"इक रुकी हुई कविता मेरी ,अधपकी हुई भविता मेरी "-कमांडर निशांत शर्मा
(१)
इक रुकी हुई कविता मेरी ,
अधपकी हुई भविता मेरी ,
कुछ आज यूं पूरी हो जाए,
कुछ बादल गरजें सूरज पर ,
ये शाम सिन्दूरी हो जाए।
(२)
बस खामखाँ की बातों में ,
यूँ हम तुम जाया हो बैठे ,
दो पल और बैठो संग मेरे ,
कुछ बात ज़रूरी हो जाए।
(३)
इक उम्र गुज़र गई सोने में ,
खाबों को बुनकर खोने में ,
कुछ ख्वाहिशों की अर्ज़ी को ,
बस आज स्वीकृति हो जाए।
(४ )
रस्मों -कसमों , कर्ज़ों -फ़र्ज़ों ,
की तानाशही कौन सहे ,
अब सर आँखों पे हुक्म -ए -दिल ,
कुछ 'जी -हुज़ूरी ' हो जाए ,
(५)
अच्छे -अच्छे रिश्तों को भी ,
नज़दीकियों ने तोड़ा है,
कुछ तुम ठहरो कुछ हम संभले ,
अब फिर से दूरी हो जाए ,
इक रुकी हुई कविता मेरी ,
बस आज यूँ पूरी हो जाए।
प्रस्तुति :वीरुभाई
(१)
इक रुकी हुई कविता मेरी ,
अधपकी हुई भविता मेरी ,
कुछ आज यूं पूरी हो जाए,
कुछ बादल गरजें सूरज पर ,
ये शाम सिन्दूरी हो जाए।
(२)
बस खामखाँ की बातों में ,
यूँ हम तुम जाया हो बैठे ,
दो पल और बैठो संग मेरे ,
कुछ बात ज़रूरी हो जाए।
(३)
इक उम्र गुज़र गई सोने में ,
खाबों को बुनकर खोने में ,
कुछ ख्वाहिशों की अर्ज़ी को ,
बस आज स्वीकृति हो जाए।
(४ )
रस्मों -कसमों , कर्ज़ों -फ़र्ज़ों ,
की तानाशही कौन सहे ,
अब सर आँखों पे हुक्म -ए -दिल ,
कुछ 'जी -हुज़ूरी ' हो जाए ,
(५)
अच्छे -अच्छे रिश्तों को भी ,
नज़दीकियों ने तोड़ा है,
कुछ तुम ठहरो कुछ हम संभले ,
अब फिर से दूरी हो जाए ,
इक रुकी हुई कविता मेरी ,
बस आज यूँ पूरी हो जाए।
प्रस्तुति :वीरुभाई