कोरौना -रोधी- दादियां !कोरोना पर कौन रोता है ?
यह आकस्मिक नहीं हैं और न ही एक मिथ ,शाहीन बाग़ की दादियां और इतर मोतरमायें तमाम आबालवृद्ध गत तकरीबन तीन महोनों से स्वस्थ हैं बावजूद मौसम की बदमिज़ाजी के तुनकमिज़ाजी के, मार्च का महीना भी इसका अपवाद नहीं हैं। ऊँट मौसम का किस करवट बैठेगा इसका कोई निश्चय नहीं। बहरसूरत भारतीय -सांइसदानों का एक तबका ऐसा मानने लगा है ,कोरोना का यदि कोई पुख्ता इलाज़ निकलेगा तो यह कोरोना रोधी- शख्शियत की काया और मानसिक सबलता और उत्प्रेरण से ही निकलेगा।
कहते हैं गोरों एक ऐसी नस्ल भी है जो एचआईवीएड्स रोधी है। इस पर ह्यूमेन इम्यूनो डिफीशियन्सी वायरस का कोई बस नहीं चलता। सारा फिरंगी अंदाज़ इनका एक तरफ और चुस्त- दुरुस्त प्रतिरक्षण व्ववस्था एक तरफ। इसे हलके में लेने की भूल न करें।
कोरोना प्रतिरोध की बात दूर की कौड़ी फेंक न समझा जाए। यह किसी फेंकू की कलम नहीं सांइसदान की है। इसे परखा जाए।
बहर -सूरत यह दीगर है के ये दादियां हाथ मिलाना तो दूर नमस्ते भी नहीं करतीं हैं। नमाज़ कहते हैं नमः से ही बना है ऐसा कुछ लोगों का मानना है , विसर्ग हटाने पर स के नीचे हलन्त लगा दीजिये बस इसी नमस् से नमज् होता हुआ नमाज़ बना हैं। नमाज़ ज़रूर ये अता करतीं हैं। कौन जाने अल्लाहताला की याद ही इन्हें आदिनांक हर बला से बचाए रही हो।भगवान् परमेश्वर अल्लाह वाहगुरु इन्हें लम्बी उम्र दे।
विशेष :कोरोना के लक्षण दीखते ही अस्पताल का रुख न करें अपने कुनबाई डॉक्टर से परामर्श करें। यदि खांसी है ,बुखार है बदन -और सिर दर्द है नाक बहने लगी है ,तो सांस में तकलीफ होने का इंतज़ार न करें ये मरदूद लोवर रिस्पायरेटरी ट्रेक्ट पर ज़ोरदार धावा बोल देता है जबकि अमूमन सर्दी जुकाम ( नज़ला ) अपर रेस्पायरेटरी ट्रेक्ट तक ही वार करता है।यहां मुकाबला रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस से होता है।
डायबिटीज़ के साथ -साथ हायपरटेंशन (उच्च रक्त चाप के साथ मधुमेह की दुरभि संधि )फेफड़ों की अल्विओलीज (एअर सेक्स )पर भारी पड़ती है। फेफड़े को होने वाली नुकसानी भी जानलेवा साबित होती है। थ्री डायमेंशनल एक्स रे साफ बतला देता है -फेफडों में बलगम ही बलगम है सांस लेने छोड़ने के लिए बलगम ने जगह ही नहीं छोड़ी है।
संकल्प यानी हौसला और प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही बढ़ाता है 'शाहीन बाग़'। तीन सालों से पाकिस्तान में भी कामकाजी महिलाएं अपने हक़ -हकूकों के लिए मार्च निकालती हैं मार्च के महीने में। अब ये दादियां देखें एक 'शाहीन- बाग़' यहां भी हो।
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यह आकस्मिक नहीं हैं और न ही एक मिथ ,शाहीन बाग़ की दादियां और इतर मोतरमायें तमाम आबालवृद्ध गत तकरीबन तीन महोनों से स्वस्थ हैं बावजूद मौसम की बदमिज़ाजी के तुनकमिज़ाजी के, मार्च का महीना भी इसका अपवाद नहीं हैं। ऊँट मौसम का किस करवट बैठेगा इसका कोई निश्चय नहीं। बहरसूरत भारतीय -सांइसदानों का एक तबका ऐसा मानने लगा है ,कोरोना का यदि कोई पुख्ता इलाज़ निकलेगा तो यह कोरोना रोधी- शख्शियत की काया और मानसिक सबलता और उत्प्रेरण से ही निकलेगा।
कहते हैं गोरों एक ऐसी नस्ल भी है जो एचआईवीएड्स रोधी है। इस पर ह्यूमेन इम्यूनो डिफीशियन्सी वायरस का कोई बस नहीं चलता। सारा फिरंगी अंदाज़ इनका एक तरफ और चुस्त- दुरुस्त प्रतिरक्षण व्ववस्था एक तरफ। इसे हलके में लेने की भूल न करें।
कोरोना प्रतिरोध की बात दूर की कौड़ी फेंक न समझा जाए। यह किसी फेंकू की कलम नहीं सांइसदान की है। इसे परखा जाए।
बहर -सूरत यह दीगर है के ये दादियां हाथ मिलाना तो दूर नमस्ते भी नहीं करतीं हैं। नमाज़ कहते हैं नमः से ही बना है ऐसा कुछ लोगों का मानना है , विसर्ग हटाने पर स के नीचे हलन्त लगा दीजिये बस इसी नमस् से नमज् होता हुआ नमाज़ बना हैं। नमाज़ ज़रूर ये अता करतीं हैं। कौन जाने अल्लाहताला की याद ही इन्हें आदिनांक हर बला से बचाए रही हो।भगवान् परमेश्वर अल्लाह वाहगुरु इन्हें लम्बी उम्र दे।
विशेष :कोरोना के लक्षण दीखते ही अस्पताल का रुख न करें अपने कुनबाई डॉक्टर से परामर्श करें। यदि खांसी है ,बुखार है बदन -और सिर दर्द है नाक बहने लगी है ,तो सांस में तकलीफ होने का इंतज़ार न करें ये मरदूद लोवर रिस्पायरेटरी ट्रेक्ट पर ज़ोरदार धावा बोल देता है जबकि अमूमन सर्दी जुकाम ( नज़ला ) अपर रेस्पायरेटरी ट्रेक्ट तक ही वार करता है।यहां मुकाबला रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस से होता है।
डायबिटीज़ के साथ -साथ हायपरटेंशन (उच्च रक्त चाप के साथ मधुमेह की दुरभि संधि )फेफड़ों की अल्विओलीज (एअर सेक्स )पर भारी पड़ती है। फेफड़े को होने वाली नुकसानी भी जानलेवा साबित होती है। थ्री डायमेंशनल एक्स रे साफ बतला देता है -फेफडों में बलगम ही बलगम है सांस लेने छोड़ने के लिए बलगम ने जगह ही नहीं छोड़ी है।
संकल्प यानी हौसला और प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही बढ़ाता है 'शाहीन बाग़'। तीन सालों से पाकिस्तान में भी कामकाजी महिलाएं अपने हक़ -हकूकों के लिए मार्च निकालती हैं मार्च के महीने में। अब ये दादियां देखें एक 'शाहीन- बाग़' यहां भी हो।