जांच कैसी। बदलो इन लोकगीतों को ढालों आधुनिक हालातों में इनके शब्दावलियों को यही श्रेय का मार्ग है प्रेय के मार्ग में बहुत बाधाएं हैं सब माया ही माया बंधन ही बंधन हैं यहां।
आप अपनी राय जताइए ,बड़ी मेहरबानी होगी। इस विमर्श को आगे बढ़ाइए।
सन्दर्भ -सामिग्री :YOUTUBE.COM
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